“मातृ दिवस” (Mothers Day) के मौक़े पर हम अपने पाठकों के लिए ज़हरा निगाह की नज़्म “डाकू” (Zehra Nigah Ki Nazm Daku) पेश कर रहे हैं. ये नज़्म माँ-बेटे के रिश्ते को माँ की नज़र से दिखाने की कोशिश करती है.
ज़हरा निगाह की नज़्म: डाकू
कल रात मिरा बेटा मिरे घर,
चेहरे पे मंढे ख़ाकी कपड़ा
बंदूक़ उठाए आ पहुँचा
नौ-उम्री की सुर्ख़ी से रची उसकी आँखें
मैं जान गई
और बचपन के संदल से मंढा उस का चेहरा
…पहचान गई
वो आया था ख़ुद अपने घर
घर की चीज़ें ले जाने को
अन-कही कही मनवाने को…
…
बातों में दूध की ख़ुशबू थी
जो कुछ भी सैंत के रक्खा था
मैं सारी चीज़ें ले आई
इक लाल-ए-बदख़्शाँ की चिड़िया
सोने का हाथी छोटा सा
चाँदी की इक नन्ही तख़्ती
रेशम की फूल भरी टोपी
अतलस का नाम लिखा जुज़दान
जुज़दान में लिपटा इक क़ुरआन
पर वो कैसा दीवाना था
कुछ छोड़ गया कुछ तोड़ गया
और ले भी गया है वो तो क्या
लोहे की बदसूरत गाड़ी,
पेट्रोल की बू भी आएगी
जिस के पहिए भी रबर के हैं
जो बात नहीं कर पाएगी
बच्चा फिर आख़िर बच्चा है
शा’इरा के बारे में: ज़हरा निगाह का जन्म 14 मई 1937 को हैदराबाद में हुआ था. भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के बाद वो पाकिस्तान में बस गयीं. ज़हरा का शुमार इस दौर के बेहतरीन शा’इरों में किया जाता है.पाकिस्तानी सरकार ने 2006 में उन्हें “प्राइड ऑफ़ परफॉरमेंस” पुरूस्कार से नवाज़ा.
~ Zehra Nigah Ki Nazm Daku
तहज़ीब हाफ़ी के बेहतरीन शेर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी
साहिर लुधियानवी: संगीतकार से भी ज़्यादा शोहरत कमाने वाला गीतकार
चाँद पर शायरी