fbpx
ननकू के क़िस्से

पापा गाड़ी चला रहे थे माँ साथ में बैठी बात कर रही थीं। पीछे ननकू, रसगुल्ला और चीकू की मस्ती दादी के साथ जारी थी, कभी दादी उन्हें बाहर कुछ दिखातीं तो कभी ननकू दादी को नानी के घर की कोई बात बताता। इतने में ही माँ का फ़ोन बजने लगा

“लो राखी को अभी से याद आने लगी..”- माँ ने फ़ोन पर राखी बुआ का नाम देखकर कहा और फ़ोन उठकर बोलीं.. “अरे भई अभी तक तो हम बाहर भी नहीं निकले हैं ठीक से और अभी से याद करने लगीं…अच्छा..अरे…एकदम याद ही नहीं रहा..अब याद दिला दिया है तो ननकू से बात कर लो…”

माँ ननकू को फ़ोन देते हुए बोलीं “राखी बुआ..”

“राखी बुआ..आप चिट्ठी पढ़ लिए?..अच्छा..मैं आपको और चिट्ठी लिखूँगा आप भी लिखना…क्या?,,,अच्छा…वो रो रहा है क्या?..आप उसको अच्छे से रखोगे?..ठीक है आप उसका ध्यान रखना और न…हाँ..हाँ..आपको तो सब पता है..बाय..बाय..राखी बुआ”

ननकू ने फ़ोन रखकर देखा तो दादी और माँ ही नहीं बल्कि चीकू और रसगुल्ला भी उसका मुँह देख रहे थे। ननकू ने मुस्कुरा कर कहा- “वो नानी ने जो छोटा सा पौधा दिया था न?..वो छूट गया लेकिन बुआ ने कहा है कि वो उसका ध्यान रखेंगी और न..बुआ को सब पता है कि उसको कब खाना देना है”

“अच्छा..मुझे तो लगा तू उसको लेने चले जाएगा..अब नानी पूछेगी तो क्या कहेगा?”- माँ ने ननकू को छेड़ा

“नानी को बता देंगे कि पौधा बुआ के पास में है”

“नानी कहेंगी कि मैंने तो तुमको दिया था ननकू तूने मेरा पौधा अच्छे से नहीं रखा..तब क्या बोलेगा?”

ननकू सोच में पड़ गया..ननकू ने दादी को देखते हुए पूछा- “नानी मुझ से नाराज़ हो जाएँगी क्या?”

दादी ने प्यार से ननकू को गले से लगाते हुए कहा “बिलकुल नहीं..इत्ते प्यारे बच्चे से कोई नाराज़ हो सकता है?..हम नानी को कह देंगे कि पौधा तो राखी बुआ के पास अच्छे से है..तो नानी मान जाएँगी”

“सच्ची..?” ननकू ने पूछा तो दादी ने हाँ में सिर हिलाया। ननकू की ख़ुशी देखकर चीकू और रसगुल्ला भी ख़ुश हो गए उन्हें देखकर दादी ने कहा

“अब तुम तीनों यहाँ तुम्हारा डान्स शुरू मत कर देना गाड़ी है ये”

दादी की बात सुनकर पापा और माँ हँसने लगे।

गाड़ी में काफ़ी दूर तक आ गए थे और अब बैठे- बैठे दादी का पैर दर्द होने लगा था तो पापा ने गाँव में एक घर के पास गाड़ी रोक दी। इस घर के पास ही बोर्ड लगा था खाने का जो घर में बनाकर ही राहगीरों को दिया जाता था। जब सब पहुँचे तो जल्दी से आकर एक आदमी ने चारपाई बिछा दी। यहाँ आँगन में बैठे थे दो बड़े- बड़े कुत्ते जो रसगुल्ला और चीकू को देखकर भौंकने लगे। चीकू और रसगुल्ला दादी और माँ के पास दुबक गए। ननकू ने जाकर जब आँगन में बैठे कुत्तों को प्यार किया तो रसगुल्ला और चीकू ने अलग सी आवाज़ की। पापा ने खाने के लिए कह दिया था जब वो आदमी बाहर पानी लेकर आया तो ननकू ने पूछा-

“इनका नाम क्या है?”

