Munir Niazi Shayari ~
1.
शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही
रात बादल इस तरह आए कि मैं तो डर गया
2.
दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़
याद पीछे खींचती है आस आगे की तरफ़
3.
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
4.
ख़राब सदियों की बे-ख़्वाबियाँ थीं आँखों में
अब इन बे-अंत ख़लाओं में ख़्वाब क्या देते
5.
हवा की तरह मुसाफ़िर थे दिलबरों के दिल
उन्हें बस एक ही घर का अज़ाब क्या देते
6.
शराब दिल की तलब थी शरा के पहरे में
हम इतनी तंगी में उस को शराब क्या देते
7.
‘मुनीर’ दश्त शुरूअ’ से सराब-आसा था
इस आइने को तमन्ना की आब क्या देते
8.
आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है
9.
मिलती नहीं पनाह हमें जिस ज़मीन पर
इक हश्र उस ज़मीं पे उठा देना चाहिए
10.
जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी ‘मुनीर’
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं
11.
घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
12.
रहना था उसके साथ बहुत देर तक मगर
इन रोज़ ओ शब में मुझको ये फ़ुर्सत नहीं मिली
13.
बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
इक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना
14.
छलकाए हुए चलना ख़ुशबू लब-ए-लालीं की
इक बाग़ सा साथ अपने महकाए हुए रहना
15.
उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए
पर्दे में चले जाना शरमाए हुए रहना
16.
इक शाम सी कर रखना काजल के करिश्मे से
इक चाँद सा आँखों में चमकाए हुए रहना
17.
आदत ही बना ली है तुमने तो ‘मुनीर’ अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना
18.
है ‘मुनीर’ तेरी निगाह में
कोई बात गहरे मलाल की
19.
क्यूँ ‘मुनीर’ अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
जितना तक़दीर में लिक्खा है अदा होता है
20.
ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे
21.
मुद्दत के ब’अद आज उसे देख कर ‘मुनीर’
इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया
22.
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझको खो दिया मैंने तुझे खोया नहीं
23.
ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उनमें जा कर मगर रहा न करो
24.
ख़्वाहिशें हैं घर से बाहर दूर जाने की बहुत
शौक़ लेकिन दिल में वापस लौट कर आने का था
25.
मुझसे बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ ‘मुनीर’
पर्दा सा कोई मेरे तिरे दरमियाँ तो है
26.
मुहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब’अद में होगी
गुज़र जाएँगे जब ये दिन ये उनकी याद में होगी
27.
था ‘मुनीर’ आग़ाज़ ही से रास्ता अपना ग़लत
इस का अंदाज़ा सफ़र की राइगानी से हुआ
28.
मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये
ये कैसा जब्र है मैं जिस के इख़्तियार में हूँ
Munir Niazi Poetry In Hindi
29.
अच्छी मिसाल बनतीं ज़ाहिर अगर वो होतीं
इन नेकियों को हम तो दरिया में डाल आए
30.
ज़मीं के गिर्द भी पानी ज़मीं की तह में भी
ये शहर जम के खड़ा है जो तैरता ही न हो
31.
इक और दरिया का सामना था ‘मुनीर’ मुझको
मैं एक दरिया के पार उतरा तो मैंने देखा
32.
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
दुनिया से ख़ामुशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या
33.
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
इक ख़्वाब हैं जहाँ में बिखर जाएँ हम तो क्या
34.
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
35.
दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र
दरिया-ए-ग़म के पार उतर जाएँ हम तो क्या
36.
तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई
देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने
37.
थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ
मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूँ
38.
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
39.
वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में ‘मुनीर’
आज कल होता गया और दिन हवा होते गए
40.
वो जिसको मैं समझता रहा कामयाब दिन
वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन
41.
आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही
42.
कल मैंने उसको देखा तो देखा नहीं गया
मुझसे बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था
43.
कोई तो है ‘मुनीर’ जिसे फ़िक्र है मिरी
ये जान कर अजीब सी हैरत हुई मुझे
44.
मैं तो ‘मुनीर’ आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में
45
‘मुनीर’ अच्छा नहीं लगता ये तेरा
किसी के हिज्र में बीमार होना
46.
कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी ‘मुनीर’
मज़ा तो जब है कि उस शोख़ को पता ही न हो
47.
किसी अकेली शाम की चुप में
गीत पुराने गा के देखो
48.
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
हुस्न वालों की सादगी न गई
49.
मैं उसको देख के चुप था उसी की शादी में
मज़ा तो सारा इसी रस्म के निबाह में था
50.
कितने यार हैं फिर भी ‘मुनीर’ इस आबादी में अकेला है
अपने ही ग़म के नश्शे से अपना जी बहलाता है
51.
नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं
52.
मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं
मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ
53.
‘मुनीर’ इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को
हमेशा एक सा होना नहीं है
54.
ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ
बारे वो शोख़ पहले से चालाक तो हुआ ~ Munir Niazi Shayari