घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “तानसेन” का अंतिम भाग

Jay Shankar Prasad Tansen

Jay Shankar Prasad Tansen तानसेन- जयशंकर प्रसाद घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “तानसेन” का पहला भाग भाग-2 (अब तक आपने पढ़ा…प्रकृति के घनी ख़ूबसूरती के बीच जा रहा एक पथिक प्यास से व्याकुल हो जल ढूँढना चाहता है और उसे घने वृक्षों के बीच एक जलस्थान मिल भी जाता है। लेकिन वहाँ … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “तानसेन” का पहला भाग

Jayshankar Prasad Kahani Tansen

Jayshankar Prasad Kahani Tansen तानसेन- जयशंकर प्रसाद भाग-1 यह छोटा सा परिवार भी क्या ही सुन्दर है, सुहावने आम और जामुन के वृक्ष चारों ओर से इसे घेरे हुए हैं। दूर से देखने में यहाँ केवल एक बड़ा-सा वृक्षों का झुरमुट दिखाई देता है, पर इसका स्वच्छ जल अपने सौन्दर्य को ऊँचे ढूहों में छिपाये … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी “विलासी” का अंतिम भाग

Sharatchandra ki Kahani Vilaasi

Sharatchandra ki Kahani Vilaasi : विलासी- शरतचंद्र चट्टोपाध्याय घनी कहानी, छोटी शाखा: शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी “विलासी” का पहला भाग भाग- 2 (अब तक आपने पढ़ा….किसी गाँव के लड़के की डायरी के पन्नों से गाँव की एक कहानी चल निकली है। उस लड़के का नाम लेखक ने न्याड़ा रखा, जिसका अर्थ है जिसके बाल मुड़े … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी “विलासी” का पहला भाग

Sharatchandra ki Kahani Vilasi

Sharatchandra ki Kahani Vilasi : विलासी- शरतचंद्र चट्टोपाध्याय भाग- 1 पक्का दो कोस रास्ता पैदल चलकर स्कूल में पढ़ने जाया करता हूँ। मैं अकेला नहीं हूँ, दस-बारह जने हैं। जिनके घर देहात में हैं, उनके लड़कों को अस्सी प्रतिशत इसी प्रकार विद्या-लाभ करना पड़ता है। अत: लाभ के अंकों में अन्त तक बिल्कुल शून्य न … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: भुवनेश्वर की कहानी ‘माँ-बेटे’ का अंतिम भाग

Bhuvneshvar Kahani Maan Bete

Bhuvneshvar Kahani Maan Bete : माँ-बेटे – भुवनेश्वर घनी कहानी, छोटी शाखा: भुवनेश्वर की कहानी ‘माँ-बेटे’ का पहला भागभाग-2 (अब तक आपने पढ़ा…घर में बड़ी-बूढ़ी माँ मरणासन्न पड़ी है और पास-पड़ोस ही नहीं बल्कि घर के लोग भी अब इस बात में कम रुचि ले रहे हैं कि वो मरने वाली हैं। शायद कुछ लम्बे … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: भुवनेश्वर की कहानी ‘माँ-बेटे’ का पहला भाग

Bhuvneshvar Ki Kahani Maan Bete

Bhuvneshvar Ki Kahani Maan Bete माँ-बेटे – भुवनेश्वर भाग-1 चारपाई को घेरकर बैठे हुए उन सब लोगों ने एक साथ एक गहरी साँस ली। वह सब थके-हारे हुए ख़ामोश थे। कमरे में पूरी ख़ामोशी थी, मरने वाले की साँस भी थकी हुई-सी हारी हुई थी। तीन दिन से वह सब मौत की लड़ाई देख रहे … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन की कहानी ‘न मालूम सी एक ख़ता’ का अंतिम भाग

Acharya Chatursen

Acharya Chatursen न मालूम सी एक ख़ता- आचार्य चतुरसेन भाग-3 Acharya Chatursen (अब तक आपने पढ़ा…बादशाह अपनी नयी बेगम सलीमा के सतह विवाह के बाद से ही कश्मीर के दौलतख़ाने में रहते हैं..दो दिन बादशाह के शिकार से न लौटने पर विरह से व्याकुल सलीमा बेगम अपनी साक़ी से संगीत सुनकर मन बहलाती है और … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन की कहानी ‘न मालूम सी एक ख़ता’ का दूसरा भाग

Acharya Chatursen Kahaani

Acharya Chatursen Kahaani न मालूम सी एक ख़ता- आचार्य चतुरसेन भाग-2 Acharya Chatursen Kahaani (अब तक आपने पढ़ा..बादशाह की नयी बेगम सलीमा उनके साथ कश्मीर के दौलतख़ाने में रह रही होती हैं। बादशाह के दो दिन तक शिकार से न लौटने पर विरह में व्याकुल बादशाह की राह ताकती सलीमा अपनी बाँदी को बुलाकर उसके साथ संगीत … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन की कहानी ‘न मालूम सी एक ख़ता’ का पहला भाग

Acharya Chatursen Ki Kahani

Acharya Chatursen Ki Kahani न मालूम सी एक ख़ता- आचार्य चतुरसेन भाग-1 Acharya Chatursen Ki Kahani:  गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फागुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के झंझटों से दूर रहकर नई दुल्हन के साथ प्रेम और आनंद की कलोल करने वे सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में … Read more

