Gar Baazi Ishq Ki Baazi hai ~ Faiz Ahmed Faiz
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हाथ नहीं
सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ दिल बेच आएँ जाँ दे आएँ
दिल वालो कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं
जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं
मैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं याँ नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ
आशिक़ तो किसी का नाम नहीं कुछ इश्क़ किसी की ज़ात नहीं
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
इस ग़ज़ल का एक शेर करन जौहर द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ में भी सुनने को मिलता है। फ़िल्म के एक सीन में मशहूर अभिनेता शाहरुख़ ख़ान ‘गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है’ शेर को कहते हैं। हालाँकि फ़िल्म की ऑडीयन्स को ध्यान में रखते हुए शेर में थोड़ा सा बदलाव देखने को मिलता है। फ़िल्म में इस शेर को कुछ इस तरह पढ़ा गया है –
‘अगर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है तो जो चाहे लगा दो डर कैसा,
अगर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं’
ये बात बताना यहाँ ज़रूरी है कि फ़िल्म में शेर के मीटर का ख़याल नहीं रखा गया है।
(Faiz Ahmed Faiz)
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