Subah Shayari : सुबह पर ख़ूबसूरत शायरी

Subah Shayari

नया चश्मा है पत्थर के शिगाफ़ों से उबलने को,
ज़माना किस क़दर बेताब है करवट बदलने को

सरदार जाफ़री (Sardar Jafri)
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उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए
कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

साहिर लुधियानवी
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सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का

शहरयार
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अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिनको ज़माना बना गया

जिगर मुरादाबादी (Jigar Moradabadi)

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हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

साहिर लुधियानवी
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कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे

सईद राही
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पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है

अली सरदार जाफ़री

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रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
शम्अ बे-नूर हुई सुब्ह का तारा निकला

फ़िराक़ गोरखपुरी

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रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी

जलील मानिकपूरी
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सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है

मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

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लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे
जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ

बशीर बद्र

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मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा

अमीर क़ज़लबाश

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बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा

राहत इन्दौरी

Subah Shayari

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