Kumar Vishwas Shayari
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
दिल के तमाम ज़ख़्म तिरी हाँ से भर गए
जितने कठिन थे रास्ते वो सब गुज़र गए
जबसे मिला है साथ मुझे आपका हुज़ूर
सब ख़्वाब ज़िंदगी के हमारे सँवर गए
फिर मिरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी
अमीर इमाम के बेहतरीन शेर
फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी
उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे
वो मिरा होने से ज़्यादा मुझे पाना चाहे
तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है
कबूतर इश्क़ का उतरे तो कैसे
तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है
दिल तो करता है ख़ैर करता है
आप का ज़िक्र ग़ैर करता है
क्यूँ न मैं दिल से दूँ दुआ उस को
जबकि वो मुझसे बैर करता है
सआदत हसन ‘मंटो’ की कहानी ‘नया क़ानून’
आप तो हू-ब-हू वही हैं जो
मेरे सपनों में सैर करता है
इश्क़ क्यूँ आप से ये दिल मेरा
मुझ से पूछे बग़ैर करता है
एक ज़र्रा दुआएँ माँ की ले
आसमानों की सैर करता है
Kumar Vishwas Shayari