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ननकू के क़िस्से

पापा सारा सामान गाड़ी की डिक्की में जमा रहे थे और रॉकी चाचा उनकी मदद कर रहे थे। इधर मौसी दादी से मिलते हुए दादी की आँखें भरी हुई थी। रेखा बुआ माँ से बार-बार वापस आने के लिए कह रही थीं और ननकू, रसगुल्ला और चीकू को बार-बार प्यारा भी कर रही थीं। जब सामान गाड़ी में रखा गया तो रॉकी चाचा ने आकर कहा-

“हो गयी तैयारी..क्यों जा रहा है तू अपनी टोली लेके?”- रॉकी चाचा ने ननकू को गोद में उठा लिया

पापा ने आकर मौसी दादी का पैर छुआ- “मौसी, आप चलो साथ में..दोनों बहन बैठकर गप्प मारना और गुरुदत्त की फ़िल्में देखना”

माँ ने राखी बुआ को गले लगाया “जल्दी से आ जाना..मैं फ़ॉर्म का पता करके बताऊँगी”

इधर सबको मिलते- जुलते देख रसगुल्ला काफ़ी देर सबको देखता रहा बाद में वो चीकू के पास जाकर उससे सट गया..चीकू ने उसे प्यार किया। रसगुल्ला राखी बुआ के पास जाकर कूदने लगा और चीकू रॉकी चाचा के पास। उन्हें देखकर रॉकी चाचा और राखी बुआ ने गोद में उठा लिया। दोनों को अच्छे से दुलार करते हुए जैसे ही रॉकी चाचा और राखी बुआ ने कहा कि “तुम दोनों यहीं रह जाओ”

ये बात सुनते ही चीकू और रसगुल्ला घबरा के गोद से उतरने लगे, सब उनकी इस हरकत पर हँसने लगे। राखी बुआ को तभी कुछ याद आया और वो दौड़कर अंदर गयीं। जब बाहर आयीं तो उनके हाथ में कुछ पैक गिफ़्ट थे उन्होंने ननकू को उसका गिफ़्ट दिया और माँ को चीकू और रसगुल्ला का गिफ़्ट देते हुए बोलीं “इसको रास्ते में ही खोलना..यहाँ नहीं खोलना”

दादी पीछे बैठीं और पापा ड्राइविंग सीट पर माँ उनके बग़ल में बैठने वाली थीं क्योंकि बाद में वो ड्राइविंग करने वाली थीं। दादी के बैठते ही माँ ने रसगुल्ला को दादी की गोद में दिया। ननकू और चीकू राखी बुआ और रॉकी चाचा से मिल रहे थे। रसगुल्ला से रहा ही नहीं गया वो बाहर जाने के लिए मचलने लगा। आख़िर दादी दरवाज़े की तरफ़ खिसकीं और रसगुल्ला को बाहर की तरफ़ किया तब जाकर रसगुल्ला का कूदना बंद हुआ। दादी को भी मौसी दादी से एक बार और गले मिलने का मौक़ा मिल गया।

माँ के डाँटने पर चीकू अंदर गया और ननकू भी अंदर बैठने लगा, माँ दरवाज़ा बंद कर ही रही थीं कि ननकू बाहर आने के लिए दरवाज़ा खोलने लगा।

“अरे..ननकू अब बस बाबा..ऐसे करेंगे तो निकलेंगे कैसे?…दादी कब से अंदर बैठी हैं..?” – माँ की ये बात सुनकर ननकू ने मुँह उतारते हुए कहा

“राखी बुआ और रॉकी चाचा को चिट्ठी देनी है..एक बार रॉकी चाचा को बुला दो न”

माँ ने ननकू को प्यार किया और दरवाज़ा खोलते हुए कहा- “जा देकर आ..जल्दी से”

ननकू के पीछे-पीछे चीकू और रसगुल्ला भी झट से उतरने की तैयारी में थे कि माँ को देखते ही दोनों चुपचाप बैठ गए। ननकू झट से जाकर राखी बुआ के गले लग गया..राखी बुआ ने पूछा

“अरे वाह..तू आ गया वापस..चल बाय कर दे सबको”

“नहीं..मैं तो आपको ये देने आया हूँ”- ननकू ने अपने बैग में से चिट्ठी निकाल के राखी बुआ और रॉकी चाचा को चिट्ठी दी। राखी बुआ कल पूरे दिन इसी चिट्ठी का इंतज़ार कर रही थीं और अभी बिलकुल भूल ही गयी थीं। मौसी दादी ने ननकू को प्यार करते हुए छेड़ा-
“और मेरी चिट्ठी?”
ननकू ने राखी बुआ और रॉकी चाचा को देखा दोनों मुस्कुरा रहे थे। ननकू मुस्कुराया और बोला “ये रही आपकी चिट्ठी”

मौसी दादी, राखी बुआ और रॉकी चाचा ख़ुश हो गए उन्हें लगा था कि ननकू ने सिर्फ़ दो ही चिट्ठी लिखी है। लेकिन ननकू मौसी दादी को कैसे भूल जाता। सबको चिट्ठी देकर ननकू गाड़ी की तरफ़ बढ़ा कि राखी बुआ ने आकर ननकू को गोद में लेकर गाल पर चूमा और कहा “तेरे से मिलने ज़रूर आऊँगी..” उसे अंदर बिठाते हुए चीकू और रसगुल्ला को प्यार करके बोलीं “और तुम दोनों से मिलने भी”

“मैं भी उसी घर में रहता हूँ..फ़ुर्सत मिलेगी तो मुझसे भी मिल लेना”- पापा के ऐसा कहते ही सब खिलखिला उठे। सबको हँसता देख के ननकू भी हँसने लगा और चीकू रसगुल्ला भी उछ्लने लगे। राखी बुआ ने दरवाज़ा बंद किया और सबको बाय कहकर गाड़ी आगे बढ़ गयी।

(छुट्टियाँ हो गयी हैं ख़त्म और अब ननकू लौट रहा है अपने घर..चीकू तो यहीं से आया है लेकिन रसगुल्ला पहली बार घर जा रहा है..तो रसगुल्ला को ननकू का घर कैसा लगेगा..ये तो रसगुल्ला तभी बताएगा जब वो पहुँचेगा घर..पर अभी तो सब हैं रास्ते में। मौसी दादी, राखी बुआ और रॉकी चाचा को सबकी याद तो आएगी लेकिन ननकू की चिट्ठी से सबके पास अच्छी सी याद भी रह गयी)

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