Urdu Bhasha Ka Itihas: अक्सर उर्दू के चाहने वाले इस बारे में बातचीत करते मिल जाते हैं कि आख़िर उर्दू ज़बान की शुरुआत कहाँ से हुई. देखा जाए तो मूलतः उर्दू तुर्की भाषा का लफ़्ज़ है जिसका अर्थ फ़ौज होता है।
क्या कहते हैं फ़िराक़ (Urdu Bhasha Ka Itihas)
उर्दू शब्द मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के काल में पहले-पहल फ़ौज के लिए प्रयोग किया गया था। मुग़ल फ़ौज का नाम उर्दू-ए-मोअल्ला था अर्थात महान सेना। इस फ़ौज के साथ बहुत बड़ा बाज़ार था जो उर्दू बाज़ार (फ़ौजी बाज़ार) कहलाता था। इस बाज़ार का अस्सी-नब्बे प्रतिशत व्यापार हिंदूओं के हाथ में था। अधिकांश मंडियाँ, आढ़तें, और दुकानें हिन्दू महाजनों की थीं। वस्तुओं के क्रय-विक्रय के साथ शब्दों का लेन-देन भी शुरू हो गया और इसी तरह मुसलमानों ने सत्तर अस्सी हज़ार शुद्ध हिंदी शब्द और हिंदी भाषा के समस्त टुकड़े और नियमावली अंगीकार कर ली।
(उर्दू भाषा और साहित्य – फ़िराक़ गोरखपुरी)
फ़िराक़ ने जो बात कही है वो बात मुहम्मद हुसैन आज़ाद की मशहूर किताब ‘आब-ए-हयात’ में भी बताई गई है। आब-ए-हयात 19वीं शताब्दी में उर्दू ज़बान की सबसे अधिक बिकने वाली किताब है। उर्दू भाषा की उत्पत्ति के बारे में आज़ाद अपनी किताब में कहते हैं कि हालाँकि उर्दू का पेड़ संस्कृत और ब्रज भाषा के साथ बड़ा हुआ लेकिन इसके फूल फ़ारसी की हवाओं से ही खिले. (Urdu Bhasha Ka Itihas)