Sahir Ludhianvi Top Ghazals उर्दू शायरी की बात हो और इश्क़ की बात न हो, और इश्क़ की बात शायरी के साथ हो और साहिर लुधियानवी का नाम न हो, ऐसा संभव ही नहीं है. साहिर लेकिन जहाँ मुहब्बत की शायरी के लिए जाने जाते हैं वहीं इन्क़लाबी रंग भी उनके यहाँ खिल कर आता है.
ग़ज़ल 1: ख़ुद्दारियों के ख़ून को अर्ज़ां न कर सके
ख़ुद्दारियों के ख़ून को अर्ज़ां न कर सके
हम अपने जौहरों को नुमायाँ न कर सके
हो कर ख़राब-ए-मय तिरे ग़म तो भुला दिए
लेकिन ग़म-ए-हयात का दरमाँ न कर सके
टूटा तिलिस्म-ए-अहद-ए-मोहब्बत कुछ इस तरह
फिर आरज़ू की शम्अ फ़िरोज़ाँ न कर सके
हर शय क़रीब आ के कशिश अपनी खो गई
वो भी इलाज-ए-शौक़-ए-गुरेज़ाँ न कर सके
किस दर्जा दिल-शिकन थे मुहब्बत के हादसे
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके
मायूसियों ने छीन लिए दिल के वलवले
वो भी नशात-ए-रूह का सामाँ न कर सके
रदीफ़: न कर सके
क़ाफ़िए: अर्ज़ां, नुमायाँ, दरमाँ, गुरेज़ाँ, अरमाँ, सामाँ
ग़ज़ल 2: सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें
उन्हें पता भी चले और वो ख़फ़ा भी न हों
इस एहतियात से क्या मुद्दआ की बात करें
हमारे अहद की तहज़ीब में क़बा ही नहीं
अगर क़बा हो तो बंद-ए-क़बा की बात करें
हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया
करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें
वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें
रदीफ़: की बात करें
क़ाफ़िए: जज़ा, ख़ुदा, मुद्दआ, क़बा, ख़ुदा, बेवफ़ा
ग़ज़ल 3: मुहब्बत तर्क की मैंने गरेबाँ सी लिया मैंने
मुहब्बत तर्क की मैंने गरेबाँ सी लिया मैंने
ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैंने
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़लवत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने
उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है
कि कुछ मुद्दत हसीं ख़्वाबों में खो कर जी लिया मैंने
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैंने
रदीफ़: लिया मैंने
क़ाफ़िए: सी, भी, जी, जी, जी
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ग़ज़ल 4: भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागर से हम
भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागर से हम
ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम
कुछ और बढ़ गए जो अँधेरे तो क्या हुआ
मायूस तो नहीं हैं तुलू-ए-सहर से हम
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम
रदीफ़: से हम
क़ाफ़िए: लब-ए-नग़्मागर, डर, सहर, नज़र, जिधर
ग़ज़ल 5: भूले से मुहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
भूले से मुहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
हर दिल से ख़ता हो जाती है, बिगड़ो न ख़ुदारा, दिल ही तो है
इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए
सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है
जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा, दिल ही तो है
बेदाद-गरों की ठोकर से सब ख़्वाब सुहाने चूर हुए
अब दिल का सहारा ग़म ही तो है अब ग़म का सहारा दिल ही तो है
रदीफ़: दिल ही तो है
क़ाफ़िए: बेचारा, ख़ुदारा, मारा, इशारा, सहारा
ग़ज़ल 6: देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
कहने को दिल की बात जिन्हें ढूँडते थे हम
महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से
नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार
क़ीमत नहीं चुकाई गई इक ग़रीब से
तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल दूँ
रेशम का ये कफ़न जो मिला है रक़ीब से
रदीफ़: से
क़ाफ़िए: क़रीब, अजीब, नसीब, ग़रीब, रकीब
ग़ज़ल 7: ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ख़मोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
तरस रहे हैं जवाँ फूल होंट छूने को
मचल मचल के हवाएँ बुला रही हैं तुम्हें
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीक लेने को
झुकी झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें
हसीन चम्पई पैरों को जब से देखा है
नदी की मस्त अदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
मिरा कहा न सुनो उन की बात तो सुन लो
हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हें
रदीफ़: बुला रही है तुम्हें
क़ाफ़िए: फ़ज़ाएँ, सदाएँ, हवाएँ, घटाएँ, अदाएँ, दुआएँ
ग़ज़ल 8: तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम Sahir Ludhianvi Top Ghazals
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
मायूसी-ए-मआल-ए-मुहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम
गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम
अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशिय्यत कि आज तक
दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामुशी से हम
रदीफ़: से हम
क़ाफ़िए: ज़िन्दगी, दिली, बेगानगी, किसी,, ज़िन्दगी, बेबसी, ख़ामुशी
ग़ज़ल 9: तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
वही आँसू वही आहें वही ग़म है जिधर जाएँ
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ
अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ
रदीफ़: जाएँ
क़ाफ़िए: मर, जिधर, जिधर, गुज़र
ग़ज़ल 10: सदियों से इंसान ये सुनता आया है
सदियों से इंसान ये सुनता आया है
दुख की धूप के आगे सुख का साया है
हम को इन सस्ती ख़ुशियों का लोभ न दो
हम ने सोच समझ कर ग़म अपनाया है
झूट तो क़ातिल ठहरा इस का क्या रोना
सच ने भी इंसाँ का ख़ूँ बहाया है
पैदाइश के दिन से मौत की ज़द में हैं
इस मक़्तल में कौन हमें ले आया है
अव्वल अव्वल जिस दिल ने बरबाद किया
आख़िर आख़िर वो दिल ही काम आया है
इतने दिन एहसान किया दीवानों पर
जितने दिन लोगों ने साथ निभाया है
रदीफ़: है
क़ाफ़िए: आया, साया, अपनाया, बहाया, आया, निभाया
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