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Laddakh Review Mahendra SinghLadakh

Laddakh Review Mahendra Singh ~ कहते हैं अगर आपको ख़ुद को पहचानना हो तो यात्रा करनी चाहिए। अक्सर हम ख़ुद से मुलाक़ात कर पाते हैं जब हम यात्रा में होते हैं, आने वाली तरह-तरह की परिस्थितियों में हमारा व्यवहार किस तरह का होता है और हम किस तरह से उन परिस्थितियों को समझते हैं और उनके साथ संतुलन बनाते हैं, ये सभी अनुभव यात्रा के दौरान होता है। और एक बात भी जो यात्रा हमें सिखाती है वो ये कि हम अपने परिवार के साथ किस तरह से जुड़े हुए हैं साथ ही परिवार के सदस्यों का व्यवहार कैसा है। आज के समय में ये कटु सत्य है कि घर में साथ रहते हुए हम अपने परिवार से उस तरह से नहीं मिल पाते जैसे हम किसी सफ़र के दौरान मिल पाते हैं।

जब हम यात्रा के लिए किसी प्राकृतिक परिवेश में जाते हैं तो हम प्रकृति से भी कई नयी-नयी चीज़ें सीखते हैं। यात्रा से लौटकर हम कुछ नए बदलाव अपने अंदर महसूस करते हैं, कभी-कभी इन अनुभवों को हम ख़ुद तक सीमित न रखकर लोगों के साथ बाँटने की चाह भी अपने अंदर पाते हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ जब महेंद्र सिंह की कॉफ़ी टेबल बुक “लद्दाख़” पढ़ने मिली। इस किताब की सबसे बड़ी ख़ासियत ये लगी कि ये एक यात्रा वृतांत हो सकती थी जहाँ महेंद्र सिंह अपनी पूरी यात्रा का लेखाजोखा रख सकते थे, लेकिन उन्होंने इस यात्रा को एक अलग ही ढंग से पेश किया।

photos by Mahendra Singh for book Ladakh

जी हाँ, इस किताब में लद्दाख़ से जुड़ी क़रीब-क़रीब हर बात आपको जानने मिलती है। यही नहीं साथ में मिलते हैं बेहतरीन, ख़ूबसूरत तस्वीरें भी। ये तस्वीरें महेंद्र सिंह ने अपनी यात्रा के दौरान ख़ुद खींची हैं। इन तस्वीरों के साथ जब आप लद्दाख़, लेह, कारगिल जैसी जगहों के बारे में पढ़ते हैं तो वहाँ के मौसम, घर, लोग, बच्चे, पशु- पक्षी, पर्वत शृंखलाएँ, नदियाँ आदि की ख़ूबसूरती को निहार भी सकते हैं। इन तस्वीरों में लद्दाख़ नज़रों के सामने आ जाता है और जो वहाँ अब तक नहीं जा पाए हैं वो एक नया अनुभव भी ले पाते हैं। किसी यात्रा को एक सूत्र में पिरोकर पेश करने का ये एक निराला तरीक़ा है। इस किताब को पढ़ते हुए और तस्वीरों को देखते हुए लगता है जैसे लेखक लद्दाख़ को साथ ही ले आए हैं और उन्होंने ठाना है कि वो इस किताब के ज़रिए लोगों को भी लद्दाख़ की सैर करवा देंगे।

इस किताब में एक कोना ऐसा भी है जहाँ लेखक अपने अनुभव बाँटते हैं कि कैसे टेंट में रात बिताने पर उन्हें ठंडी हवा और प्रकृति के एक नए कठिन रूप का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार न मानते हुए प्रकृति के हर रूप को सर आँखों लिया। 2012 में लेखक इस यात्रा में अपने परिवार यानी पत्नी और दो बेटों के साथ गए थे। एक बात जो सराहनीय है वो ये कि लेखक ने उल्लेख किया है कि किताब में लगी सारी तस्वीरें उन्होंने ख़ुद ही खींची हैं लेकिन साथ ही वो ये भी बताते हैं कि कुछ तस्वीरें उनके बेटों की खींची हुई भी हैं और वो बक़ायदा पेज नंबर के साथ बेटों को उनकी खींची तस्वीर का क्रेडिट भी देते हैं। जाने क्यों पर ये बात तारीफ़ के क़ाबिल लगी।

photos by Mahendra Singh for book Ladakh

इस किताब के साथ ही लेखक की दूसरी किताब जो स्पिती के बारे में है वो भी हमें मिली है, अभी तो लद्दाख़ की ख़ूबसूरती से मन नहीं भरा है बार-बार पन्ने पलट-पलटकर तस्वीरों में खो जा रहा है, जल्द ही दूसरी किताब को पढ़कर उससे भी आपको अवगत करवाएँगे। इस किताब से एक- दो तस्वीरें आपके लिए लगा रहे हैं।
(तस्वीरों का सर्वाधिकार लेखक का ही है साहित्य दुनिया की ओर से सिर्फ़ किताब की ख़ूबसूरत तस्वीरों की झलक देने के लिए ही इन तस्वीरों को लगाया गया है)
Laddakh Review Mahendra Singh

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