दो शा’इर, दो नज़्में (3): फ़रहत एहसास और फ़हमीदा रियाज़
Farhat Ehsas Nazm फ़रहत एहसास की नज़्म: ख़ुद-आगही वो कैसी तारीक घड़ी थी, जब मुझको एहसास हुआ था मैं तन्हा हूँ उस दिन भी सीधा-सादा सूरज निकला था शहर में कोई शोर नहीं था घर में कोई और नहीं था अम्माँ आटा गूँध रही थीं अब्बा चारपाई पर बैठे ऊँघ रहे थे धीरे-धीरे धूप चढ़ी थी … Read more