दो शाइर, दो नज़्में(10): कैफ़ी आज़मी और मुनीर नियाज़ी
Kaifi Azmi Shayari Hindi कैफ़ी आज़मी की नज़्म- दाएरा रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे, फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ बार-हा तोड़ चुका हूँ जिन को उन्हीं दीवारों से टकराता हूँ रोज़ बसते हैं कई शहर नए रोज़ धरती में समा जाते हैं ज़लज़लों में थी ज़रा सी गर्मी वो भी अब रोज़ ही … Read more