Gham Shayari
हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-पशीमान पशीमान सा क्यूँ है
शहरयार
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पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
बशीर बद्र
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हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
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क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
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मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या-रब कई दिए होते
मिर्ज़ा ग़ालिब
हसरत मोहानी के बेहतरीन शेर
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कहूँ किससे मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
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सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं
जौन एलिया
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तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा
वसीम बरेलवी
अदम गोंडवी की बेहतरीन शायरी
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ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
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जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी ‘मुनीर’
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तूने मुझको खो दिया मैंने तुझे खोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
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दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
परवीन शाकिर के बेहतरीन शेर…
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कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ये बहुत ग़म की बात हो शायद
अब तो ग़म भी गँवा चुका हूँ मैं
जौन एलिया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ के बेहतरीन शेर….
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ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
साहिर लुधियानवी
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अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी
साहिर लुधियानवी
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उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम
साहिर लुधियानवी
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ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
साहिर लुधियानवी
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ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे
हफ़ीज़ होशियारपुरी
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दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म
जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई
गुलज़ार
ज़ुल्फ़ पर बेहतरीन शेर..
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बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो
मीर तक़ी मीर
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ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
अब्दुल हमीद अदम
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ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म ना होंगे
हफ़ीज़ होशियारपुरी
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इतना मानूस न हो ख़ल्वत-ए-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा
अहमद फ़राज़
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तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
कैफ़ी आज़मी
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ज़ब्त करना अगर नहीं आता, ग़म ज़माने की जान ले लेते,
सारी दुनिया हमारी दुश्मन थी, हम ज़माने की जान ले लेते
अरग़वान
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ज़ब्त कर-कर के जो बनाया है
ग़म नहीं आदमी का साया है
अरग़वान
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हाँ, ख़ुशी यूँ भी रही गर जो मिलेगी तो चलेगी कब तक
ज़िन्दगी ग़म की हिफ़ाज़त भी करेगी तो करेगी कब तक
अरग़वान
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अपने ग़म के शरीक साए भी,
इस तरह हैं कि रो नहीं सकते
अरग़वान
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Gham Shayari