दिनों की लाशें — अरग़वान रब्बही
DinoN Ki LaasheN ~~ अरग़वान रब्बही ट्रेन की खिड़की से बाहर साथ-साथ चलते अंधेरों के बीच अंदर सोए लोगों की जागती नींदों की लोरियाँ मुझे भी सुलाने की कोशिश कर रही थीं, मगर मैं चाहकर भी सो नहीं सकता था क्योंकि मुझे अगले ही स्टेशन पर उतरना था… कुछ ही वक़्त में काले अंधेरे रास्ते … Read more