शहरयार की फ़िल्मों में आयी ग़ज़लें…
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है धूप के क़हर का डर है तो दयार-ए-शब से सर-बरहना कोई परछाईं निकलती क्यूँ है मुझको अपना न कहा इस का गिला तुझ से नहीं इस का शिकवा है कि बेगाना समझती क्यूँ है तुझसे मिल कर भी न … Read more