Khalilur Rahman Azmi ख़लील-उर-रहमान आज़मी के कुछ बेहतरीन शेर-
न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही
जिसे क़रीब से देखा वो दूसरा निकला
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ
हमें तो रास न आई किसी की महफ़िल भी
कोई ख़ुदा कोई हम-साया-ए-ख़ुदा निकला
मैं अपने घर को बुलंदी पे चढ़ के क्या देखूँ
उरूज-ए-फ़न मिरी दहलीज़ पर उतार मुझे
सुना रहा हूँ उन्हें झूठ-मूठ इक क़िस्सा
कि एक शख़्स मुहब्बत में कामयाब रहा
यूँ जी बहल गया है तिरी याद से मगर
तेरा ख़याल तेरे बराबर न हो सका
ये तमन्ना नहीं अब दाद-ए-हुनर दे कोई
आ के मुझ को मिरे होने की ख़बर दे कोई
अज़ल से था वो हमारे वजूद का हिस्सा
वो एक शख़्स कि जो हम पे मेहरबान हुआ
कहूँ ये कैसे कि जीने का हौसला देते
मगर यही कि मुझे ग़म कोई नया देते
शब-ए-गुज़िश्ता बहुत तेज़ चल रही थी हवा
सदा तो दी पे कहाँ तक तुझे सदा देते
वो दिन कब के बीत गए जब दिल सपनों से बहलता था
घर में कोई आए कि न आए एक दिया सा जलता था
कोई पुराना साथी भी शायद ही हमें पहचान सके
वर्ना इक दिन शहर-ए-वफ़ा में अपना सिक्का चलता था
दुनिया भर की राम-कहानी किस किस ढंग से कह डाली
अपनी कहने जब बैठे तो इक इक लफ़्ज़ पिघलता था
यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैं
ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैंने
घर में बैठे सोचा करते हमसे बढ़ कर कौन दुखी है
इक दिन घर की छत पे चढ़े तो देखा घर घर आग लगी है
हर दम फ़िक्र के मोती रोलें पर दो मीठे बोल न बोलें
भेद यहाँ के किस पे खोलें दुनिया ही कंगाल हुई है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
समझौते पर शायरी
ख़्वाब पर बेहतरीन शेर…
Khalilur Rahman Azmi