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Abhishek Shukla ShayariAbhishek Shukla

Abhishek Shukla Shayari

मक़ाम-ए-वस्ल तो अर्ज़-ओ-समा के बीच में है
मैं इस ज़मीन से निकलूँ तू आसमाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला
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हर्फ़ लफ़्ज़ों की तरफ़ लफ़्ज़ मआ’नी की तरफ़
लौट आए सभी किरदार कहानी की तरफ़

अभिषेक शुक्ला
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दिल वो दरिया है मिरे सीना-ए-ख़ाली में कि अब
ध्यान जाता ही नहीं जिसकी रवानी की तरफ़

अभिषेक शुक्ला
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वो एक दिन जो तुझे सोचने में गुज़रा था
तमाम उम्र उसी दिन की तर्जुमानी है

अभिषेक शुक्ला

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मैं सोचता हूँ बहुत ज़िंदगी के बारे में
ये ज़िंदगी भी मुझे सोच कर न रह जाए

अभिषेक शुक्ला
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हमीं जहान के पीछे पड़े रहें कब तक
हमारे पीछे कभी ये जहान भी पड़ता

अभिषेक शुक्ला
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तेरी आँखों के लिए इतनी सज़ा काफ़ी है
आज की रात मुझे ख़्वाब में रोता हुआ देख

अभिषेक शुक्ला
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जाने क्या कुछ हो छुपा तुम में मोहब्बत के सिवा
हम तसल्ली के लिए फिर से खगालेंगे तुम्हें

अभिषेक शुक्ला
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कभी कभी तो ये वहशत भी हमपे गुज़री है
कि दिल के साथ ही देखा है डूबना शब का

अभिषेक शुक्ला
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उस से कहना कि धुआँ देखने लाएक़ होगा
आग पहने हुए जाउँगा मैं पानी की तरफ़

अभिषेक शुक्ला
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मैं और मेरी तरह तू भी इक हक़ीक़त है
फिर इसके बाद जो बचता है वो कहानी है

अभिषेक शुक्ला
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ज़रा भी दख़्ल नहीं इसमें इन हवाओं का
हमें तो मस्लहतन अपनी ख़ाक उड़ानी है

अभिषेक शुक्ला
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चलते हुए मुझमें कहीं ठहरा हुआ तू है
रस्ता नहीं मंज़िल नहीं अच्छा हुआ तू है

अभिषेक शुक्ला
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मैं यूँ ही नहीं अपनी हिफ़ाज़त में लगा हूँ
मुझमें कहीं लगता है कि रक्खा हुआ तू है

अभिषेक शुक्ला

Abhishek Shukla Shayari

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