Doosra Ishq Review ~ मौजूदा दौर में अच्छी शा’इरी करने वालों की तादाद कम हो गयी है लेकिन अभी भी मंज़र-ए-आम पर कुछ ऐसे शा’इर मौजूद हैं जो अपनी शानदार शा’इरी से लोगों का मन-मोह रहे हैं. ऐसे ही एक शा’इर हैं इरशाद ख़ान ‘सिकंदर'(Irshad Khan Sikandar) , सिकंदर की किताब ‘दूसरा इश्क़’ मंज़र-ए-आम पर आ चुकी है. राजपाल प्रकाशन से प्रकाशित हुई ‘दूसरा इश्क़’ किताब का रस्म-ए-इजरा ‘विश्व पुस्तक मेला’ में हुआ. 10 जनवरी को विश्व पुस्तक मेले में किताब का रस्मे-इजरा गौहर रज़ा,कुलदीप सलिल और मीरा जौहरी जी के हाथों हुआ. इसके पहले सिकंदर की ‘आंसुओं का तर्जुमा’ भी मंज़र-ए-आम पर आ चुकी है. ये किताब अमेज़न पर भी उपलब्ध है.
पाठकों के लिए किताब ‘दूसरा इश्क़’ से ये ग़ज़ल
किसी रदीफ़ किसी क़ाफ़िये से पहले का
मैं एक शेर हर इक फ़लसफ़े से पहले का
बदन से पहली मुलाक़ात याद है तुमको
हमारा इश्क़ है उस वाक़ये से पहले का
छुड़ा तो लाया हूँ ख़ुद को मैं शब के पंजों से
मगर सवाल है इस तजरिबे से पहले का
मैं लफ़्ज़-वफ़्ज़ रिवायत वग़ैरह क्या जानूँ
मिरा वजूद है इस सिलसिले से पहले का
जो हाशिये पे रहे उनका दुख तो फिर भी ठीक
मैं दमी हूँ मगर हाशिये से पहले का
वो कायनात का पहला ही लफ़्ज़ है यानी
तिरी ज़बान मिरे ज़ाविये से पहले का
तू एक सुब्ह मिरी ज़िन्दगी की ताज़ा सुब्ह
तू एक रक्स मिरे रतजगे से पहले का
तू एक अक्स मिरे आइने का पहला अक्स
मैं एक जुमला तिरे क़हक़हे से पहले का
ये एक चाँद उदासी की तह में लिपटा चाँद
वो एक चाँद मिरे मक़बरे से पहले का
कभी कभी मुझे ऐ दोस्त याद आता है
वो एक शख़्स तिरे दबदबे से पहले का
न देख रेत से पानी निचोड़ लाया हूँ
तू बाब देख मिरे इस किये से पहले का
मैं जानता हूँ सिकन्दर जी शेर कहते हैं
पता करो सबब इस अलमिये से पहले का
इरशाद ख़ान “सिकन्दर” (Irshad Khan Sikandar)
~ Doosra Ishq Review
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