Ahmad Salman Best Sher
जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे
जब अपनी अपनी मुहब्बतों के अज़ाब झेले तो लोग समझे
उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़लसफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे
वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया था
उन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल न उतरे तो लोग समझे
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उर्दू के 150 फ़ेमस शेर
मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ
तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो
कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं
जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शायरी है
जो कह सका था वो कह चुका हूँ जो रह गया है वो शायरी है
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काली रात के सहराओं में नूर-सिपारा लिक्खा था
जिस ने शहर की दीवारों पर पहला ना’रा लिक्खा था
लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और इक खट्टी गोली थी
ख़ून में डूबी इक तख़्ती पर ग़ैन-ग़ुबारा लिक्खा था
आख़िर हम ही मुजरिम ठहरे जाने किन किन जुर्मों के
फ़र्द-ए-अमल थी जाने किस की नाम हमारा लिक्खा था
सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उसकी राज-दुलारा लिक्खा था
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मोहसिन नक़वी: शायरी का एक जादुई सफर
ये शहर सारा तो रौशनी में खिला पड़ा है सो क्या लिखूँ मैं
वो दूर जंगल की झोंपड़ी में जो इक दिया है वो शाइरी है
Ahmad Salman Best Sher