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तहज़ीब हाफ़ी मौजूदा दौर के मशहूर शायरों में शुमार किए जाते हैं। उनके मुशाइरे में पढ़े गए शेर सोशल मीडिया पर अक्सर वाइरल होते रहते हैं। हम तहज़ीब हाफ़ी के कुछ शेर यहाँ आपके लिए पेश कर रहे हैं।

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दिल मुहब्बत में मुब्तला हो जाए
जो अभी तक न हो सका हो जाए

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शोर करूँगा और न कुछ भी बोलूँगा
ख़ामोशी से अपना रोना रो लूँगा

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तन्हाई में ख़ुद से बातें करनी हैं
मेरे मुँह में जो आएगा बोलूँगा

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तुझ में ये ऐब है कि ख़ूबी है
जो तुझे देख ले तिरा हो जाए
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मैं उसको हर रोज़ बस यही एक झूठ सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है
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तहज़ीब हाफ़ी की ग़ज़लें

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
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यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
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ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उससे जीत गया हूँ कि मात हो गई है
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मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा
मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है
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पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
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फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा
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जब उसकी तस्वीर बनाया करता था
कमरा रंगों से भर जाया करता था
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सारी उम्र इसी ख़्वाहिश में गुज़री है
दस्तक होगी और दरवाज़ा खोलूँगा
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इन परिंदों से बोलना सीखा
पेड़ से ख़ामुशी मिली है मुझे
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मैं उसे कब का भूल-भाल चुका
ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे
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मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
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बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जाएगा और मेरे गले से आ लगेगा
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मैं मुश्किल में तुम्हारे काम आऊँ या न आऊँ
मुझे आवाज़ दे लेना तुम्हें अच्छा लगेगा
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कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
तेरे जाने का ग़म किया गया है
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ता-क़यामत हरे भरे रहेंगे
इन दरख़्तों पे दम किया गया है
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वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खुलना
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है
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तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुंदरों से अकेले में बात करनी है
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हमारे गाँव का हर फूल मरने वाला है
अब उस गली से वो ख़ुश्बू नहीं गुज़रनी है
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तेरे ही कहने पर एक सिपाही ने
अपने घर को आग लगा दी शहज़ादी
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मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहज़ादा
कैसे मुमकिन है ये शादी शहज़ादी
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बर्फ़ पिघलेगी और पहाड़ों में
सालहा-साल रास्ते रहेंगे
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लौटना कब है तूने पर तुझको
आदतन ही पुकारते रहेंगे
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मुद्दत से मेरी आँख में इक ख़्वाब है मुक़ीम
पानी में पेड़ पेड़ की छाँव में रेत है
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तुम चाहते हो तुमसे बिछड़ के भी ख़ुश रहूँ
या’नी हवा भी चलती रहे और दिया जले
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वो जिसकी छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझसे कोई बात क्यूँ नहीं करता
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मैं जिसके साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता
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मैंने उसके वस्ल में भी हिज्र काटा है कहीं
वो मिरे काँधे पे रख लेता था सर रोता न था
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नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए
ख़्वाब ऐसा कि मुँह खुला रह जाए
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ख़्वाब करना हो सफ़र करना हो या रोना हो
मुझमें ख़ूबी है बेज़ार नहीं होता में
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लोग कहते हैं मैं बारिश की तरह हूँ ‘हाफ़ी’
अक्सर औक़ात लगातार नहीं होता मैं
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ख़ामुशी से लदा हुआ इक पेड़
इससे चल कर मुकालिमा किया जाए

Tehzeeb Hafi Best Poetry

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