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Phool Shayari

काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा

परवीन शाकिर

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फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की

मख़दूम मुहीउद्दीन
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फूल के हार फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की

मख़दूम मुहीउद्दीन

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आपका साथ-साथ फूलों का
आपकी बात-बात फूलों की

मख़दूम मुहीउद्दीन

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फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की

मख़दूम मुहीउद्दीन

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ये महकती हुई ग़ज़ल ‘मख़दूम’
जैसे सहरा में रात फूलों की

मख़दूम मुहीउद्दीन

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अगरचे फूल ये अपने लिए ख़रीदे हैं
कोई जो पूछे तो कह दूँगा उसने भेजे हैं

इफ़्तिख़ार नसीम

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फूल ही फूल याद आते हैं
आप जब जब भी मुस्कुराते हैं

साजिद प्रेमी

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हमने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं

बिस्मिल सईदी

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मैं चाहता था कि उसको गुलाब पेश करूँ
वो ख़ुद गुलाब था उसको गुलाब क्या देता

अफ़ज़ल इलाहाबादी

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काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ

शकील बदायूँनी

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आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे
तितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर

शकेब जलाली

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शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
आँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ

बशीर बद्र

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फूल कर ले निबाह काँटों से
आदमी ही न आदमी से मिले

ख़ुमार बाराबंकवी

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ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो
मुझे बू आती है इसमें किसी बदन की सी

नज़ीर अकबराबादी

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सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी

जलील मानिकपूरी

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हमेशा हाथों में होते हैं फूल उनके लिए
किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं

अनवर शऊर

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फूलों को सुर्ख़ी देने में
पत्ते पीले हो जाते हैं

फ़हमी बदायूँनी

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तुझसे बिछड़ूँ तो कोई फूल न महके मुझमें
देख क्या कर्ब है क्या ज़ात की सच्चाई है

नसीर तुराबी

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हमने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं

बिस्मिल सईदी

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लोग काँटों से बच के चलते हैं
मैंने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं

अज्ञात

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