Aah Ko Chahiye Ik Umr Asar Hone Tak ~
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग,
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता’लीम,
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल,
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक
ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज,
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
रदीफ़: होते तक
क़ाफ़िए: असर, सर, गुहार, जिगर, ख़बर, नज़र, शरर, सहर.
बह्र: 212 21 12 21 122 221
آہ کو چاہیے اک عمر اثر ہوتے تک
کون جیتا ہے تری زلف کے سر ہوتے تک
دام ہر موج میں ہے حلقۂ صد کام نہنگ
دیکھیں کیا گزرے ہے قطرے پہ گہر ہوتے تک
عاشقی صبر طلب اور تمنا بیتاب
دل کا کیا رنگ کروں خون جگر ہوتے تک
تا قیامت شب فرقت میں گزر جائے گی عمر
سات دن ہم پہ بھی بھاری ہیں سحر ہوتے تک
ہم نے مانا کہ تغافل نہ کرو گے لیکن
خاک ہو جائیں گے ہم تم کو خبر ہوتے تک
پرتو خور سے ہے شبنم کو فنا کی تعلیم
میں بھی ہوں ایک عنایت کی نظر ہوتے تک
یک نظر بیش نہیں فرصت ہستی غافل
گرمیٔ بزم ہے اک رقص شرر ہوتے تک
غم ہستی کا اسدؔ کس سے ہو جز مرگ علاج
شمع ہر رنگ میں جلتی ہے سحر ہوتے تک
مرزا غالب
Aah Ko Chahiye Ik