Women’s Day Shayari
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
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शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
मुनीर नियाज़ी
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घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
मुनीर नियाज़ी
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औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
साहिर लुधियानवी
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एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मुहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उसने सारी उम्र इबादत की
ज़ेहरा निगाह
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जवान गेहूँ के खेतों को देख कर रो दें
वो लड़कियाँ कि जिन्हें भूल बैठीं माएँ भी
किश्वर नाहीद
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बंद होती किताबों में उड़ती हुई तितलियाँ डाल दीं
किसकी रस्मों की जलती हुई आग में लड़कियाँ डाल दीं
नोशी गिलानी
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सुब्ह का झरना हमेशा हँसने वाली औरतें
झुटपुटे की नद्दियाँ ख़ामोश गहरी औरतें
बशीर बद्र
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सड़कों बाज़ारों मकानों दफ़्तरों में रात दिन
लाल नीली सब्ज़ नीली जलती बुझती औरतें
बशीर बद्र
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सैकड़ों ऐसी दुकानें हैं जहाँ मिल जाएँगी
धात की पत्थर की शीशे की रबड़ की औरतें
बशीर बद्र
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ग़ौर से सूरज निकलते वक़्त देखो आसमाँ
चूमती हैं किस का माथा उजली लम्बी औरतें
बशीर बद्र
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जिसको तुम कहते हो ख़ुश-बख़्त सदा है मज़लूम
जीना हर दौर में औरत का ख़ता है लोगो
रज़िया फ़सीह अहमद
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लड़कियाँ बैठीं थीं पाँव डाल के,
रौशनी सी हो गई तालाब में
परवीन शाकिर
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तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो
एक औरत का दर्द क्या जानो
सैयदा अरशिया हक़
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हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
परवीन शाकिर
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Women’s Day Shayari