मैक्सिम गोर्की की कहानी ‘कोलुशा’ का पहला भाग

Maxim Gorky Hindi Kahani Maxim Gorky Hindi Kolusha

Maxim Gorky Hindi Kahani : क़ब्रिस्तान का वह कोना, जहाँ भिखारी दफ़नाये जाते हैं। पत्तों से छितरे, बारिश से बहे और आँधियों से जर्जर क़ब्रों के ढूहों के बीच, दो मरियल-से बर्च वृक्षों के जालीदार साये में, जिघम के फटे-पुराने कपड़े पहने और सिर पर काली शॉल डाले एक स्त्री एक क़ब्र के पास बैठी थी।

सफ़ेद पड़ चले बालों की एक लट उसके मुरझाये हुए गाल के ऊपर झूल रही थी, उसके महीन होंठ कसकर भिचे थे और उनके छोर उसके मुँह पर उदास रेखाएँ खींचते नीचे की ओर झुके थे, और उसकी आँखों की पलकों में भी एक ऐसा झुकाव मौजूद था जो अधिक रोने और काटे न कटने वाली लम्बी रातों में जागने से पैदा हो जाता है।

वह बिना हिले-डुले बैठी थी – उस समय, जबकि मैं कुछ दूर खड़ा उसे देख रहा था, न ही उसने उस समय कुछ हरकत की जब मैं और अधिक निकट खिसक आया। उसने केवल अपनी बड़ी-बड़ी चमकविहीन आँखों को उठाकर मेरी आँखों में देखा और फिर उन्हें नीचे गिरा लिया। उत्सुकता, परेशानी या अन्य कोई भाव, जोकि मुझे निकट पहुँचता देख उसमें पैदा हो सकता था, नाममात्र के लिए भी उसने प्रकट नहीं किया।

मैंने अभिवादन में एकाध शब्द कहा और पूछा कि यहाँ कौन सोया है।
‘मेरा बेटा,” उसने भावशून्य उदासीनता से जवाब दिया।
“बड़ा था?”
“बारह बरस का।”
“कब मरा?”
“चार साल पहले।”

उसने एक गहरी साँस ली और बाहर छिटक आयी लट को फिर बालों के नीचे खोंस लिया। दिन गर्म था। सूरज बेरहमी के साथ मुर्दों के इस नगर पर आग बरसा रहा था। क़ब्रों पर उगी इक्की-दुक्की घास तपन और धूल से पीली पड़ गयी थी। और धूल-धूसरित रूखे-सूखे पेड़, जो सलीबों के बीच उदास भाव से खड़े थे, इस हद तक निश्चल थे मानो वे भी मुर्दा बन गये हों।

“वह कैसे मरा?” लड़के की क़ब्र की ओर गरदन हिलाते हुए मैंने पूछा।

“घोड़ों से कुचलकर,” उसने संक्षेप में जवाब दिया और अपना झुर्रियाँ-पड़ा हाथ फैलाकर लड़के की कब्र सहलाने लगी।

“यह दुर्घटना कैसे घटी?”

मैं जानता था कि इस तरह खोद-बीन करना शालीनता के ख़िलाफ़ है, लेकिन इस स्त्री की निस्संगता ने गहरे कौतुक और चिढ़ का भाव मेरे हृदय में जगा दिया था। कुछ ऐसी समझ में न आने वाली सनक ने मुझे घेरा कि मैं उसकी आँखों में आँसू देखने के लिए ललक उठा। उसकी उदासीनता में कुछ था, जो अप्राकृतिक था, और साथ ही उसमें बनावट का भी कोई चिह्न नहीं दिखायी देता था।

मेरा सवाल सुनकर उसने एक बार फिर अपनी आँखें उठाकर मेरी आँखों में देखा। और जब वह सिर से पाँव तक मुझे अपनी नज़रों से परख चुकी तो उसने एक हल्की-सी साँस ली और अटूट उदासी में डूबी आवाज़ में अपनी कहानी सुनानी शुरू की।

“घटना इस प्रकार घटी। उसका पिता ग़बन के अपराध में डेढ़ साल के लिए जेल में बन्द हो गया। इस काल में हमने अपनी सारी जमा पूँजी खा डाली। यूँ हमारी वह जमा पूँजी कुछ अधिक थी भी नहीं। अपने आदमी के जेल से छूटने से पहले ईंधन की जगह मैं हार्स-रेडिश के डण्ठल जलाती थी। जान-पहचान के एक माली ने ख़राब हुए हार्स-रेडिश का गाड़ीभर बोझ मेरे घर भिजवा दिया था। मैंने उसे सुखा लिया और सूखी गोबर-लीद के साथ मिलाकर उसे जलाने लगी। उससे भयानक धुआँ निकलता और खाने का ज़ायक़ा ख़राब हो जाता। कोलुशा स्कूल जाता था। वह बहुत ही तेज़ और किफायतशार लड़का था। जब वह स्कूल से घर लौटता तो हमेशा एकाध कुन्दा या लकड़ियाँ – जो रास्ते में पड़ी मिलतीं – उठा लाता। वसन्त के दिन थे तब। बर्फ़ पिघल रही थी। और कोलुशा के पास कपड़े के जूतों के सिवा पाँवों में पहनने के लिए और कुछ नहीं था। जब वह उन्हें उतारता तो उसके पाँव लाल रंग की भाँति लाल निकलते। तभी उसके पिता को उन्होंने जेल से छोड़ा और गाड़ी में बैठाकर उसे घर लाये।

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