Manto Ki Kahani Khol Do खोल दो-सआदत हसन मंटो
भाग-2
(अब तक आपने पढ़ा..जब स्पेशल ट्रेन अमृतसर से मुग़लपुरा पहुँचते ही सिराजुद्दीन ख़ुद को लोगों की भीड़ में पाता है और कुछ देर भटकने के बाद उसे अपनी बेटी सकीना की याद आती है, जिसे वो अपनी मरती बीवी के कहने पर बचाकर लाया होता है। सकीना को अपने साथ न पा उसकी हालत ख़राब होने लगती है, चारों ओर बिखरी भीड़ भी अपने ग़म में डूबी हुए लोगों से भारी है..कौन किसकी मदद करे। कई दिनों बाद मदद माँगते सिराजुद्दीन को कुछ नौजवान दिलासा देते हैं कि अगर सकीना ज़िन्दा हुई तो वो सकीना को ज़रूर ढूँढ लाएँगे। सिराजुद्दीन उन्हें अपनी इकलौती लड़की सकीना का हुलिया बताता है और नौजवान उसकी तलाश में अमृतसर निकल जाते हैं और उन्हें कुछ रोज़ बाद ही सकीना मिल भी जाती है। डरती-सहमती सकीना को वो नौजवान समझा-बुझाकर अपने साथ लॉरी में बिठा ही लेते हैं। अब आगे..)
कई दिन गुज़र गए- सिराजुद्दीन को सकीना की कोई ख़बर न मिली। वह दिन-भर विभिन्न कैंपों और दफ़्तरों के चक्कर काटता रहता, लेकिन कहीं भी उसकी बेटी का पता न चला। रात को वह बहुत देर तक उन रजाकार नौजवानों की कामयाबी के लिए दुआएँ माँगता रहता, जिन्होंने उसे यकीन दिलाया था कि अगर सकीना ज़िन्दा हुई तो चंद दिनों में ही उसे ढूँढ निकालेंगे।
एक रोज़ सिराजुद्दीन ने कैंप में उन नौजवान रजाकारों को देखा। लारी में बैठे थे। सिराजुद्दीन भागा-भागा उनके पास गया। लारी चलने ही वाली थी कि उसने पूछा- “बेटा, मेरी सकीना का पता चला?”
सबने एक जवाब होकर कहा, “चल जाएगा, चल जाएगा”- और लारी चला दी। सिराजुद्दीन ने एक बार फिर उन नौजवानों की कामयाबी की दुआ माँगी और उसका जी किसी क़दर हलका हो गया।
शाम को क़रीब कैंप में जहां सिराजुद्दीन बैठा था, उसके पास ही कुछ गड़बड़-सी हुई। चार आदमी कुछ उठाकर ला रहे थे। उसने मालूम किया तो पता चला कि एक लड़की रेलवे लाइन के पास बेहोश पड़ी थी। लोग उसे उठाकर लाए हैं। सिराजुद्दीन उनके पीछे हो लिया। लोगों ने लड़की को अस्पताल वालों के सुपुर्द किया और चले गए।
कुछ देर वह ऐसे ही अस्पताल के बाहर गड़े हुए लकड़ी के खंबे के साथ लगकर खड़ा रहा। फिर आहिस्ता-आहिस्ता अंदर चला गया। कमरे में कोई नहीं था। एक स्ट्रेचर था, जिस पर एक लाश पड़ी थी। सिराजुद्दीन छोटे-छोटे कदम उठाता उसकी तरफ बढ़ा। कमरे में अचानक रोशनी हुई। सिराजुद्दीन ने लाश के जर्द चेहरे पर चमकता हुआ तिल देखा और चिल्लाया- “सकीना..” Manto Ki Kahani Khol Do
डॉक्टर, जिसने कमरे में रोशनी की थी, ने सिराजुद्दीन से पूछा- “क्या है?”
सिराजुद्दीन के हलक से सिर्फ़ इस क़दर निकल सका- “जी मैं…जी मैं…इसका बाप हूँ”
डॉक्टर ने स्ट्रेचर पर पड़ी हुई लाश की नब्ज़ टटोली और सिराजुद्दीन से कहा- “खिड़की खोल दो”
सकीना के मुर्दा जिस्म में जुंबिश हुई। बेजान हाथों से उसने इज़ारबंद खोला और सलवार नीचे सरका दी। बूढ़ा सिराजुद्दीन ख़ुशी से चिल्लाया- “ज़िन्दा है-मेरी बेटी जिंदा है”
डॉक्टर सिर से पैर तक पसीने में गर्क हो गया।
समाप्त
घनी कहानी, छोटी शाखा: सआदत हसन मंटो की कहानी “खोल दो” का पहला भाग