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गुप्तकथा- गोपालराम गहमरी  Gopalram Gahmari Guptkatha

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पहला भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का दूसरा भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का तीसरा भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का चौथा भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पाँचवां भाग

भाग-6

(अब तक आपने पढ़ा..इलाक़े के मशहूर और दानी व्यक्ति चिराग़ अली का बेटा हैदर अपने मित्र जासूस को अपने घर की बातें बताता है। हैदर बताता है कि उसके पिता से मिलने एक आदमी आया था और उसकी पहचान जानते ही उसके पिता ने उसे घर में अच्छी जगह और नौकर दे दिया। वो व्यक्ति इब्राहिम भाई था, जिसने घर में सारे नौकरों पर अपना रुआब चलाना शुरू कर दिया था और कई विश्वासपात्र नौकर उनका घर छोड़कर चले गए थे। जब इब्राहिम ने हैदर पर अपना हुकुम चलाना चाहा तो उसके और हैदर में ठन गयी। इस बात की ख़बर चिराग़ अली को होने पर वो हैदर पर नाराज़ होते हैं और इसी बहस में इब्राहिम चिराग़ अली को धमकी देकर चला जाता है। इसके बाद से चिराग़ अली की हालत बिगड़ने लगती है, कुछ दिनों बाद उसे एक ख़त मिलता है जिसे पाकर चिराग़ अली में एक उत्साह नज़र आता है। हैदर देखता है कि रात में उसके पिता एक ख़त लिखते हैं और अगले दिन उनकी सेहत बिगड़ जाती है। हैदर जासूस से कहता है कि वो साथ चलकर उसके पिता से मिल ले लेकिन उनके घर आते तक चिराग़ अली की मृत्यु हो जाती है। घर पर मातम का माहौल है..हैदर समेत सभी अंतिम क्रिया के लिए जाते हैं। जासूस और हैदर के मन में ये बात अब भी घूम रही है कि आख़िर चिट्ठी का राज़ क्या है? अब आगे..) Gopalram Gahmari Guptkatha

बैठक में अब अकेला जासूस ही रह गया। मृत शरीर बिदा होने के बाद चिराग़ अली के अनेक हितमित्र वहाँ आए लेकिन सब चले गए। दो ही तीन आदमी उनमें से जासूस के साथ वहाँ बैठे रहे।

अब घर सूना पाकर जासूस अपना काम करने लगा। पहले धीरे से उसी घर में पहुँचा जिसमें चिराग अली बीमार होकर पड़े थे। देखा तो वहाँ जिस पलंग पर हैदर के पिता पड़े थे वहाँ दो चार टेबल, कुर्सी, तिपाई के सिवाय उस घर में कुछ नहीं था। उस घर में जासूस को जाते देखकर चिराग अली का एक नौकर वहाँ पहुँचा। उसको जासूस ने कई बार चिराग अली के पास देखा था। उन्होंने उसे चिराग अली का पुराना और विश्वासी नौकर समझा था। उसको देखते ही जासूस ने उससे पूछा – “क्यों जी! यही चिराग अली के सोने का कमरा है?”

नौकर – “हाँ साहब कुछ दिन तो इसी में सोते थे। उनके सिवाय और किसी को यहाँ सोने का हुक्म नहीं था”

जासूस – “कितने दिनों से वह इस घर में सोते थे?”

नौकर – “हम तो पाँच-सात बरस से उनको इसी घर में सोते देखते थे?”

जासूस – “उनका संदूक वगैर किस घर में रहता है?”

नौकर – “उनको मैंने किसी चीज़ को कभी अपने हाथ से कहीं रखते नहीं देखा। जब उनको जो चीज़ की दरकार होती उसको वह हैदर अली साहब से माँग लेते थे या किसी नौकर से माँगते थे”

जासूस – “वह अपने ज़रूरी काग़ज़ पत्र कहाँ रखते थे?”

नौकर – “हमने तो उनको कोई भी काग़ज़ पत्र अपने हाथ से रखते नहीं देखा”

जासूस – “और रुपए पैसे?”

नौकर – रुपए पैसे भी हमने कभी उनको अपने हाथ से छूते नहीं देखा। जब जरूरत होती नौकरों को हुक्म देकर पूरा करते थे”

जासूस – “चिराग़ अली ने मरने से पहले अपने हाथ एक बड़ा काग़ज़ लिखा था तुमने देखा था?”

