Ahmad Kamal Parwazi Best Sher
वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
मैं कुछ कहूँ तो तराज़ू निकाल लेता है
वो फूल तोड़े हमें कोई ए’तिराज़ नहीं
मगर वो तोड़ के ख़ुशबू निकाल लेता है
मैं इस लिए भी तिरे फ़न की क़द्र करता हूँ
तू झूठ बोल के आँसू निकाल लेता है
अँधेरे चीर के जुगनू निकालने का हुनर
बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है
वो बेवफ़ाई का इज़हार यूँ भी करता है
परिंदे मार के बाज़ू निकाल लेता है
अहमद हमदानी की शायरी
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मुझको मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
देर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है
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ख़ुदाया यूँ भी हो कि उसके हाथों क़त्ल हो जाऊँ
वही इक ऐसा क़ातिल है जो पेशा-वर नहीं लगता
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तुम मिरे साथ हो ये सच तो नहीं है लेकिन
मैं अगर झूठ न बोलूँ तो अकेला हो जाऊँ
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मैंने इस शहर में वो ठोकरें खाई हैं कि अब
आँख भी मूँद के गुज़रूँ तो गुज़र जाता हूँ
उर्दू के 150 फ़ेमस शेर
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इस क़दर आपके बदले हुए तेवर हैं कि मैं
अपनी ही चीज़ उठाते हुए डर जाता हूँ
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जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में
कभी कभी उसे आँसू निकल के देखते हैं
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रफ़ाक़तों का तवाज़ुन अगर बिगड़ जाए
ख़मोशियों के तआवुन से घर चला लेना
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तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
मर जाऊँ क्या किसी से मुहब्बत नहीं करूँ
Ahmad Kamal Parwazi Best Sher