घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “पुरस्कार” का दूसरा भाग

पुरस्कार-जयशंकर प्रसाद Jaishankar Prasad Kahani Puruskar घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “पुरस्कार” का पहला भाग भाग-2 (अब तक आपने पढ़ा..कौशल राज्य का कृषि-उत्सव चल रहा है, जिसमें एक दिन के लिए राजा कृषक बनकर एक खेत जोतते और रोपते हैं, जिसके लिए गाँव के ही किसी किसान का उपजाऊ खेत चुना जाता … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “पुरस्कार” का पहला भाग

पुरस्कार-जयशंकर प्रसाद Jaishankar Prasad Ki Kahani Puruskar भाग-1 आर्द्रा नक्षत्र, आकाश में काले-काले बादलों की घुमड़, जिसमें देव-दुन्दुभी का गम्भीर घोष। प्राची के एक निरभ्र कोने से स्वर्ण-पुरुष झाँकने लगा था; देखने लगा महाराज की सवारी। शैलमाला के अञ्चल में समतल उर्वरा भूमि से सोंधी बास उठ रही थी। नगर-तोरण से जयघोष हुआ, भीड़ में … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की कहानी “घंटाघर” का अंतिम भाग

Ishq ki shayari Kaifi Azmi Shayari Hindi Noshi Gilani Shayari Qateel Shifai Daagh Dehlvi Hari Shankar Parsai Jaishankar Prasad Amrita Pritam Ki Kahani Vrahaspativar ka vrat ~ "बृहस्पतिवार का व्रत" Rajendra Bala Ghosh Ki Kahani Dulaiwali

घंटाघर- चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ Chandradhar Guleri Ghantaghar घनी कहानी, छोटी शाखा: चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की कहानी “घंटाघर” का पहला भाग भाग-2 (अब तक आपने पढ़ा। एक इंसान ने अपने जाने के लिए एक मार्ग बनाया और उसके बाद वो एक राजमार्ग बन गया, और उस रास्ते से आगे एक पूज्य स्थान बन गया। वो इंसान … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की कहानी “घंटाघर” का पहला भाग

Famous Urdu Shayari Hum Maut Bhi Aaye to Masroor Nahin Hote

घंटाघर- चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ Chandradhar Sharma Guleri Ghantaghar भाग-1 एक मनुष्य को कहीं जाना था। उसने अपने पैरों से उपजाऊ भूमि को बंध्या करके पगडंडी काटी और वह वहाँ पर पहला पहुँचने वाला हुआ। दूसरे, तीसरे और चौथे ने वास्तव में उस पगडंडी को चौड़ी किया और कुछ वर्षों तक यों ही लगातार जाते रहने … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी “गूँगी” का अंतिम भाग

Tagore Premchand Kahani

गूँगी-रविंद्रनाथ टैगोर Tagore Goongi
भाग-1

(अब तक आपने पढ़ा…चंडीगढ़ के वाणीकंठ की छोटी पुत्री सुभाषिणी जन्म से ही मूक है और उसके माता-पिता के लिए चिंता का विषय भी है। सुभा की चुप को घर के लोग उसकी कुछ महसूस न कर पाने वाली शक्ति भी समझने लगे हैं और वो उसके सामने ही उसके विषय में तरह-तरह की राय देते रहते है, जिस पर सुभा कुछ भी व्यक्त तो नहीं करती और जितना उसकी आँखों से व्यक्त हो भी जाता है उसे भी घर के लोग अनदेखा ही कर देते हैं। फ़ुर्सत मिलते ही सुभा नदी के किनारे मिलती है और जब मन व्यथित हो तो गौशाला में अपनी गायों के गले लगे हुए। इन सबके अलावा उसका एक मित्र और है प्रताप, जिसे परिवार के लोगों ने भी आलसी और कामचोर घोषित किया हुआ है। लेकिन सुभा उसे अपना मित्र मानती है। प्रताप को मछली पकड़ने का शौक़ है और सुभा को नदी किनारे बैठने का बस यहीं दोनों की दोस्ती जम गयी। प्रताप बैठा-बैठा मछलियाँ पकड़ता रहता और नदी किनारे सुभा का मन प्रताप को लेकर तरह-तरह के सपनों को चुनता और उसमें सुभा खो जाया करती। लेकिन प्रताप के मन की कौन कहे वो तो कहकर भी शायद कुछ न कहता था। अब आगे..)

Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी “गूँगी” का दूसरा भाग

Tagore Premchand Kahani

गूँगी-रविंद्रनाथ टैगोर Tagore Ki Kahani Goongi घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी “गूँगी” का पहला भाग भाग-2 (अब तक आपने पढ़ा..चंडीपुर में रहने वाली सुभाषिणी जन्म से ही मूक है इसलिए माता-पिता उसके लिए मन में अलग से भाव रखते हैं जहाँ पिता उसे बड़ी दोनों बहनों से ज़रा ज़्यादा स्नेह देते हैं वहीं … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी “गूँगी” का पहला भाग

Tagore Premchand Kahani

गूँगी-रविंद्रनाथ टैगोर Goongi Rabindra Nath Tagore भाग-1 कन्या का नाम जब सुभाषिणी रखा गया था तब कौन जानता था कि वह गूंगी होगी। इसके पहले, उसकी दो बड़ी बहनों के सुकेशिनी और सुहासिनी नाम रखे जा चुके थे, इसी से तुकबन्दी मिलाने के हेतु उसके पिता ने छोटी कन्या का नाम रख दिया सुभाषिणी। अब … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का अंतिम भाग

Urdu ke ustaad shayar ki shayari Acharya Chatur Sen Ki Kahani

फंदा- आचार्य चतुरसेन शास्त्री  Acharya Chatur Sen Ki Kahani घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का पहला भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का दूसरा भाग भाग-3 (अब तक आपने पढ़ा…एक मास्टर साहब पर जर्मनी से षड्यंत्र का आरोप लगने के कारण वो जेल में हैं और घर … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का दूसरा भाग

Urdu ke ustaad shayar ki shayari Acharya Chatur Sen Ki Kahani

फंदा- आचार्य चतुरसेन शास्त्री  Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda
घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का पहला भाग
भाग-2 
(अब तक आपने पढ़ा..सज्जन, व्यवहार कुशल और मिलनसार व्यक्तित्व वाले मास्टर जी पर जर्मनी से षड्यंत्र का अभियोग चलने के कारण उन्हें जेल हो गयी है और फाँसी की सज़ा का ऐलान भी हो चुका है। उनकी पत्नी और बच्चे इस समय बेहद ग़रीबी का सामना कर रहे हैं, जहाँ बेटा आठ साल की छोटी-सी उम्र से ही जिम्मेदारियाँ सम्भालने की ओर बढ़ रहा है वहीं तीन वर्षीय बेटी भी अपनी माँ के दुःख को देखकर कभी खाना न माँगने की बात कहती है। ग़रीबी बच्चों के मस्तिष्क को समय से पूर्व ही परिपक्व बना रही है. उधर मकान मालिक आकर मास्टर साहब की पत्नी को दो बातें सुनाकर घर ख़ाली करने के लिए कह चुका है। इस बात से सम्भालते कि उनके घर नया आगंतुक आता है जो उनका जान-पहचान का मालूम होता है..लेकिन जब मास्टर साहब की पत्नी उनसे पैसों की मदद माँगती है तो वो उसे टाल देते हैं, लेकिन उनकी बातचीत अभी भी जारी है..अब आगे..)

आगन्तुक ने कहा- “मैं अपने पास से जो कहो दे दूँ। तुम्हें कितने रुपये चाहिए?”
गृहिणी ने धीमे स्वर में कहा- “आपको मैं कष्ट नहीं देना चाहती”
“मैं क्या ग़ैर हो गया?”
स्त्री बोली- “नहीं”
अब आगन्तुक ज़रा और पास खिसककर बोला- “मेरी बात मानो, घर चलो, सुख से रहो। जो होना था हुआ, होना होगा हो जाएगा। किसी के साथ मरा तो जाता ही नहीं है। मेरा जगत में और कौन है, तुम क्या सब बातें समझती नहीं हो?”
“ख़ूब समझती हूँ, अब आप कृपा कर चले जाएँ”
“पर मैं जो बात बारम्बार कहता हूँ, वह समझती क्यों नहीं?”
“कब का समझ चुकी हूँ। तुम मुझ दुखिया को सता कर क्या पाओगे? मेरा रास्ता छोड़ दो, मैं यहाँ अपने दिन काटने आई हूँ, आपका कुछ लेती नहीं हूँ। उनका मकान-जायदाद सभी आपके हाथ है, आपका रहे, मैं केवल यही चाहती हूँ कि आप चले जाइए” Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda

