चाँद का मुँह टेढ़ा है ~ गजानन माधव मुक्तिबोध

Chand Ka Munh Tedha Hai Main Tum Logon Se Door Hoon Gajanan Madhav Muktibodh

Chand Ka Munh Tedha Hai ~ चाँद का मुँह टेढ़ा है ~ गजानन माधव मुक्तिबोध नगर के बीचों-बीच आधी रात—अँधेरे की काली स्याह शिलाओं से बनी हुई भीतों और अहातों के, काँच-टुकड़े जमे हुए ऊँचे-ऊँचे कंधों पर चाँदनी की फैली हुई सँवलाई झालरें। कारख़ाना—अहाते के उस पार धूम्र मुख चिमनियों के ऊँचे-ऊँचे उद्गार—चिह्नाकार—मीनार मीनारों के … Read more

मैं तुम लोगों से दूर हूँ ~ गजानन माधव मुक्तिबोध

Chand Ka Munh Tedha Hai Main Tum Logon Se Door Hoon Gajanan Madhav Muktibodh

Main Tum Logon Se Door Hoon ~ मैं तुम लोगों से दूर हूँ ~ गजानन माधव मुक्तिबोध मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, अकेले में साहचर्य का हाथ है, … Read more