Qateel Shifai Best Sher ~ क़तील शिफ़ाई का जन्म लाहौर में सन 1919 में हुआ। क़तील बीसवीं शताब्दी के मशहूर शायरों में शुमार किए जाते हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू फ़िल्मों में ढेरों गीत भी लिखे हैं। सन 2001 को उनका देहान्त हो गया।
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यूँ लगे दोस्त तिरा मुझसे ख़फ़ा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
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हम उसे याद बहुत आएँगे
जब उसे भी कोई ठुकराएगा
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चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते
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ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे
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थक गया मैं करते करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ
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दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
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तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं
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परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारो तुम तो सो जाओ
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आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ
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हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ
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हम उसे याद बहुत आएँगे
जब उसे भी कोई ठुकराएगा
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गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
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शम्अ’ जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
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बच निकलते हैं अगर आतिश-ए-सय्याल से हम
शोला-ए-आरिज़-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं
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ख़ुद-नुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिनको जलना हो वो आराम से जल जाते हैं
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जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
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गिरते हैं समुंदर में बड़े शौक़ से दरिया
लेकिन किसी दरिया में समुंदर नहीं गिरता
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दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
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हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
शीशे के महल बना रहा हूँ
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गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है
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रहेगा साथ तिरा प्यार ज़िंदगी बन कर
ये और बात मिरी ज़िंदगी वफ़ा न करे
~ Qateel Shifai Best Sher
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