आगन्तुक ने कड़े होकर कहा- “क्या मैं साँप हूँ या घिनौना कुत्ता हूँ?”
“आप जो कुछ हों, मुझे इस पर विचार नहीं करना है”
“और तुम्हारी यह हिम्मत और हेकड़ी अब भी?”
गृहिणी चुप रही
“यहाँ भी मेरे एक इशारे से निकाली जाओगी, फिर क्या भीख माँगोगी?”
गृहणी ने कोई उत्तर नहीं दिया।
आगन्तुक ने उबाल में आकर कहा- “लो साफ़-साफ़ कहता हूँ, तुम्हें मेरी बात मंजूर है या नहीं?” Phanda

गृहिणी चुपचाप बच्चे को छाती से छिपाए बैठी रही। आगन्तुक ने उसका हाथ पकड़ कर कहा- “आज मैं इधर-उधर कर के जाऊँगा”
स्त्री ने हाथ झटक कर कहा- “पैरों पड़ती हूँ, चले जाओ”
“तेरा हिमायती कौन है?”
“मैं ग़रीब गाय हूँ”
“फिर लातें क्यों चलाती है? बोल, चलेगी?”
“नहीं”
“मेरी बात मानेगी?”
“नहीं”
“तुझे घमण्ड किसका है?”
“मुझे कुछ घमण्ड नहीं है”
“तुझे आज रात को ही सड़क पर खड़ा होना पड़ेगा”
“भाग्य में जो लिखा है, होगा”
“लोहे के टके की आशा न रखना…”
गृहिणी खड़ी हो गई। उसने अस्वाभाविक तेज-स्वर में कहा- “दूर हो…ओ पापी….भगवान से डर, मौत जिनके घर मेहमान बनी बैठी है, उन्हें न सता, भय उन्हें क्या डराएगा? विश्वासघाती भाई…भाई को फँसा कर फाँसी पहुँचाने वाले अधर्मी…उन्हें फँसाया, ज़मीन-जायदाद ली, अब उसकी अनाथ ग़रीब दुखिया स्त्री की आबरू भी लेने की इच्छा करता है? अरे पापी, हट जा…हट जा…”

आवेश में आने से स्त्री का वस्त्र खिसककर नीचे गिर गया। वह दशा देख कर बच्चे रो उठे।
बड़े बच्चे के मुँह पर ज़ोर से तमाचा मारकर आगन्तुक ने कहा- “तेरी पारसाई आज ही देख ली जाएगी..गुण्डे….”-  वह कुछ और न बोल सका-वह दोनों हाथ मीचकर क्रोध से काँपने लगा।
स्त्री ने कहा- “जा…जा…पापी-जा…” और वह बदहवास चक्कर खाकर गिर गई।
दोनों बच्चे ज़ोर-ज़ोर से रो पड़े। आगन्तुक तेज़ी से चल दिया। Phanda

वही दिन और वही प्रातःकाल था, परन्तु उस भाग्यहीन घर से लगभग पौन मील दूर दिल्ली की जेल में एक और ही दृश्य सामने था। जेल के अस्पताल में बिल्कुल एक ओर एक छोटी-सी कोठरी थी। जिन क़ैदियों को बिल्कुल एकान्त ही में रहने की आवश्यकता होती थी, वे ही इसमें रक्खे जाते थे। इस वक्त भी इसमें एक क़ैदी था। उसकी आकृति कितनी घिनौनी, वेश कैसा मलिन और चेष्टा कैसी भयंकर थी कि ओफ़…कई दिन से वह कैदी भयानक आत्मिक ज्वर से तप रहा था, और कोठरी में रक्खा गया था।

