University Shayari ~ आप किसी भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में जाइए, वहाँ आम छात्रों में आपको शेर ओ शाइरी का शौक़ मिलना तय है. चाहे कोई इतिहास पढ़ रहा हो, साइकोलॉजी या फिर गणित उसका इंटरेस्ट कहीं न कहीं शेर ओ शाइरी में भी होता है. और अगर आप हिन्दी, उर्दू या किसी अन्य भाषा से सम्बंधित डिपार्टमेंट में चले जाएँगे तो आपको वहाँ शेर ओ शाइरी के शौक़ीन भी मिलेंगे और शेर ओ शाइरी करने वाले भी. ऐसे छात्रों का जोश देखते ही बनता है. इस पोस्ट में हम आपसे उन्हीं अश’आर (शेर का बहुवचन) को शेयर करने जा रहे हैं जिन्हें कॉलेज या यूनिवर्सिटी के छात्र पसंद करते हैं.
असरार उल हक़ मजाज़ – मजाज़ का जन्म 1911 में लखनऊ शहर में हुआ था. मजाज़ रोमांटिक मिज़ाज के क्रांतिकारी शाइर थे. मजाज़ के शेरों को छात्र बहुत पसंद करते हैं. उनके कुछ शेर यहाँ पेश हैं..
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
मिरी बर्बादियों का हम-नशीनो
तुम्हें क्या ख़ुद मुझे भी ग़म नहीं है
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मुहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है
हिन्दू चला गया न मुसलमाँ चला गया
इंसाँ की जुस्तुजू में इक इंसाँ चला गया
तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं
परवीन शाकिर के बेहतरीन शेर…
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जौन एलिया (Jaun Elia)- 1931 में अमरोहा में जन्मे जौन का परिवार बंटवारे के बाद पाकिस्तान में जा बसा. नए दौर की शायरी में जौन का बहुत सम्मान है और युवा उन्हें बहुत पसंद करते हैं. 8 नवम्बर 2002 को जौन ने इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके मशहूर शेर..
क्या सितम है कि अब तिरी सूरत
ग़ौर करने पे याद आती है
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुमसे मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या
आदमी वक़्त पर गया होगा
वक़्त पहले गुज़र गया होगा
मुझको आदत है रूठ जाने की
आप मुझको मना लिया कीजे
इक अजब हाल है कि अब उसको
याद करना भी बेवफ़ाई है
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उससे जलते हैं
जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है
उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं
सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं
बहज़ाद लखनवी के बेहतरीन शेर…
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तहज़ीब हाफ़ी – पाकिस्तान के युवा शाइर तहज़ीब हाफ़ी की भारत में भी बहुत लोकप्रियता है. उनके कुछ शेर..
दिल मुहब्बत में मुब्तला हो जाए
जो अभी तक न हो सका हो जाए
मैं उसको हर रोज़ बस यही एक झूठ सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उससे जीत गया हूँ कि मात हो गई है
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
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जावेद अख़्तर –
मुझे मायूस भी करती नहीं है
यही आदत तिरी अच्छी नहीं है
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
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उमैर नज्मी – युवा पीढ़ी उमैर नज्मी की शायरी को बहुत पसंद कर रही है.
बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं
नहीं लगेगा उसे देख कर, मगर ख़ुश है
मैं ख़ुश नहीं हूँ, मगर देख कर लगेगा नहीं !
किसी गली में किराए पे घर लिया उसने
फिर उस गली में घरों के किराए बढ़ने लगे
नासिर काज़मी के बेहतरीन शेर..
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University Shayari
साहिर लुधियानवी – 1921 में लुधियाना में जन्मे अब्दुल हयी को हम उनके तख़ल्लुस ‘साहिर’ के नाम से जानते हैं. साहिर में इंक़लाब का जोश और मायूसी दोनों देखने को मिलती है. उनकी ग़ज़लें, नज़्में तो मशहूर हैं ही, साथ ही उन्होंने बेहद कामयाब गाने भी लिखे.
हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें`
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझसे मिल कर उदास रहता हूँ
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मुहब्बत से मुहब्बत का सिला देते हैं
अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया
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रहमान फ़ारिस – रहमान फ़ारिस आज के दौर के शायर हैं.
