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लगभग 35 साल का एक ख़ान आंगन में आकर रुक गया । हमेशा की तरह उसकी आवाज सुनाई दी – ”अम्मा… हींग लोगी?” पीठ पर बँधे हुए पीपे को खोलकर उसने, नीचे रख दिया और मौलसिरी के नीचे बने हुए चबूतरे पर बैठ गया । भीतर बरामदे से नौ – दस वर्ष के एक बालक ने बाहर निकलकर उत्तर दिया – ”अभी कुछ नहीं लेना है, जाओ !”
पर ख़ान भला क्यों जाने लगा ? ज़रा आराम से बैठ गया और अपने सोफ़े के छोर से हवा करता हुआ बोला- ”अम्मा, हींग ले लो, अम्मां ! हम अपने देश जाता हैं, बहुत दिनों में लौटेगा ।” सावित्री रसोईघर से हाथ धोकर बाहर आई और बोली – ”हींग तो बहुत-सी ले रखी है ख़ान ! अभी पंद्रह दिन हुए नहीं, तुमसे ही तो ली थी ।”

वह उसी स्वर में फिर बोला-”हेरा हींग है माँ, हमको तुम्हारे हाथ की बोहनी लगती है । एक ही तोला ले लो, पर लो ज़रूर ।” इतना कहकर फ़ौरन एक डिब्बा सावित्री के सामने सरकाते हुए कहा- ”तुम और कुछ मत देखो माँ, यह हींग एक नंबर है, हम तुम्हें धोखा नहीं देगा ।”

सावित्री बोली- ”पर हींग लेकर करूंगी क्या ? ढेर-सी तो रखी है ।” ख़ान ने कहा-”कुछ भी ले लो अम्मां! हम देने के लिए आया है, घर में पड़ी रहेगी । हम अपने देश कूं जाता है । ख़ुदा जाने, कब लौटेगा ?” और ख़ान बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए हींग तोलने लगा । इस पर सावित्री के बच्चे नाराज़ हुए । सभी बोल उठे-”मत लेना माँ, तुम कभी न लेना । ज़बरदस्ती तोले जा रहा है ।” सावित्री ने किसी की बात का उत्तर न देकर, हींग की पुड़िया ले ली । पूछा-”कितने पैसे हुए ख़ान?”

”पैंतीस पैसे अम्मां!” ख़ान ने उत्तर दिया । सावित्री ने सात पैसे तोले के भाव से पांच तोले का दाम, पैंतीस पैसे लाकर ख़ान को दे दिए । ख़ान सलाम करके चला गया । पर बच्चों को माँ की यह बात अच्छी न लगी ।
बड़े लड़के ने कहा-”माँ, तुमने ख़ान को वैसे ही पैंतीस पैसे दे दिए । हींग की कुछ ज़रूरत नहीं थी ।” छोटा माँ से चिढ़कर बोला-”दो माँ, पैंतीस पैसे हमको भी दो । हम बिना लिए न रहेंगे ।” लड़की जिसकी उम्र आठ साल की थी, बड़े गंभीर स्वर में बोली-”तुम माँ से पैसा न मांगो । वह तुम्हें न देंगी । उनका बेटा वही ख़ान है ।” सावित्री को बच्चों की बातों पर हँसी आ रही थी । उसने अपनी हँसी दबाकर बनावटी क्रोध से कहा-”चलो-चलो, बड़ी बातें बनाने लग गए हो । खाना तैयार है, खाओ । ”

छोटा बोला- ”पहले पैसे दो । तुमने ख़ान को दिए हैं ।”
सावित्री ने कहा- ”ख़ान ने पैसे के बदले में हींग दी है । तुम क्या दोगे?” छोटा बोला- ” मिट्टी देंगे ।” सावित्री हँस पड़ी- ” अच्छा चलो, पहले खाना खा लो, फिर मैं रुपया तुड़वाकर तीनों को पैसे दूंगी ।”

खाना खाते-खाते हिसाब लगाया । तीनों में बराबर पैसे कैसे बंटे ? छोटा कुछ पैसे कम लेने की बात पर बिगड़ पड़ा-”कभी नहीं, मैं कम पैसे नहीं लूंगा!” दोनों में मारपीट हो चुकी होती, यदि मुन्नी थोड़े कम पैसे स्वयं लेना स्वीकार न कर लेती ।

कई महीने बीत गए । सावित्री की सब हींग खत्म हो गई । इस बीच होली आई । होली के अवसर पर शहर में खासी मारपीट हो गई थी । सावित्री कभी-कभी सोचती, हींग वाला ख़ान तो नहीं मार डाला गया? न जाने क्यों, उस हींग वाले ख़ान की याद उसे प्राय: आ जाया करती थी ।

क्रमशः

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