Ameer Imam Shayari ~ अमीर इमाम आज के बेहतरीन शायरों में शुमार किए जाते हैं. उनके कुछ बेहतरीन शेर हम यहाँ पेश कर रहे हैं-
चेहरे फ़क़त पड़ाव हैं मंज़िल नहीं तिरी
ऐ कारवान-ए-इ’श्क़ तिरी राह इश्क़ है
ऐसे हैं हम तो कोई हमारी ख़ता नहीं
लिल्लाह इश्क़ है हमें वल्लाह इश्क़ है
हों वो ‘अमीर-इमाम’ कि फ़रहाद-ओ-क़ैस हों
आओ कि हर शहीद की दरगाह इश्क़ है
अमीर इमाम
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पहले सहरा से मुझे लाया समुंदर की तरफ़
नाव पर काग़ज़ की फिर मुझको सवार उसने किया
अमीर इमाम
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अपनी तरफ़ तो मैं भी नहीं हूँ अभी तलक
और उस तरफ़ तमाम ज़माना उसी का है
अमीर इमाम
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जो शाम होती है हर रोज़ हार जाता हूँ
मैं अपने जिस्म की परछाइयों से लड़ते हुए
अमीर इमाम
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ख़ुद को हर आरज़ू के उस पार कर लिया है
हमने अब उसका साया दीवार कर लिया है
जाती थी मेरे दिल से जो तेरे आस्ताँ तक
दुनिया ने उस गली में बाज़ार कर लिया है
महसूस कर रहा हूँ ख़ारों में क़ैद ख़ुशबू
आँखों को तेरी जानिब इक बार कर लिया है
इस बार वो भी हम से इंकार कर न पाया
हमने भी अब की उस से इक़रार कर लिया है
अमीर इमाम
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हम बे-वफ़ा हैं तुम हो वफ़ा-दार ख़ुश रहो
सरकार ख़ुश रहो मिरी सरकार ख़ुश रहो
ले जाओ अपनी ज़ुल्फ़ के साए समेट कर
हमको बहुत है साया-ए-दीवार ख़ुश रहो
तुम ख़ुश रहो कि अब कोई ख़तरा नहीं तुम्हें
हम हो चुके हैं ख़ुद में गिरफ़्तार ख़ुश रहो
तुम औरतों पे हमने हमेशा सितम किए
हम मर्द हैं सदा के जफ़ा-कार ख़ुश रहो
बे-वज्ह ग़म का ढोंग रचाने से फ़ाएदा
यूँ भी हैं सब तुम्हारे परस्तार ख़ुश रहो
इंसाँ भी हम ख़राब हैं शा’इर भी हैं ख़राब
बे-कार ये ग़ज़ल है ये अश’आर ख़ुश रहो
अमीर इमाम
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हफ़ीज़ मेरठी के बेहतरीन शेर…
धूप में कौन किसे याद किया करता है
पर तिरे शहर में बरसात तो होती होगी
अमीर इमाम
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‘अमीर’ इमाम बताओ ये माजरा क्या है
तुम्हारे शेर उसी बाँकपन में लौट आए
अमीर इमाम
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ज़मीं के सारे मनाज़िर से कट के सोता हूँ
मैं आसमाँ के सफ़र से पलट के सोता हूँ
तलाश धूप में करता हूँ सारा दिन ख़ुद को
तमाम-रात सितारों में बट के सोता हूँ
कहाँ सुकूँ कि शब-ओ-रोज़ घूमना उसका
ज़रा ज़मीन के मेहवर से हट के सोता हूँ
तिरे बदन की ख़लाओं में आँख खुलती है
हवा के जिस्म से जब जब लिपट के सोता हूँ
मैं जाग-जाग के रातें गुज़ारने वाला
इक ऐसी रात भी आती है डट के सोता हूँ
अमीर इमाम
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ख़ामोशी के नाख़ुन से छिल जाया करते हैं
कोई फिर इन ज़ख़्मों पर आवाज़ें मलता है
अमीर इमाम
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इनको ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए
आँखों को टूटे ख़्वाब का हर्जाना चाहिए
मुहम्मद रफ़ी साहब द्वारा गायी गई ग़ज़लें…
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वो काम रह के शहर में करना पड़ा हमें
मजनूँ को जिस के वास्ते वीराना चाहिए
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दानाइयाँ भी ख़ूब हैं लेकिन अगर मिले
धोका हसीन सा तो उसे खाना चाहिए
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सोच लो ये दिल-लगी भारी न पड़ जाए कहीं
जान जिसको कह रहे हो जान होती जाएगी
अमीर इमाम
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तिरे बदन की ख़लाओं में आँख खुलती है
हवा के जिस्म से जब जब लिपट के सोता हूँ
अमीर इमाम
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हर रंग एक रंग से हम-रंग हो गया
तस्वीर ज़िंदगी की उभरती चली गई
अमीर इमाम
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इस बार राह-ए-इश्क़ कुछ इतनी तवील थी
उसके बदन से हो के गुज़रना पड़ा मुझे
अमीर इमाम
पूरी अमीर इमाम की तस्वीर जब हुई
उसमें लहू का रंग भी भरना पड़ा मुझे
अमीर इमाम
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है कौन किस की ज़ात के अंदर लिखेंगे हम
नहर-ए-रवाँ को प्यास का मंज़र लिखेंगे हम
ये सारा शहर आला-ए-हिकमत लिखे उसे
ख़ंजर अगर है कोई तो ख़ंजर लिखेंगे हम
इस शहर-ए-बे-चराग़ की आँधी न हो उदास
तुझको हवा-ए-कूचा-ए-दिल-बर लिखेंगे हम
क्या हुस्न उन लबों में जो प्यासे नहीं रहे
सूखे हुए लबों को गुल-ए-तर लिखेंगे हम
हम से गुनाहगार भी उस ने निभा लिए
जन्नत से यूँ ज़मीन को बेहतर लिखेंगे हम
अमीर इमाम
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शहर में सारे चराग़ों की ज़िया ख़ामोश है
तीरगी हर सम्त फैला कर हवा ख़ामोश है
सुब्ह को फिर शोर के हम-राह चलना है उसे
रात में यूँ दिल धड़कने की सदा ख़ामोश है
कुछ बताता ही नहीं गुज़री है क्या परदेस में
अपने घर को लौटता एक क़ाफ़िला ख़ामोश है
अमीर इमाम
Ameer Imam Shayari