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Lu Xun Hindi Kahaniसाबुन की टिकिया

Lu Xun Hindi Kahani पहला भाग
साबुन की टिकिया
लेखक- लू शुन

श्रीमती किंग कमरे की उत्तर वाली खिड़की की ओर पीठ करके, सूरज की अन्तिम किरणों की रोशनी में पितर-पूजा में जलाने के लिए काग़ज़ के नोटों की तह कर रही थीं। उसकी आठ वर्ष की लड़की एलिगैंस भी उसका हाथ बंटा रही थी। इसी समय मोटे कपड़े के तले वाले वृत्तों की फटफट सुनाई दी । और वह जान गई कि सू-मिंग घर आ गया है। वह सर झुकाकर पूर्ववत् काम में जुटी रही। उसके पति के भद्दे बूटों की फटफट ऊंची होती गई और वह उसके सिरहाने आ खड़ा हुआ । जब उसने कनखियों से देखा कि वह पीछे की ओर झुका हुआ अपनी काली फतूही के नीचे पहने लम्बे चोरों की जेब में से कुछ निकालने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहा है, तो उसे विवश होकर अपना सर उठाना पड़ा ।

भरसक कोशिश के बाद कहीं वह सफल हुआ । उसके हाथ में ताजे हरे रंग की एक तिरछी सी चीज थी जो उसने पत्नी को थमा दी । उसे हाथ में लेने की देर थी कि मन्द और मधुर सुगन्ध से कमरा महक उठा । फीके पीले ढक्कन पर एक सुनहरी मोहर थी जिस पर विदेशी. भाषा के अक्षरों में एक सुन्दर नमूना बना हुआ था ।
एलिगैंस फौरन बण्डल की ओर झपटी, लेकिन उसकी माँ ने उसे एक ओर धकेल दिया । ”आज बाहर गये थे?” पार्सल को ध्यान से देखते हुए उसने पति से पूछा ।

”देखो, देखो!” पति ने पार्सल पर अपनी आँखें गड़ाते हुए आग्रह किया ।

कोंपल जैसे हरे रंग के काग़ज को ध्यान से खोलने पर भीतर की ओर एक पतला फीका हरा काग़ज दिखाई दिया, जो रोशनी में देखने से फीका पीला लगता था। इस काग़ज के भीतर वह चीज थी –एक सख्त, नर्म, लचीला, टुकड़ा जिस पर हरे रंग की लकीरें थीं । इसी में से सुगन्धि आ रही थी ।
”सचमुच ही यह अच्छा साबुन है–” श्रीमती सू-मिंग नें उस कीमती उपहार को बच्चे की तरह उठा कर नाक से लगाते हुए कहा ।
”सचमुच” पति ने हामी भरी, ”तुम्हारे इस्तमाल के लिये अच्छा है ।” उसने देखा कि बोलते समय पति की नजरें उसकी गर्दन पर झुकी हुई थीं । शर्म के मारे उसके गाल तमतमा गये । कुछ रोज पहले उसे लगा था कि उसकी गर्दन और कानों के पीछे मैल की पपड़ी जम गई है, लेकिन इस ओर उसने विशेष ध्यान नहीं दिया । पीले सुगन्धित विदेशी साबुन की टिकिया पति की दृष्टि की गवाही दे रही थी । वह बरबस लज्जित हो गई । उसने रात को खाना खाने के बाद उस साबुन की टिकिया से रगड़-रगड़ कर नहाने का फैसला किया ।

”कई स्थान तो रीठे से बिल्कुल ही साफ नहीं होते ।” उसने मन ही मन स्वीकार किया ।

इसी समय एलिस ने चिल्ला कर उसके विचारों में ख़लल डाल दिया, माँ मुझे साबुन पर लिपटा काग़ज़ चाहिए ।” अब बीकन (इंगित) जिसका नाम इसलिये चुना गया था कि उसके इशारे पर एक भाई भी उनके घर में आये, भी खेलकूद छोड्‌कर वहाँ आ धमकी । लेकिन माँ ने धक्का देकर उन्हें दूर हटा दिया और साबुन को काग़ज़ में लपेट कर नल के ऊपर की अलमारी के सबसे ऊँचे खाने में रख दिया । यह सोचकर कि अब साबुन बच्चों की पहुंच से परे है, वह बेफिक्री से पुन: अपने काम में जुट गई ।

उसके पति ने अचानक आवाज दी, “स्वे-चेंग!” और वह चौंक गई । वह ऊँची पीठ वाली कुर्सी पर उसके सामने ही बैठा था । Lu Xun Hindi Kahani

उसे समझ में न आया कि इस समय पति को लड़के से क्या काम हो सकता है । लेकिन आज उसका मन कृतज्ञता से भरा था । उसने भी पति के स्वर में स्वर मिला कर आवाज दी, “स्वे-चेंग !”

यहाँ तक कि उसने अपना काम भी पटक दिया और लड़के की आहट की प्रतीक्षा करने लगी । पति की ओर क्षमाप्रार्थी की तरह देखते हुए उसने चीख़ना-चिल्लाना जारी रखा ।

“चुआन-ऐर !” आखिर तँग आकर आवाज दी, वह अक्सर ग़ुस्से के मौक़े पर बेटे को इस नाम से पुकारती थी । उसके तेज़ गले का फ़ौरन असर हुआ जूतों की तेज़ चरमराहट सुनाई दी और चुआन-ऐर भागता हुआ पहुँचा । वह एक छोटी वास्कट पहने था और उसका चेहरा पसीने में तर था ।

”क्या कर रहे थे? पिता के आवाज देने पर क्यों नहीं आये ?” उसने झिड़कते हुए पूछा ।

”मैं कसरत कर रहा था” उसने सू-मिंग की कुर्सी के पास फुदकते हुए जवाब दिया । फिर सीधे खड़ा होकर वह प्रश्नसूचक दृष्टि से पिता का मुँह ताकने लगा ।

स्वे-चेंग” पिता ने गम्भीरता से कहा, ”जरा बताओ कि एर-दू-फू’ का क्या अर्थ है ?”

एर-दू-फू ?” अर्थात् ”लड़ाकी औरत ?”

”अक्ल का कोल्हू! बकवादी !” सू-मिंग का पारा चढ़ गया ”क्या मैं औरत हूँ ?”

स्वे-चेंग चौंक कर कुछ क़दम पीछे हट गया, लेकिन फिर बाहों को सीधा तान कर खड़ा हो गया । हालाँकि उसका ख्याल था कि उसके पिता की चाल थियेटर के नटों की सी है, लेकिन वह औरतों से मिलता-जुलता है, इसकी उसने कल्पना भी न की थी । वह अपनी ग़लती मानने को तैयार था ।

”क्या मुझे यह सीखने की ज़रूरत है कि एर-दू-फू’ का अर्थ ‘लड़ाकी औरत’ है क्या में अपनी मातृ-भाषा नहीं जानता? लेकिन यह शब्द चीनी भाषा का नहीं विदेशी शैतानों का है । समझे? अब बताओ इसका अर्थ क्या है मालूम है ?”

”मैं..मुझे नहीं मालूम” स्वे-चेंग ने घबरा कर कहा ।

क्रमशः

लू शुन की कहानी ‘साबुन की टिकिया’ का दूसरा भाग..
लू शुन की कहानी ‘साबुन की टिकिया’ का तीसरा भाग..
लू शुन की कहानी ‘साबुन की टिकिया’ का अंतिम भाग Lu Xun Hindi Kahani

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