“इसका नाम भूरा और इसका शेरा..” ये कहकर वो आदमी भी भूरा और शेरा को सहलाने लगा वो दोनों उसके साथ बिलकुल वैसे ही खेलने लगे जैसे ननकू के साथ चीकू और रसगुल्ला खेलते हैं। ननकू को बड़ा मज़ा आया उसने कहा

“आप भूरा और शेरा की दोस्ती रसगुल्ला और चीकू से करवा दो न”

“दोनों को लेकर आओ..”

ननकू झट से चीकू और रसगुल्ला को ले आया। चीकू तो आने में झिझक रहा था लेकिन रसगुल्ला तो फट से दौड़कर शेरा के पास खड़ा हो गया। शेरा ने उसे सूँघा तो रसगुल्ला शेरा को चाटने लगा बस देखते ही देखते दोनों की दोस्ती हो गयी। पर मुश्किल तो आयी चीकू की दोस्ती करवाने में वो तो डर के मारे आगे ही नहीं आ रहा था लेकिन आख़िर उसकी दोस्ती भी हो ही गयी।

अब तो चीकू और रसगुल्ला भी धूल में पसर के बैठ गए थे शेरा और भूरा के पास और चारों जाने क्या-क्या बातें कर रहे थे। सबसे ज़्यादा बातें कर रहा था रसगुल्ला..अब खाना आ गया था और दादी ने सबको बुलाया इसी बीच रसगुल्ला तो दौड़ चला उस आदमी के घर की ओर और जब बाहर आया तो उसके मुँह में दबा था उसका फ़ेवरेट आम..पेड़ के चबूतरे के पास बैठकर वो अपना आम खाने लगा। उसे देखकर सब मुस्कुरा उठे। और सबने खाना खाया।

खाते हुए ही घर से उस आदमी की माँ निकल कर आयी जो बहुत बुज़ुर्ग थीं। वो बड़े ध्यान से दादी को देखने लगीं और बाद में कहा- “रमा..?”

सालों बाद अपना नाम सुनकर दादी चौंक गयी उन्होंने ध्यान से देखा तो वो भी उनको पहचान गयी..”रत्ना चाची…आपका घर है ये..तभी मैं सोचूँ कि यहाँ ही रुकने का मन क्यों हुआ?”

कहकर दादी झट से रत्ना चाची के गले लग गयीं। फिर तो ढेर सारी बातें हुईं और दादी ने सभी को रत्ना चाची से मिलवाया। ननकू को देखकर चाची बहुत ख़ुश हुईं और उन्होंने उसे इतना प्यार किया कि ननकू के गाल भी लाल-लाल हो गए। बाद में उन्होंने ननकू को प्यार से एक सिक्का भी दिया । ननकू को समझ तो नहीं आया कि उसे पैसे क्यों मिले लेकिन जब दादी और माँ ने उसे रखने के लिए कहा तो उसने रख लिया वैसे उस सिक्के में फ़ोटो भी बनी हुई थी ननकू के गुल्लक में जाएगा अब तो ये।

रत्ना चाची से मिलकर दादी बहुत ख़ुश हुईं और रत्ना चाची भी..सबसे विदा लेकर एक बार फिर बढ़ चली है गाड़ी…अब तो घर पहुँचकर ही रुकने का इरादा है।

(कितना अच्छा लगता है न जब हम कहीं एक साथ जाते हैं और रास्ते में कोई बहुत दिनों का जाना पहचाना मिल जाता है…अब तो ननकू घर पहुँच ही जाएगा और उसके बाद भी तो मुलाक़ात होगी कितने लोगों से उसकी, जिनसे इतने दिनों से मिल नहीं पाया है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *