fbpx
Lu Xun ki KahaniLu Xun ki Kahani

Lu Xun ki Kahani अब तक आपने पढ़ा.. श्रीमती किंग अपनी बेटी एलिगैन्स के साथ कमरे को व्यवस्थित कर रही थी तभी उसको मालूम हुआ कि सू मिंग घर आ गया. एलिगैन्स ने अपने पिता के हाथ में पार्सल देखा तो वो उस पर झपटी लेकिन उसकी माँ ने उसे एक ओर धकेल दिया. वो एक सुगन्धित साबुन था. विदेशी साबुन को पाकर श्रीमती किंग ने रात में घिस घिस कर नहाया और कान के नीचे गर्दन पर लगे मैल को साफ़ किया. बच्चे साबुन पर लिपटा काग़ज़ चाहते थे, इसलिए उसने नहाने के बाद साबुन को ऊपर के स्थान पर रख दिया ताकि वो बच्चों की पहुँच से दूर हो जाए. इस बीच उसके पति ने बेटे को आवाज़ दी और उससे सवाल करने लगा. किसी बात से परेशान सू मिंग बच्चे पर बेवजह अपनी नाराज़गी दिखाने लगा. आख़िर उसने बताया कि जब वो साबुन की टिकिया ख़रीद रहा था तो किस तरह कुछ विद्यार्थी उसका मज़ाक़ उड़ा रहे थे. वो इस क़दर समाज से परेशान था कि लगता था कि अभी नयी तहज़ीब के ख़िलाफ़ जंग छेड़ देगा. रात के भोजन के समय जबकि सब बैठे थे तभी इंगित की कटोरी लुड़क गई और सारा शोरबा मेज़ पर फैल गया, ये बात उसे पसंद नहीं आयी. वो इतने में स्वे चैंग से सवाल करता है..क्या तुमने उस शब्द का अर्थ ढूँढ लिया… अब आगे..

लू शुन की कहानी ‘साबुन की टिकिया’ का पहला भाग..
लू शुन की कहानी ‘साबुन की टिकिया’ का दूसरा भाग..
लू शुन की कहानी ‘साबुन की टिकिया’ का तीसरा भाग..

”देखा । न तो तुम कुछ सीख पाये, न तुम्हें रत्ती भर शऊर आया । सिर्फ भर-पेट खाना जानते हो । काश तुम उस आज्ञाकारिणी लड़की का आदर्श सामने रख सकते । भिखारिन होते हुए भी वह अपनी दादी की आज्ञा का पालन करती थी..खुद भूखी रह कर भी दादी को खिलाती थी । तुम विद्यार्थी पितृ-भक्ति की महिमा को क्या जानो? बेहया, कमज़ात. तुम भी उन छोकरों जैसे बनोगे, जिनकी बातें मैंने सुनी थीं । ” इसी समय स्वे-चेंग ने हिचकिचाते हुए पिता की बात काटी, ‘ ‘एक शब्द है-पता नहीं शायद वही हो । मेरे ख्याल में उन्होंने ‘ओल्ड फूल’……

“?”

”ठीक है । कुछ ऐसा ही शब्द था । इसका अर्थ क्या है”

”मैं-मैं ठीक नहीं जानता ।”

”क्या बकते हो? तुग जानबूझ कर नहीं बता रहे । तुम सब के सब विद्यार्थी हरामी हो ।”

उसकी पत्नी ने आखिर प्रतिरोध किया । ”तुम्हें आज क्या भूत सवार है? चैन से खाना तो दूर रहा, इस तरह चिल्ला रहे हो जैसे पड़ौसियों के कुत्तों या मुर्गों का पीछा करते हैं । आखिर बच्चे-बच्चे ही हैं ।

”क्या ?” सू-मिंग और बिगड़ता, लेकिन जब उसने देखा कि पत्नी ने रूठ कर मुँह फुला लिया है और उसके माथे की त्यौरियाँ चढ़ी हुई हैं तो उसने- चट अपनी आवाज़ बदल कर सुलह के स्वर में कहा, “मेरे ऊपर कोई भूत सवार नहीं । मैं तो सिर्फ स्वे-चेंग को अक्ल की बातें बता रहा था.”

”बेचारा लड़का क्या जाने कि तुम्हारे दिमाग़ में क्या भरा है पत्नी ने तैश में आ कर कहा..अगर वह समझ-दार होता तो कभी का उस आज्ञाकारिणी लड़की को यहाँ ले आता । सीधी-सादी बात है, एक टिकिया साबुन उसे दे आये हो । बस दूसरी टिकिया की कसर बाकी रह गई ।”

”यह तुम क्या कह रही हो ?” उसने हैरानी से कहा । “वे तो उन छोकरों के शब्द थे.”

”मुझे इसमें शक है । बस झटपट दूसरी टिकिया खरीदकर उसे रगड़-रगड़ कर नहलवा दो। फिर वेदी पर सजाकर पूजा करना-चारों ओर सुख-शान्ति की वर्षा होने लगेगी ।”

”आखिर तुम्हारी मंशा क्या है इस बात से साबुन का क्या सम्बन्ध? मुझे याद आया कि तुम्हें साबुन की जरूरत है और. ….. ।” (Lu Xun ki Kahani)

”वाह! साबुन का बड़ा गहरा सम्बन्ध है । तुमने यह टिकिया उस आज्ञाकारिणी लड़की के लिये ख़रीदी थी । जाकर उसे नहलाओ-घुलाओ मुझे इसकी ज़रूरत नहीं । न मैं इस क़ाबिल ही हूँ । इसके अलावा, मैं उस लड़की की एहसान मंद नहीं होना चाहती ।”

”हाय री औरत-ज़ात !” सू-मिंग नें ग़ुस्से से तंग आकर कहा । फिर वह चुप हो गया । उसकी समझ में न आया कि आगे क्या कहे । उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें चमक रहीं थीं, जैसी स्वे-चेंग के माथे पर कसरत के बाद चमका करती थी ।

”अभी औरतों के बारे में क्या कह रहे थे? हम औरतें, तुम जैसे मर्दों से लाख दर्जे अच्छी हैं । तुम लोग जब पढ़ने वाली छोकरियों की निन्दा करते हो, तो अट्टारह-बीस वर्ष की जवान भिखारिनों की तारीफ करते समय तुम्हारी नीयत कभी साफ नहीं होती । मेरी तरफ से जा कर उसे रगड़-रगड़ कर नहलाओ । लानत है मर्दों की बात पर ।”

यह बताना मुश्किल है कि श्रीमती सू-मिंग का यह प्रलाप और कितनी देर तक जारी रहता। सौभाग्य से इसी समय एक मेहमान आ टपका और पतिदेव उससे मिलने के लिए दूसरे कमरे में चले गये ।

लौटने पर सू-मिंग ने देखा कि एलिस और इंगित खाने की मेज़ के नीचे फर्श पर बैठी खेल रही थीं । स्वे-चेंग मेज़ पर बैठा शब्दकोश से माथापच्ची कर रहा था.. उसकी पत्नी लैम्प से दूर एक कोने में ऊँची कुर्सी पर बैठी अनमने भाव से कुछ देख रही थी ।

उसके रंग-ढंग को देख कर सू-मिंग को कुछ बोलने का साहस न हुआ ।

बहुत आनाकानी करने के बाद भी दूसरे दिन तड़के-तड़के ही श्रीमती सू-मिंग ने साबुन का सदुपयोग किया । आँखें खोलते ही सू-मिंग को पत्नी के दर्शन हुए । वह नल के आगे झुकी हुई थी, और रगड़-रगड़ कर अपनी गर्दन धो रही थी । उसके कानों पर साबुन की झाग जमी थी । और असंख्य कंकड़ों जैसे बुदबुदे उठ रहे थे ।

उस दिन से श्रीमती सू-मिंग ख़ुशबूदार साबुन की एक टिकिया हमेशा अपने पास रखतीं । साबुन ने अपना चमत्कार दिखा दिया था । काश! सू-मिंग के मन में लगे कन्फूशियस के नीति-दर्शन के जाल भी साबुन से साफ हो सकते!

समाप्त.. !
Lu Xun ki Kahani

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *