Ahmad Faraz Best Shayari
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
अहमद फ़राज़
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
अहमद फ़राज़
इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम
अहमद फ़राज़
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
अहमद फ़राज़
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
अहमद फ़राज़
क़ुर्बतें लाख ख़ूब-सूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी
अहमद फ़राज़
लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद ‘फ़राज़’ तुझसे कहा न बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
हम ख़ुल्द से निकल तो गए हैं पर ऐ ख़ुदा
इतने से वाक़िए का फ़साना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उससे ज़रा सा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़ Ahmad Faraz Best Shayari
अब तक तो दिल का दिल से तआ’रुफ़ न हो सका
माना कि उससे मिलना मिलाना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
गुलज़ार के बेहतरीन शेर..
क्या क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद-‘फ़राज़’ तुझसे कहा ना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
आशिक़ी में ‘मीर’ जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
अहमद फ़राज़
जोश मलीहाबादी के बेहतरीन शेर..
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
अहमद फ़राज़
उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए
अहमद फ़राज़
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा’द ये मा’लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
अहमद फ़राज़
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
अहमद फ़राज़
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उससे मैंने बेवफ़ाई की
अहमद फ़राज़
आज इक और बरस बीत गया उसके बग़ैर
जिसके होते हुए होते थे ज़माने मेरे
अहमद फ़राज़
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
अहमद फ़राज़
कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
अहमद फ़राज़
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
अहमद फ़राज़
किस किसको बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
अहमद फ़राज़
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़ह्म को तुझसे हैं उमीदें
ये आख़िरी शम’एँ भी बुझाने के लिए आ
अहमद फ़राज़
उमैर नज्मी के बेहतरीन शेर…
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते
वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते
अहमद फ़राज़
कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
अहमद फ़राज़
इसकी वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था
तुम ‘फ़राज़’ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते
अहमद फ़राज़
दुख फ़साना नहीं कि तुझसे कहें
दिल भी माना नहीं कि तुझसे कहें
अहमद फ़राज़
आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं कि तुझसे कहें
अहमद फ़राज़
बे-तरह हाल-ए-दिल है और तुझसे
दोस्ताना नहीं कि तुझसे कहें
अहमद फ़राज़
अब तो अपना भी उस गली में ‘फ़राज़’
आना जाना नहीं कि तुझसे कहें
अहमद फ़राज़
Ahmad Faraz Best Shayari