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Madam Sahir Ludhiyanwi

नोट – उर्दू में “मैडम” को “मादाम” भी कहा जाता है।

आप बे-वज्ह परेशान सी क्यूँ हैं मादाम
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इंसान न रहते होंगे

नूर-ए-सरमाया से है रू-ए-तमद्दुन की जिला
हम जहाँ हैं वहाँ तहज़ीब नहीं पल सकती
मुफ़्लिसी हिस्स-ए-लताफ़त को मिटा देती है
भूक आदाब के साँचों में नहीं ढल सकती

लोग कहते हैं तो लोगों पे तअ’ज्जुब कैसा
सच तो कहते हैं कि नादारों की इज़्ज़त कैसी
लोग कहते हैं मगर आप अभी तक चुप हैं
आप भी कहिए ग़रीबों में शराफ़त कैसी

नेक मादाम बहुत जल्द वो दौर आएगा
जब हमें ज़ीस्त के अदवार परखने होंगे
अपनी ज़िल्लत की क़सम आपकी अज़्मत की क़सम
हमको ताज़ीम के मेआ’र परखने होंगे

हमने हर दौर में तज़लील सही है लेकिन
हमने हर दौर के चेहरे को ज़िया बख़्शी है
हमने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं
हमने हर दौर के हाथों को हिना बख़्शी है

लेकिन इन तल्ख़ मबाहिस से भला क्या हासिल
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मैं जहाँ हूँ वहाँ इंसान न रहते होंगे

वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ
कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ

Madam Sahir Ludhiyanwi

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