घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का दूसरा भाग

Urdu ke ustaad shayar ki shayari Acharya Chatur Sen Ki Kahani

फंदा- आचार्य चतुरसेन शास्त्री  Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda
घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का पहला भाग
भाग-2 
(अब तक आपने पढ़ा..सज्जन, व्यवहार कुशल और मिलनसार व्यक्तित्व वाले मास्टर जी पर जर्मनी से षड्यंत्र का अभियोग चलने के कारण उन्हें जेल हो गयी है और फाँसी की सज़ा का ऐलान भी हो चुका है। उनकी पत्नी और बच्चे इस समय बेहद ग़रीबी का सामना कर रहे हैं, जहाँ बेटा आठ साल की छोटी-सी उम्र से ही जिम्मेदारियाँ सम्भालने की ओर बढ़ रहा है वहीं तीन वर्षीय बेटी भी अपनी माँ के दुःख को देखकर कभी खाना न माँगने की बात कहती है। ग़रीबी बच्चों के मस्तिष्क को समय से पूर्व ही परिपक्व बना रही है. उधर मकान मालिक आकर मास्टर साहब की पत्नी को दो बातें सुनाकर घर ख़ाली करने के लिए कह चुका है। इस बात से सम्भालते कि उनके घर नया आगंतुक आता है जो उनका जान-पहचान का मालूम होता है..लेकिन जब मास्टर साहब की पत्नी उनसे पैसों की मदद माँगती है तो वो उसे टाल देते हैं, लेकिन उनकी बातचीत अभी भी जारी है..अब आगे..)

आगन्तुक ने कहा- “मैं अपने पास से जो कहो दे दूँ। तुम्हें कितने रुपये चाहिए?”
गृहिणी ने धीमे स्वर में कहा- “आपको मैं कष्ट नहीं देना चाहती”
“मैं क्या ग़ैर हो गया?”
स्त्री बोली- “नहीं”
अब आगन्तुक ज़रा और पास खिसककर बोला- “मेरी बात मानो, घर चलो, सुख से रहो। जो होना था हुआ, होना होगा हो जाएगा। किसी के साथ मरा तो जाता ही नहीं है। मेरा जगत में और कौन है, तुम क्या सब बातें समझती नहीं हो?”
“ख़ूब समझती हूँ, अब आप कृपा कर चले जाएँ”
“पर मैं जो बात बारम्बार कहता हूँ, वह समझती क्यों नहीं?”
“कब का समझ चुकी हूँ। तुम मुझ दुखिया को सता कर क्या पाओगे? मेरा रास्ता छोड़ दो, मैं यहाँ अपने दिन काटने आई हूँ, आपका कुछ लेती नहीं हूँ। उनका मकान-जायदाद सभी आपके हाथ है, आपका रहे, मैं केवल यही चाहती हूँ कि आप चले जाइए” Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda

आगन्तुक ने कड़े होकर कहा- “क्या मैं साँप हूँ या घिनौना कुत्ता हूँ?”
“आप जो कुछ हों, मुझे इस पर विचार नहीं करना है”
“और तुम्हारी यह हिम्मत और हेकड़ी अब भी?”
गृहिणी चुप रही
“यहाँ भी मेरे एक इशारे से निकाली जाओगी, फिर क्या भीख माँगोगी?”
गृहणी ने कोई उत्तर नहीं दिया।
आगन्तुक ने उबाल में आकर कहा- “लो साफ़-साफ़ कहता हूँ, तुम्हें मेरी बात मंजूर है या नहीं?” Phanda

गृहिणी चुपचाप बच्चे को छाती से छिपाए बैठी रही। आगन्तुक ने उसका हाथ पकड़ कर कहा- “आज मैं इधर-उधर कर के जाऊँगा”
स्त्री ने हाथ झटक कर कहा- “पैरों पड़ती हूँ, चले जाओ”
“तेरा हिमायती कौन है?”
“मैं ग़रीब गाय हूँ”
“फिर लातें क्यों चलाती है? बोल, चलेगी?”
“नहीं”
“मेरी बात मानेगी?”
“नहीं”
“तुझे घमण्ड किसका है?”
“मुझे कुछ घमण्ड नहीं है”
“तुझे आज रात को ही सड़क पर खड़ा होना पड़ेगा”
“भाग्य में जो लिखा है, होगा”
“लोहे के टके की आशा न रखना…”
गृहिणी खड़ी हो गई। उसने अस्वाभाविक तेज-स्वर में कहा- “दूर हो…ओ पापी….भगवान से डर, मौत जिनके घर मेहमान बनी बैठी है, उन्हें न सता, भय उन्हें क्या डराएगा? विश्वासघाती भाई…भाई को फँसा कर फाँसी पहुँचाने वाले अधर्मी…उन्हें फँसाया, ज़मीन-जायदाद ली, अब उसकी अनाथ ग़रीब दुखिया स्त्री की आबरू भी लेने की इच्छा करता है? अरे पापी, हट जा…हट जा…”