नौकर – “हाँ देखा था। एक दिन दिन-रात बैठकर उन्होंने बहुत सा लिखा था”

जासूस – “तुमको मालूम है, उन्होंने उसको कहाँ रखा था?”

नौकर – “मैं नहीं जानता कि उन्होंने उसको क्या किया?” Gopalram Gahmari Guptkatha

जासूस – “उसे वह किसी को दे तो नहीं गए?”

नौकर – “किसी को देते भी नहीं देखा। जान पड़ता है उन्होंने किसी को दिया भी नहीं। दिया होता तो हम लोग जरूर जान जाते”

जासूस – “तो फिर उसको किया क्या?”

नौकर – “मैं तो समझता हूँ कहीं रख गए हैं”

जासूस – “रख गए हों तो कहाँ रख सकते हैं तुम जान सकते हो?”

नौकर – “रखने की तो कोई जगह मुझे नहीं मालूम होती। अगर रखा होगा तो ज़रूर इसी घर में कहीं न कहीं होगा। इससे बाहर तो नहीं रख सकते थे”

जासूस – “अच्छा आओ हम तुम मिलकर खोजें देखें इस घर में से काग़ज़ को बाहर कर सकते हैं या नहीं?”

अब दोनों उस घर में वही चिराग़ अली का लिखा लंबा काग़ज़ ढूँढ़ने लगे। उस घर में कुछ बहुत सामान भरा तो नहीं था। पलंग के सिवाय घर में ढूँढ़ डालने में पूरे पाँच मिनट भी नहीं लगे।

इसके पीछे पलंग ढूँढ़ने लगे। ऊपर जो पाँच-छह तकिए रखे थे उनको ख़ूब देखने पर भी दोनों को कहीं काग़ज़ का पता नहीं लगा। फिर दो चादर बिछी थी, उनको भी उठा कर फेंक दिया। नीचे दो तोसक थे। वह भी उठाया गया, लेकिन कहीं काग़ज़ का पता नहीं लगा। तोसक के नीचे तीन गद्दियाँ बिछी थीं। ऊपर की गद्दी निकाल डाली तो भी कुछ हाथ नहीं आया।

जब जासूस ने झटकारकर दूसरी गद्दी फेंकी तब देखता क्या है कि दूसरी और तीसरी गद्दी के बीच में एक बड़ा लिफ़ाफ़ा पड़ा है। उसको जासूस ने उठाकर देखा तो उसपर लिखा था – “मेरे जीते जी कोई इस लिफाफे को पावे तो बिना खोले हुए मेरे पास लौटा दे।”- बस इसके नीचे चिराग़ अली की सही। उसको पढ़ते ही जासूस ने समझ लिया कि चिराग़ अली ने मरने से पहले दिन-रात जागरण करके जो काग़ज़ लिखा था वह इसी लिफ़ाफ़े के भीतर है, जासूस के मन में उस लिफ़ाफ़े को खोलकर पढ़ने की उत्कंठा हुई लेकिन फिर मन में कुछ सोचकर यही ठीक किया कि, जब तक हैदर अली कब्रिस्तान से न लौट आवे तब तक खोलना या पढ़ना उचित नहीं है।

हैदर अपने बाप को दफ़न करके सब लोगों के साथ जब घर लौट आया तब जासूस ने उसके हाथ में वही गद्दी के नीचे पाया हुआ बड़ा लिफ़ाफ़ा दिया और जैसे उसको पाया था सो सब कह सुनाया।

हैदर उसको लेकर पहले ऊपर का लिखा पढ़ा, फिर तुरंत लिफ़ाफ़े को फाड़कर भीतर से लंबी चिट्ठी निकाली वह चिट्ठी के ही ढंग पर लिखी थी लेकिन लंबी बहुत थी। उसकी लिखावट देखते ही हैदर ने कहा – “यह काग़ज़ हमारे बाबा के हाथ ही का लिखा हुआ है”

इतना कहकर हैदर ने वह लंबी चिट्ठी जासूस के हाथ मे दिया और कहा – “मैं बहुत थका हुआ हूँ आप ही पढ़ डालिए देखें क्या लिखा हैं?”

जासूस हैदर से चिट्ठी लेकर पढ़ने लगा।

क्रमशः Gopalram Gahmari Guptkatha

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का सातवाँ भाग
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