आचार्य चतुरसेन की किताब गोली

आचार्य चतुरसेन की किताब गोली की समीक्षा:  आज हम यहाँ जिस पुस्तक की चर्चा करना चाहेंगे वो किताब है “गोली”। आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखी इस पुस्तक मे राजस्थान की एक पुरानी परंपरा को दर्शाया गया है। इस किताब के अनुसार प्राचीन समय मे ऐसा रिवाज था कि समाज में निचले तबक़े से आने वाली लड़कियों को राजा अपनी दासी बनाकर रखते थे और इन्हे गोली कहा जाता था। गोली और बाँदी के जीवन में सिर्फ़ इतना ही फ़र्क़ कहा जा सकता है कि बाँदियाँ रानियों की आवभगत और मनोरंजन की साथी बना करतीं वहीं गोलियों को राजाओं के साथ रहने मिलता था। गोलियों के रहन सहन का पूरा खर्च राजा ही उठाते थे लेकिन उनकी संतान,जो की राजा की ही संतान हुआ करती थी,को राजा का नाम या रुतबा नहीं मिलता था। इन संतानों को अपने कथित पिता के साथ रहना पड़ता था, जो कि आमतौर पर गोली के सेवक की तरह राजा द्वारा ही रखा जाता था।

इस पुस्तक मे इस प्रथा को विस्तार से समझाया और दर्शाया गया है। इस पुस्तक की कहानी एक गोली के संघर्ष की गाथा है, जिसे पता भी नहीं चलता कि वो कब गोली बन गई है और वो बाक़ियों से अलग सारे सुख भोगते हुये भी मन मे एक अलग सी टीस का अनुभव करती है। राजा का उसके प्रति असीम प्रेम उसे उसकी अपनी बचपन की सहेली, जो की उस राजा की पत्नी है, से दूर करने का कारण बनता है।

एक साधारण और सीधी लड़की के आम जीवन से शुरू हुई ये कहानी उसके मानसिक और सामाजिक विकास तक सुगमता से पहुँचती है। वो न सिर्फ़ स्वयं को शिक्षित कर अपना विकास करती है बल्कि बाकी गोलियों के जीवन को सुधारने के लिए भी क़दम उठाती है। इस संघर्ष में उसे कई बार जान तक दाँव पर लगाने की स्थिति का सामना करना पड़ता है लेकिन वो पीछे नहीं हटती और इन सारी बुराइयों से लड़ने के लिए आगे बढ़ती है।

किस तरह शिक्षा से एक इंसान का जीवन बदल सकता है और किस तरह एक आम इंसान भी कुरीतियों को मिटाने के लिए आगे आ सकता है, ये बात बख़ूबी समझायी गयी है। जीवन को बदलने के लिए अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ना ज़रूरी है ये बात भी सामने आती है साथ ही अगर अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ना है तो मन में मज़बूत विचारों का होना ज़रूरी है इस बात पर ज़ोर दिया गया है।

आचार्य चतुरसेन ने इस कहानी को एक लेखक की तरह न लिखकर स्वयं को किरदार के रूप में रखकर कहा है। पढ़ते हुए जब गोली खुद अपनी जीवन गाथा कहती है और अपनी आपबीती सुनाती है, तो जुड़ने में आसानी होती है। साथ ही आचार्य चतुरसेन अपने लेखन के ज़रिए उस बीते समय का ख़ाका खींचते हैं। राजाओं की फ़िज़ूलख़र्ची और सिरफिरेपन को भी ख़ूब अच्छी तरह सामने लाते हैं और एक गोली के रूप मे उनकी खिल्ली उड़ाने मे भी पीछे नहीं रहते। बेहतरीन लेखन,घटनाओं का चित्रण इतना खूबसूरत है कि पाठकों के सामने एक-एक दृश्य सजीव हो उठता है। इस किताब को पढ़ना एक अलग अनुभव देगा।

आचार्य चतुरसेन की किताब गोली की समीक्षा

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