आवेश में आने से स्त्री का वस्त्र खिसककर नीचे गिर गया। वह दशा देख कर बच्चे रो उठे।
बड़े बच्चे के मुँह पर ज़ोर से तमाचा मारकर आगन्तुक ने कहा- “तेरी पारसाई आज ही देख ली जाएगी..गुण्डे….”-  वह कुछ और न बोल सका-वह दोनों हाथ मीचकर क्रोध से काँपने लगा।
स्त्री ने कहा- “जा…जा…पापी-जा…” और वह बदहवास चक्कर खाकर गिर गई।
दोनों बच्चे ज़ोर-ज़ोर से रो पड़े। आगन्तुक तेज़ी से चल दिया। Phanda

वही दिन और वही प्रातःकाल था, परन्तु उस भाग्यहीन घर से लगभग पौन मील दूर दिल्ली की जेल में एक और ही दृश्य सामने था। जेल के अस्पताल में बिल्कुल एक ओर एक छोटी-सी कोठरी थी। जिन क़ैदियों को बिल्कुल एकान्त ही में रहने की आवश्यकता होती थी, वे ही इसमें रक्खे जाते थे। इस वक्त भी इसमें एक क़ैदी था। उसकी आकृति कितनी घिनौनी, वेश कैसा मलिन और चेष्टा कैसी भयंकर थी कि ओफ़…कई दिन से वह कैदी भयानक आत्मिक ज्वर से तप रहा था, और कोठरी में रक्खा गया था।

कोठरी बड़ी काली, मनहूस और कोरी अनगढ़े पत्थरों की बनी हुई थी, और उसमें अनगिनत मकड़ियों के जाले, छिपकलियाँ तथा कीड़े-मकोड़े रेंग रहे थे। उसमें न सफाई थी, न प्रकाश। ऊपर एक छोटा-सा छेद था। उसी में से सूरज की रोशनी कमरे में पड़ते ही उसकी नींद टूट गई। प्यास से उसका कण्ठ सूख रहा था। वह बड़े कष्ट से चारपाई के इर्द-गिर्द हाथ बढ़ाकर कोई पीने की चीज़ ढूँढने लगा। पर उसे कुछ भी न मिला। तंग प्यास की तकलीफ़ से छटपटा कर वह बड़बड़ाने लगा- “कौन देखता है? कौन सुनता है? हाय…इतनी लापरवाही से तो लोग पशुओं को भी नहीं रखते। डॉक्टर मेरे सामने ही उस वार्डर से थोड़ा दूध दो-तीन बार देने और रात दो-तीन बार देखने को कह गया था। पर कोई क्यों परवाह करता? मेरी नींद तो रात भर टूटती रही है। मैंने प्रत्येक घन्टा सुना है। यह पहाड़ सी रात किस तकलीफ़ से काटी है…यह कष्ट तो फाँसी से अधिक है” Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda

रोगी अब चुपचाप कुछ सोचने लगा। धीरे-धीरे प्रकाश ने फैलकर कमरे को स्पष्ट प्रकाशमान कर दिया। धीरे-धीरे उसकी प्यास असह्य हो चली, पर वह बेचारा कर ही क्या सकता था। वार्डर की ख़ूँख़ार फटकार से भयभीत होने पर भी वह एक बूँद पानी पाने के लिए गला फाड़कर चिल्लाने लगा। पर न कोई आया और न किसी ने जवाब ही दिया। वह प्यास से बेदम हो रहा था-उसका प्राण निकल जाता था। वह बारम्बार ‘पानी-पानी’ चिल्लाने लगा। कभी अनुनय-विनय भी करता, कभी गालियाँ बकने लगता।

“ईश्वर के लिए थोड़ा पानी दे जाओ, हाय…एक बूँद पानी, अरे मैं तुम लोगों को बड़ा कष्ट देता हूँ…पर क्या करूँ, प्यास के मारे मेरे प्राण निकल रहे हैं। अरे, मैं भी तु्म्हारे जैसा मनुष्य हूँ। मुझे इस तरह क्यों तड़पा रहे हो-इतनी उपेक्षा तो कोई बाज़ारू कुत्तों की भी नहीं करता। अरे आओ, नहीं तो मैं बिछौने से उठकर, सब दरवाज़े तोड़ डालूँगा और इतनी ज़ोर से चिल्लाऊँगा कि सुपरिन्टेन्डेन्ट के बंगले तक आवाज़ पहुँचेगी”
इस पर एक घिनौने मोटे-ताज़े अधेड़ व्यक्ति ने छेद में से सिर निकालकर कहा- “अरे अभागे…क्यों इतना चिल्लाता है, क्यों दुनिया की नींद ख़राब करता है?”

Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कहानी “फंदा” का पहला भाग

Ishq ki shayari Kaifi Azmi Shayari Hindi Noshi Gilani Shayari Qateel Shifai Daagh Dehlvi Hari Shankar Parsai Jaishankar Prasad Amrita Pritam Ki Kahani Vrahaspativar ka vrat ~ "बृहस्पतिवार का व्रत" Rajendra Bala Ghosh Ki Kahani Dulaiwali

फंदा- आचार्य चतुरसेन शास्त्री  Acharya Chatur Sen Ki Kahani Phanda भाग-1  सन् १९१७ का दिसम्बर था। भयानक सर्दी थी। दिल्ली के दरीबे-मुहल्ले की एक तंग गली में एक अँधेरे और गन्दे मकान में तीन प्राणी थे। कोठरी के एक कोने में एक स्त्री बैठी हुई अपने गोद के बच्चे को दूध पिला रही थी, परन्तु … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: हरिशंकर परसाई की कहानी “भोलाराम का जीव” का अंतिम भाग

Momin ki shayari Urdu Shabd Gham Gam हिन्दी व्याकरण वाला वाली द वाले शब्द

भोलाराम का जीव-हरिशंकर परसाई  Bholaram ka jeev घनी कहानी, छोटी शाखा: हरिशंकर परसाई की कहानी “भोलाराम का जीव” का पहला भाग भाग-2  (अब तक आपने पढ़ा..धर्मराज और चित्रगुप्त इस बात से परेशान हैं कि पृथ्वी से भोलाराम का जीव उसके शरीर से निकल तो गया था लेकिन उसे लेकर दूत अब तक उनके पास नहीं पहुँचा … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: हरिशंकर परसाई की कहानी “भोलाराम का जीव” का पहला भाग

Momin ki shayari Urdu Shabd Gham Gam हिन्दी व्याकरण वाला वाली द वाले शब्द

भोलाराम का जीव-हरिशंकर परसाई  Parsayi ki kahani Bholaram ka jeev भाग-1  ऐसा कभी नहीं हुआ था। धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: सआदत हसन मंटो की कहानी “खोल दो” का अंतिम भाग

Khalil Jibran Manto Hindi Manto Kahani Khol Do Manto Ki Kahani Khol Do Manto Naya Qanoon Kahani Manto Hindi Kahani Naya Qanoon Manto Hindi Sadat Hasan Manto Hindi Manto ke baare mein

Manto Ki Kahani Khol Do खोल दो-सआदत हसन मंटो  भाग-2  (अब तक आपने पढ़ा..जब स्पेशल ट्रेन अमृतसर से मुग़लपुरा पहुँचते ही सिराजुद्दीन ख़ुद को लोगों की भीड़ में पाता है और कुछ देर भटकने के बाद उसे अपनी बेटी सकीना की याद आती है, जिसे वो अपनी मरती बीवी के कहने पर बचाकर लाया होता है। सकीना … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: सआदत हसन मंटो की कहानी “खोल दो” का पहला भाग

Khalil Jibran Manto Hindi Manto Kahani Khol Do Manto Ki Kahani Khol Do Manto Naya Qanoon Kahani Manto Hindi Kahani Naya Qanoon Manto Hindi Sadat Hasan Manto Hindi Manto ke baare mein

Manto Kahani Khol Do खोल दो-सआदत हसन मंटो  भाग-1  अमृतसर से स्पेशल ट्रेन दोपहर दो बजे चली और आठ घंटों के बाद मुगलपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। अनेक ज़ख़्मी हुए और कुछ इधर-उधर भटक गए। सुबह दस बजे कैंप की ठंडी जमीन पर जब सिराजुद्दीन ने आँखें खोलीं और अपने चारों तरफ … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का अंतिम भाग

Romantic Shayari

गुप्तकथा- गोपालराम गहमरी  Gopalram Gahmari Ki Best Kahani Guptkatha घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पहला भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का दूसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का तीसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का चौथा भाग घनी कहानी, … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का आठवाँ भाग

Romantic Shayari

गुप्तकथा- गोपालराम गहमरी  Gopalram Ki Kahani Guptkatha घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पहला भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का दूसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का तीसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का चौथा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का सातवाँ भाग

Romantic Shayari

गुप्तकथा- गोपालराम गहमरी  Gopalram Gahmari Guptkatha Sahitya Duniya घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पहला भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का दूसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का तीसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का चौथा भाग घनी कहानी, छोटी … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का छटवाँ भाग

Romantic Shayari

गुप्तकथा- गोपालराम गहमरी  Gopalram Gahmari Guptkatha घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पहला भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का दूसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का तीसरा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का चौथा भाग घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम … Read more