कोठरी बड़ी काली, मनहूस और कोरी अनगढ़े पत्थरों की बनी हुई थी, और उसमें अनगिनत मकड़ियों के जाले, छिपकलियाँ तथा कीड़े-मकोड़े रेंग रहे थे। उसमें न सफाई थी, न प्रकाश। ऊपर एक छोटा-सा छेद था। उसी में से सूरज की रोशनी कमरे में पड़ते ही उसकी नींद टूट गई। प्यास से उसका कण्ठ सूख रहा था। वह बड़े कष्ट से चारपाई के इर्द-गिर्द हाथ बढ़ाकर कोई पीने की चीज़ ढूँढने लगा। पर उसे कुछ भी न मिला। तंग प्यास की तकलीफ़ से छटपटा कर वह बड़बड़ाने लगा- “कौन देखता है? कौन सुनता है? हाय…इतनी लापरवाही से तो लोग पशुओं को भी नहीं रखते। डॉक्टर मेरे सामने ही उस वार्डर से थोड़ा दूध दो-तीन बार देने और रात दो-तीन बार देखने को कह गया था। पर कोई क्यों परवाह करता? मेरी नींद तो रात भर टूटती रही है। मैंने प्रत्येक घन्टा सुना है। यह पहाड़ सी रात किस तकलीफ़ से काटी है…यह कष्ट तो फाँसी से अधिक है” Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda

रोगी अब चुपचाप कुछ सोचने लगा। धीरे-धीरे प्रकाश ने फैलकर कमरे को स्पष्ट प्रकाशमान कर दिया। धीरे-धीरे उसकी प्यास असह्य हो चली, पर वह बेचारा कर ही क्या सकता था। वार्डर की ख़ूँख़ार फटकार से भयभीत होने पर भी वह एक बूँद पानी पाने के लिए गला फाड़कर चिल्लाने लगा। पर न कोई आया और न किसी ने जवाब ही दिया। वह प्यास से बेदम हो रहा था-उसका प्राण निकल जाता था। वह बारम्बार ‘पानी-पानी’ चिल्लाने लगा। कभी अनुनय-विनय भी करता, कभी गालियाँ बकने लगता।

“ईश्वर के लिए थोड़ा पानी दे जाओ, हाय…एक बूँद पानी, अरे मैं तुम लोगों को बड़ा कष्ट देता हूँ…पर क्या करूँ, प्यास के मारे मेरे प्राण निकल रहे हैं। अरे, मैं भी तु्म्हारे जैसा मनुष्य हूँ। मुझे इस तरह क्यों तड़पा रहे हो-इतनी उपेक्षा तो कोई बाज़ारू कुत्तों की भी नहीं करता। अरे आओ, नहीं तो मैं बिछौने से उठकर, सब दरवाज़े तोड़ डालूँगा और इतनी ज़ोर से चिल्लाऊँगा कि सुपरिन्टेन्डेन्ट के बंगले तक आवाज़ पहुँचेगी”
इस पर एक घिनौने मोटे-ताज़े अधेड़ व्यक्ति ने छेद में से सिर निकालकर कहा- “अरे अभागे…क्यों इतना चिल्लाता है, क्यों दुनिया की नींद ख़राब करता है?”

Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का पहला भाग

Ishq ki shayari Kaifi Azmi Shayari Hindi Noshi Gilani Shayari Qateel Shifai Daagh Dehlvi Hari Shankar Parsai Jaishankar Prasad Amrita Pritam Ki Kahani Vrahaspativar ka vrat ~ "बृहस्पतिवार का व्रत" Rajendra Bala Ghosh Ki Kahani Dulaiwali

फंदा- आचार्य चतुरसेन शास्त्री  Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda भाग-1  सन् १९१७ का दिसम्बर था। भयानक सर्दी थी। दिल्ली के दरीबे-मुहल्ले की एक तंग गली में एक अँधेरे और गन्दे मकान में तीन प्राणी थे। कोठरी के एक कोने में एक स्त्री बैठी हुई अपने गोद के बच्चे को दूध पिला रही थी, परन्तु … Read more