गुप्तकथा- गोपालराम गहमरी
भाग-8
(अब तक आपने पढ़ा..हैदर अपने दोस्त जासूस से अपने पिता चिराग़ अली और उनके एक मेहमान इब्राहिम भाई की बात कहता है। इब्राहिम भाई के सबसे ख़राब व्यवहार पर भी चिराग़ अली का उसे कुछ न कहना हैदर को खटकता है और एक रोज़ हैदर से हुई बहस और मारपीट के बाद इब्राहिम भाई चिराग़ अली को धमकी देकर चला जाता है। कुछ दिनों बाद चिराग़ अली को एक चिट्ठी मिलती है, जिसके बाद रात में हैदर चिराग़ अली को कुछ लिखते देखता है। अगले दिन उनकी तबियत और बिगड़ जाती है। जब तक इतनी बात बताकर हैदर, अपने जासूस मित्र के साथ घर पहुँचता है, तब तक उसके पिता अपना शरीर त्याग चुके होते हैं। अंतिम क्रिया के बाद जासूस को घर की तलाशी में मिला चिराग़ अली का ख़त, हैदर के कहने पर जासूस पढ़ता है। जिसमें चिराग़ अली ने अपनी पुरानी ज़िंदगी के बारे में लिखा है कि ये उनका असली नाम नहीं है और वो अपने गाँव के बहुत ही बिगड़े हुए लड़कों में से एक थे, जो लड़कियों पर बुरी नज़र रखा करते थे। ऐसे ही एक मामले में वो अपने दोस्त के साथ मिलकर एक विधवा सुंदरी को उठा लाते हैं। जिसका बाप उसे ढूँढने के लिए डाके की रिपोर्ट लिखवाता है लेकिन वो अपनी बेटी का पता नहीं पाता। इधर अपने दोस्त के छोड़ने पर चिराग़ अली उस स्त्री को अपने घर लाकर पत्नी की तरह रखता है, दोनों साथ रहने लगते हैं। अब आगे..)
‘इसी तरह कुछ दिन और बीतने पर मुझे उसके चाल-चलन में कुछ खटका हुआ। धीरे-धीरे ऐसे काम देखने में आए जिनसे मैंने समझ लिया कि मेरा संदेह बेजड़-पैर का नहीं है। जहाँ मैंने उसको रखा था वहाँ इसी इब्राहिम भाई का छोटा भाई यासीन रहता था। मुझे मालूम हो गया कि वह यासीन उस पापिन से मिला है। अब मैं मन ही मन उस अभागिनी पर बहुत बिगड़ा और दोनों को कब पाऊँगा, इसी से चिंता में दिन बिताने लगा। एक दिन मैं उस पापिनी से यह कहकर बाहर गया कि अपने मित्र के साथ दूसरे गाँव को जाता हूँ तीन चार दिन पीछे आऊँगा। बस घर से चलकर मैं उसी अपने मित्र के घर रात भर रहा। दूसरे दिन भी वहीं ठहरा। जब रात हुई खाना खाकर मेरा मित्र सो गया था, मैं एक बड़ी भुजाली लेकर वहाँ से चला। जहाँ उस पापिनी को रखा गया था, लेकिन भीतर न जाकर दरवाज़े पर चोर की तरह छिपा खड़ा रहा।
‘जब रात बहुत गई, गाँव के लोग सो गए, सर्वत्र सन्नाटा छा गया तब वह सुंदरी साँपिन घर से बाहर निकली और दरवाज़े पर आकर खड़ी हुई। उसके थोड़ी ही देर बाद यासीन भी अपने घर से आया। तब दोनों एक साथ घर में घुस गए। दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं पीछे की दीवार टपकर भीतर गया। आँगन से दालान में पहुँचता हूँ कि सामने ही यासीन मिला। अपने हाथ की भुजाली से मैंने उसको इतने जोर से मारा कि वह वहीं गिर गया। यासीन को गिरते देखकर पापिन चिल्ला उठी। मैंने उसी दम उसको भी काटकर उसका काम तमाम किया। और दोनों की लाश पास ही पास रखकर बाहर आया तो देखता हूँ कि मुहल्ले के बहुत से आदमी दरवाजे पर खड़े है। जब मैं बाहर निकला तब वह सब लोग मुझे पकड़ने दौड़े लेकिन हाथ में छुरी देखकर कोई पास नहीं आया। मैं अपनी जान बचाकर जल्दी से भागा लेकिन पीछे से किसी ने आकर मेरे हाथ पर ऐसी लाठी मारी कि भुजाली धरती पर गिर गई। तब मुझे ख़ाली हाथ पाकर कई और दौड़ने वालों ने पकड़ लिया। होते-होते पुलिस को ख़बर मिली। और मुझे हथकड़ी डालकर उसने हवालात में बंद किया।
‘मैंने तो अपनी समझ में उन दोनों को जान से मारकर छोड़ा था लेकिन जब मैं हवालात में गया तब सुनने लगा कि यासीन और वह पापिनी दोनों जीते हैं। थोड़ी देर बाद किसी ने आकर कहा कि अब दोनों ही मर गए।
