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Subah Shayari Ghazal Zameen ShayariSubah Shayari

साहित्य दुनिया की आज हम एक और सीरीज़ शुरू’अ कर रहे हैं, “एक ज़मीन दो ग़ज़लें”. Ghazal Zameen Shayari इस सीरीज़ में हम एक ही ज़मीन में कही गयीं दो ग़ज़लें आपके सामने पेश करेंगे (हालाँकि एक ज़मीन में कई ग़ज़लें हो सकती हैं). इस सीरीज़ की पहली क़िश्त में हम “मख़दूम मुहीउद्दीन और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक ही ज़मीन पर कही गयी ग़ज़लें पेश कर रहे हैं.

मख़दूम की ग़ज़ल: आप की याद आती रही रात भर

आप की याद आती रही रात भर,
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर

रात भर दर्द की शम्अ जलती रही,
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर

बाँसुरी की सुरीली सुहानी सदा,
याद बन बन के आती रही रात भर

याद के चाँद दिल में उतरते रहे,
चाँदनी जगमगाती रही रात भर

कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा,
कोई आवाज़ आती रही रात भर

…………..

इसी ज़मीन पर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की ग़ज़ल-

“आप की याद आती रही रात भर”,
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

गाह जलती हुई गाह बुझती हुई,
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर

कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन,
कोई तस्वीर गाती रही रात भर

फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले,
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर

जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर,
हर सदा पर बुलाती रही रात भर

एक उम्मीद से दिल बहलता रहा,
इक तमन्ना सताती रही रात भर

दोनों ग़ज़लों की रदीफ़: रही रात भर
दोनों ग़ज़लों के क़ाफ़िए: आती, मुस्कुराती, थरथराती, आती, जगमगाती, आती (ये सभी मख़दूम ने इस्तेमाल किये हैं); आती, दुखाती, झिलमिलाती, गाती, सुनाती, बुलाती, सताती (ये “फ़ैज़” ने इस्तेमाल किये हैं)
बह्र:  
212 212 212 212  (फ़ा-इ-लुन फ़ा-इ-लुन फ़ा-इ-लुन फ़ा-इ-लुन)  [बह्रे-मुतदारिक मसम्मन सालिम]

**”फ़ैज़” की ग़ज़ल का पहला मिसरा एपॉस्ट्रॉफ़ी कॉमा में बंद है, इसका अर्थ है कि ये मिसरा उनका नहीं है, किसी और का है. इस ग़ज़ल में ये मिसरा मख़दूम की ग़ज़ल से लिया गया है.”फ़ैज़” ने ग़ज़ल “मख़दूम’ की याद में” कही है.

ज़मीन: हर ग़ज़ल की एक ज़मीन होती है. जिन ग़ज़लों के छंद, रदीफ़ और क़ाफ़िये एक ही होते हैं, उन्हें एक ही ज़मीन की ग़ज़लें कहते हैं. तरही मुशा’इरों में पढ़ी जाने वाली सारी ग़ज़लें एक ही ज़मीन की होती हैं. Ghazal Zameen Shayari

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