तेरे बिन घड़ियाँ गिनी हैं रात दिन
नौ बरस ग्यारह महीने सात दिन
कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए
पराई आग मिरा घर जला रही है सो अब
ख़मोश रहना नहीं ग़ुल मचाना बनता है
बिछड़ने वाले तुझे किस तरह बताऊँ मैं
कि याद आना नहीं तेरा आना बनता है
_____ University Shayari
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ – उर्दू शाइरी के चार स्तंभों की बात जब की जाती है तो उनमें मीर, ग़ालिब, और इक़बाल के साथ फ़ैज़ का नाम भी लिया जाता है. फ़ैज़ की शायरी में रोमांस और इंक़लाब दोनों है. उनके कुछ शेर..
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उनको बहुत ना-गवार गुज़री है
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
फ़िलिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी ~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हमने
दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
”आपकी याद आती रही रात भर”
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
और क्या देखने को बाक़ी है
आपसे दिल लगा के देख लिया
_____ University Shayari
अल्लामा इक़बाल- उर्दू शाइरी के स्तम्भ माने जाने वाले इक़बाल के यहाँ रोमांस भी है, देश ओ दुनिया की बात भी है और इंक़लाब भी. उनके शेर..
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा
झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर
सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अपनी अना की आज भी तस्कीन हमने की
जी भर के उस के हुस्न की तौहीन हमने की
इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं University Shayari
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
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अहमद फ़राज़ – फ़राज़ 20वीं शताब्दी के सबसे पॉपुलर शायरों में शुमार किए जाते हैं और इस शताब्दी में भी उनकी शोहरत में कोई कमी नहीं हुई है.
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
क्या क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ
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जोश मलीहाबादी- इन्क़लाबी शायरी में जोश का मक़ाम आला है. उनकी शायरी में आम लोगों की फ़िक्र साफ़ झलकती है.
उसने वा’दा किया है आने का
रंग देखो ग़रीब ख़ाने का
जिसको तुम भूल गए याद करे कौन उसको
जिसको तुम याद हो वो और किसे याद करे
मेरे रोने का जिसमें क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है
इंसान के लहू को पियो इज़्न-ए-आम है
अंगूर की शराब का पीना हराम है
तबस्सुम की सज़ा कितनी कड़ी है
गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है University Shayari
एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आप के
एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी
और उनकी तरफ़ ख़ुदाई है
आड़े आया न कोई मुश्किल में
मशवरे दे के हट गए अहबाब
मुझको तो होश नहीं तुमको ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया
_________ University Shayari
राहत इन्दौरी- राहत इन्दौरी इस दौर के सबसे पॉपुलर शायरों में शुमार किए जाते हैं.
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
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गुलज़ार – गुलज़ार की शायरी को युवा बहुत पसंद करते हैं.
आपके बा’द हर घड़ी हमने
आपके साथ ही गुज़ारी है
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
जिसकी आँखों में कटी थीं सदियाँ
उसने सदियों की जुदाई दी है
आइना देख कर तसल्ली हुई
हमको इस घर में जानता है कोई
आदतन तुमने कर दिए वादे
आदतन हमने ए’तिबार किया
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निदा फ़ाज़ली – निदा फ़ाज़ली की फ़िक्र आज के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करती है. निदा की शायरी को युवा वर्ग बहुत पसंद करता है.
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना University Shayari
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सबने इंसान न बनने की क़सम खाई है
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया
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दुष्यंत कुमार – सोशलिस्ट राजनीति से जुड़े लोग दुष्यंत कुमार को बहुत पसंद करते हैं. उनकी शायरी समाज की शायरी है.
लहू-लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ़ लोग उठे दूर जा के बैठ गए
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
तुम्हारे पावँ के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारो
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो
अदम गोंडवी – सत्ता से सवाल करना हो या उसकी आलोचना अदम गोंडवी की शायरी युवा वर्ग को भाती है.
जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे
ये वंदेमातरम् का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगना दाम कर देंगे
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
University Shayari