Alok Dhanwa Bhagi Hui Ladkiyan ~ आलोक धन्वा का जन्म 2 जुलाई 1948 ई० में मुंगेर (बिहार) में हुआ. धन्वा को हिन्दी के बड़े कवियों में शुमार किया जाता है. आलोक धन्वा को कविता के क्षेत्र में विशेष पहचान 70 के दशक में मिली. उनकी कविताओं का अंग्रेज़ी और रूसी भाषाओं में अनुवाद हुआ है. उनकी मशहूर कविता ‘भागी हुई लड़कियाँ’ साहित्य दुनिया की ओर से आपके लिए पेश है-
अदम गोंडवी की बेहतरीन शायरी
एक
घर की ज़ंजीरें
कितना ज़्यादा दिखाई पड़ती हैं
जब घर से कोई लड़की भागती है
क्या उस रात की याद आ रही है
जो पुरानी फ़िल्मों में बार-बार आती थी
जब भी कोई लड़की घर से भागती थी?
बारिश से घिरे वे पत्थर के लैंप पोस्ट
सिर्फ़ आँखों की बेचैनी दिखाने भर उनकी रोशनी?
और वे तमाम गाने रजतपर्दों पर दीवानगी के
आज अपने ही घर में सच निकले!
क्या तुम यह सोचते थे कि
वे गाने सिर्फ़ अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए
रचे गए थे?
और वह ख़तरनाक अभिनय
लैला के ध्वंस का
जो मंच से अटूट उठता हुआ
दर्शकों की निजी ज़िदगियों में फैल जाता था?
दो
तुम तो पढ़कर सुनाओगे नहीं
कभी वह ख़त
जिसे भागने से पहले
वह अपनी मेज़ पर रख गई
तुम तो छुपाओगे पूरे ज़माने से
उसका संवाद
चुराओगे उसका शीशा, उसका पारा,
उसका आबनूस
उसकी सात पालों वाली नाव
लेकिन कैसे चुराओगे
एक भागी हुई लड़की की उम्र
जो अभी काफ़ी बची हो सकती है
उसके दुपट्टे के झुटपुटे में?
उसकी बची-खुची चीज़ों को
जला डालोगे?
उसकी अनुपस्थिति को भी जला डालोगे?
जो गूँज रही है उसकी उपस्थिति से
बहुत अधिक
संतूर की तरह
केश में
दुष्यंत कुमार के बेहतरीन शेर..
तीन
उसे मिटाओगे
एक भागी हुई लड़की को मिटाओगे
उसके ही घर की हवा से
उसे वहाँ से भी मिटाओगे
उसका जो बचपन है तुम्हारे भीतर
वहाँ से भी
मैं जानता हूँ
कुलीनता की हिंसा!
लेकिन उसके भागने की बात
याद से नहीं जाएगी
पुरानी पवनचक्कियों की तरह
वह कोई पहली लड़की नहीं है
जो भागी है
और न वह अंतिम लड़की होगी
अभी और भी लड़के होंगे
और भी लड़कियाँ होंगी
जो भागेंगे मार्च के महीने में
लड़की भागती है
जैसे फूलों में गुम होती हुई
तारों में गुम होती हुई
तैराकी की पोशाक में दौड़ती हुई
खचाखच भरे जगरमगर स्टेडियम में
चार
अगर एक लड़की भागती है
तो यह हमेशा ज़रूरी नहीं है
कि कोई लड़का भी भागा होगा
कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
महज़ जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है
तुम्हारे टैंक जैसे बंद और मज़बूत
घर से बाहर
लड़कियाँ काफ़ी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाज़त नहीं दूँगा
कि तुम उसकी संभावना की भी तस्करी करो
वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह ख़ुद शामिल होगी सब में
गलतियाँ भी ख़ुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी
शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
हिन्दी व्याकरण: वर्णमाला का वर्गीकरण
पाँच
लड़की भागती है
जैसे सफ़ेद घोड़े पर सवार
लालच और जुए के आर-पार
जर्जर दूल्हों से
कितनी धूल उठती है
तुम
जो
पत्नियों को अलग रखते हो
वेश्याओं से
और प्रेमिकाओं को अलग रखते हो
पत्नियों से
कितना आतंकित होते हो
जब स्त्री बेख़ौफ़ भटकती है
ढूँढ़ती हुई अपना व्यक्तित्व
एक ही साथ वेश्याओं और पत्नियों
और प्रमिकाओं में!
अब तो वह कहीं भी हो सकती है
उन आगामी देशों में
जहाँ प्रणय एक काम होगा पूरा का पूरा
छह
कितनी-कितनी लड़कियाँ
भागती हैं मन ही मन
अपने रतजगे, अपनी डायरी में
सचमुच की भागी लड़कियों से
उनकी आबादी बहुत बड़ी है
क्या तुम्हारे लिए कोई लड़की भागी?
क्या तुम्हारी रातों में
एक भी लाल मोरम वाली सड़क नहीं?
क्या तुम्हें दांपत्य दे दिया गया?
क्या तुम उसे उठा लाए
अपनी हैसियत, अपनी ताक़त से?
तुम उठा लाए एक ही बार में
एक स्त्री की तमाम रातें
उसके निधन के बाद की भी रातें!
तुम नहीं रोए पृथ्वी पर एक बार भी
किसी स्त्री के सीने से लगकर
सिर्फ़ आज की रात रुक जाओ
तुमसे नहीं कहा किसी स्त्री ने
सिर्फ़ आज की रात रुक जाओ
कितनी-कितनी बार कहा कितनी
स्त्रियों ने दुनिया भर में
समुद्र के तमाम दरवाज़ों तक दौड़ती हुई आईं वे
सिर्फ़ आज की रात रुक जाओ
और दुनिया जब तक रहेगी
सिर्फ़ आज की रात भी रहेगी।
Alok Dhanwa Bhagi Hui Ladkiyan