‘दो ख़ून करने के कारण मेरे ऊपर मुक़दमा हुआ। इन्हीं दिनों उस कुकर्मिनी के बाप को भी ख़बर मिली उसने भी सरकार में नालिश की। अब मेरे ऊपर यह अपराध लगा कि मैंने ही उसके घर में डाका डालकर उस लड़की को चुराया था और अब मैंने ही उसका ख़ून किया है। बस उसका बाप कचहरी में खड़ा होकर मेरे ऊपर मुक़दमा साबित करने की तन मन धन से तदबीर करने लगा। उधर यासीन का ख़ून करने के कारण उसका भाई यही इब्राहिम अपने भाई का बदला लेने के लिए पैरवी करने लगा। मैं हवालत में पड़ा सड़ने लगा।
‘पेशी पर पेशी बढ़ते बढ़ाते बहुत दिनों पीछे मुकदमा चला। मेरे बाप ने ख़ूब धन ख़र्च करके मुझे बचाने के लिए बड़े नामी वकील बैरिस्टर खड़े किए मेरे उस धनी मीत ने भी ख़र्च के लिए हाथ नहीं खींचा। उसने भी मुझे बचाने के लिए बड़ी मदद की लेकिन किसी का किया कुछ नहीं हुआ। क़सूर साबित होने से जज ने मुझे फाँसी पर लटकाने का हुक्म दिया। मेरा विचार ज़िले में नहीं हुआ जज साहब दौरे में थे। मेरा विचार भी एक गाँव में ही हुआ। जब विचार हो जाने पर मैं ज़िले में लाया जाने लगा तब रास्ते में रात हो जाने के कारण एक थाने में मैं रखा गया। थाने के गारद पर दो सिपाहियों को पहरा था। जब रात बहुत गई। ठंडी हवा चली नसीब की बात कौन जानता था दोनों पहरेदार वहीं सो गए। जब मैंने गारद के भीतर से ही उनको नींद में देखा घट ज़ोर से हथकड़ी अलग कर ली। इसमें मेरे हाथ का चमड़ा बहुत कट गया था। हथकड़ी उसी गारद में छोड़कर बाहर आने की चिंता करने लगा, लेकिन खूब अच्छी तरह देखने पर मालूम हुआ कि गारद से बाहर होने का कहीं रास्ता नहीं है जो है वह बंद है। उसमें फाटक नहीं लोहे के छड़ लगे है और उसी के बाहर दोनों पहरेदार नींद में पड़े है।
‘मैंने उन छड़ों में से एक को पकड़कर हिलाया तो हिलने लगा। मालूम हुआ कि जिस चौखट में वह जड़े हैं वह सड़ गया है मैंने जोर से एक छड़ को खींचा तो वह सटाक से काठ से अलग हो गया। एक ही छड़ के निकल जाने पर मेरे निकल भागने की जगह हो गई। मैं गारद से बाहर होकर भागा।
‘बाहर तो भागा लेकिन पहरे वाले सिपाहियों में से एक की नींद खुल गई। “आसामी भागा” चिल्लाते हुए दोनों मेरे पीछे दौड़े। मैं भी जितना ज़ोर से बना जी छोड़कर भागा। काँटे कुश कैसे क्या पाँव के नीचे पड़ते हैं कुछ भी मुझे ध्यान नहीं रहा। जिसको फाँसी पर चढ़ने की तैयारी हो चुकी है उसको जान का क्या लोभ? मैं उस अँधेरी रात में ऐसा भागा कि पीछा करने वालों को मेरा पता नहीं मिला। मैं भागता हुआ एक जंगल में घुसा फिर थोड़ी देर दौड़ने पर वह जंगल भी समाप्त हो गया। मैं फिर मैदान पाकर उसी तरह दौड़ता गया और बराबर रात भर दौड़ता रहा।
दौड़ते दौड़ते जब सवेरा हुआ तब मुझे एक सघन जंगल मिला मैं उसी में घुस गया। मुझे यह नहीं मालूम हुआ कि रात भर में कितना चला हूँ। जब दिन निकल आया उसी जंगल में दिन भर पड़ा रहा। जब सूरज डूब गया फिर मैं बाहर हुआ। और पहली रात के समान बराबर रात भर चला गया। दो रात बराबर चलने पर जी में अब भरोसा हुआ कि मैं बहुत दूर चला आया हूँ, जब सवेरा हुआ तब फिर मैं जंगल में नहीं गया। दिन निकलने पर मुझे एक बस्ती मिली। मैं एक गृहस्थ के द्वार पर गया उसने मुझे पाहुन की भाँति आदर दिया। कई दिनों बाद उस गृहस्थ का अन्न खाकर मैंने विश्राम किया। पूछने पर मालूम हुआ कि मैं अपने यहाँ से चालीस कोस दूर आ गया हूँ। दिन भर विश्राम करके फिर वहाँ से चला और जब सवेरा हुआ, ठहर गया।