रदीफ़ (Radeef kya hai): ग़ज़ल या क़सीदे के शेरों के अंत में जो शब्द या शब्द-समूह बार-बार दुहराए जाते हैं, उन्हें रदीफ़ कहते हैं. मत’ले में रदीफ़ दोनों मिसरों में रहती है जबकि ग़ज़ल के बाक़ी शे’रों में सिर्फ़ मिसरा-ए-सानी(दूसरे मिसरे) में ही इसका इस्तेमाल होता है.
शकील बदायूँनी की इस ग़ज़ल में “पे रोना आया” रदीफ़ है.
ऐ मुहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया
मुझपे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी
इस क़दर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मुहब्बत का ‘शकील’
मुझको अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
(शकील बदायूँनी)
____________________________________________ Radeef kya hai
मिर्ज़ा ग़ालिब की इस ग़ज़ल में “अच्छा है” रदीफ़ है.
हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है
उस से मेरा मह-ए-ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
हम-सुख़न तेशा ने फ़रहाद को शीरीं से किया
जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है
क़तरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए
काम अच्छा है वो जिसका कि मआल अच्छा है
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
शेर क्या है?
ग़ज़ल क्या है?
शायरी सीखें: क़ाफ़िया क्या है?
शायरी क्या है?
नज़्म क्या है?
शायरी सीखें: क्या होती है ज़मीन, रदीफ़, क़ाफ़िया….
क्या होता है ‘फ़र्द’ ?
ग़ज़ल में मक़ता क्या होता है?
शायरी सीखें: ग़ज़ल का मतला क्या होता है?
न’अत क्या होती है?
शायरी सीखें ~ क़त्आ, रूबाई, हम्द….