दुष्यंत कुमार के बेहतरीन शेर..
लहू-लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो शरीफ़ लोग उठे दूर जा के बैठ गए ______ तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ ___ कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए ____ ज़िंदगी जब अज़ाब होती है आशिक़ी कामयाब होती है … Read more