दो शा’इर, दो ग़ज़लें (9): मुनीर नियाज़ी और अमीर मीनाई….
मुनीर नियाज़ी की ग़ज़ल: ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या (Zinda Rahen To Kya Mar…
हिन्दी और उर्दू साहित्य का संगम
मुनीर नियाज़ी की ग़ज़ल: ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या (Zinda Rahen To Kya Mar…