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Arghwan Ki Kahani- Gham Rozgaar keArghwan Ki Kahani- Gham Rozgaar ke

(Arghwan Ki Kahani- Gham Rozgaar ke :यह कहानी साहित्य दुनिया टीम के सदस्य/ सदस्यों द्वारा लिखी गयी है और इस कहानी के सर्वाधिकार साहित्य दुनिया के पास सुरक्षित हैं। बिना अनुमति के कहानी के किसी भी अंश, भाग या कहानी को अन्यत्र प्रकाशित करना अवांछनीय है. ऐसा करने पर साहित्य दुनिया दोषी के ख़िलाफ़ आवश्यक क़दम उठाने के लिए बाध्य है।)
आज की कहानी साहित्य दुनिया के लिए अरग़वान रब्बही ने लिखी है.

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“या अल्लाह पाक मुझे कामयाब करना, मुझे ये नौकरी दिला देना, हम ग़रीब हैं… हमारी मदद करना..”
सड़क के किनारे की मिट्टी की धूल अपनी चप्पलों से उड़ाते हुए, हनीफ़ बस यही दुआ कर रहा था कि उसे नौकरी मिल जाए …उसकी रफ़्तार में इस तरह तेज़ी थी मानो वो इस जगह से किसी भी तरह से भागना चाहता है, एक ही रास्ते पर बग़ैर दाएँ-बाएँ देखे वो बस चले ही जा रहा था, कभी एक पल के लिए रुकता, दुआ करता.. और फिर चल पड़ता..

चलते-चलते अचानक उसे गाड़ियों का शोर सुनाई देने लगा, उसे ख़ुद यक़ीन नहीं हो रहा था कि वो शहर के पहले बाज़ार तक आ गया, ठहर के देखा तो सामने पानी का नल था… उसने अपनी सफ़ेद शर्ट की आस्तीनें ऊपर कर लीं और नल पे अपने हाथ और मुँह पर अच्छी तरह पानी डाला.

आते-जाते लोगों से बेख़बर हनीफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने घर के बारे में सोच रहा था, बेहद मायूस होने के बावजूद भी जब वो अपनी बीवी को याद करता तो ख़ुश सा हो जाता था…

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तक़रीबन सवा घंटे के सफ़र के बाद हनीफ़ उस जगह पहुँच गया जहाँ ये तय होना था कि उसकी ग़रीबी ख़त्म होगी भी या नहीं, सामने वो दफ़्तर है जहाँ उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया है, कुछ छोटी-बड़ी कारों के बीच पतले से ज़ीने से वो जैसे ही बिल्डिंग के बेसमेंट में घुसा हल्का-हल्का सा शोर सुनाई पड़ने लगा..

आगे बढ़ते हुए जैसे ही वो दरवाज़े से अन्दर की तरफ़ जाने लगा…उसने लोगों का एक हुजूम सा देखा, वो कुछ बात कर रहे हैं, एक अजीब सा शोर है, सब बोल रहे हैं, कोई कुछ कोई कुछ….ऐसा लग रहा है मानो पूरा मुल्क यहीं आ गया है….

“क्या सभी ग़रीब हैं!” एक बार को ये ख़याल हनीफ़ के ज़हन में आया ज़ुरूर पर फिर एक दूसरा ख़याल…
“नहीं मेरे जितने ग़रीब नहीं हो सकते” ख़याली उधेड़बुन से बाहर वो भी भागा दौड़ी में लग गया…

शाम के 6 बजे Arghwan Ki Kahani- Gham Rozgaar ke 

सब इंतज़ार में हैं कि नोटिस बोर्ड पे नोटिस कब लगाया जाएगा, कुछ लोग वहाँ बैठे कर्मचारियों से बार-बार पूछ रहे थे कि आख़िर कब नोटिस लगाया जाएगा लेकिन हनीफ़ ख़ामोशी से एक तरफ बैठा था, उसे कोई जल्दी नहीं थी.
अचानक शोर सा होने लगा, अफ़रा-तफ़री मच गयी…. लोग नोटिस बोर्ड की तरफ भागने लगे, हनीफ़ भी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा..
“हनीफ़ अली” हनीफ़ ने दूर से अपना नाम पढ़ा, एक सुकून सा महसूस हुआ और उसने तुरंत ही ख़ुदा का शुक्रिया अदा किया..

7 बजे

कभी हँसता कभी मुस्कुराता हुआ हनीफ़ अपने घर की तरफ़ चल पड़ा है, उसकी नौकरी लग गयी है और शायद अब उसकी ग़रीबी दूर हो जाएगी.इस उम्मीद और हौसले ने उसके तन-बदन में एक अजीब सी ख़ुशी भर दी थी, तभी उसके सामने से एक पति-पत्नी का जोड़ा गुज़रता है.. दोनों आपस में लगावट की बातें करते हुए और एक दुसरे से खेलते हुए जा रहे हैं..
“अरे, ठीक से चलो..कोई देखेगा तो क्या कहेगा..”
“क्या कहेगा, बीवी हूँ तुम्हारी.. अब भी डरूं…जो कहेगा कहेगा”
दोनों की बातें हनीफ़ सुन भी रहा था और वो दोनों को देख भी रहा था… उसे देख के लेकिन वो दोनों थोड़ा संभल कर चलने लगे और इस बात का एहसास होते ही हनीफ़ ने भी ऐसा दिखाया मानो उसे कुछ पता ही नहीं चला..
लेकिन थोड़ी दूर जा के जब वो पीछे पलटता है तो वो दोनों एक दूसरे के हाथ में हाथ लिए चल रहे हैं, और फिर लड़की अपने नौजवान शौहर के कंधे पर सर रख लेती है…

_______Arghwan Ki Kahani- Gham Rozgaar ke

हनीफ़ मुस्कुराने लगता है और फिर अपनी बीवी के बारे में सोचने लगता है..
“हुमा मुझसे कितना प्यार करती है न ” अपने आपसे जैसे ही वो ये सवाल करता है, उसे एक अजीब सा डर सताने लगता है …
“मैं हुमा को छोड़ के दो साल तक कैसे रहूँगा ? वो कैसे रहेगी ? साहब ने तो बताया है कि दो साल तक परिवार से मिल नहीं सकते..” अजीब ओ ग़रीब सी बातें वो अपने आप से करने लगता है..

तक़रीबन 8 बजे..

हुमा दरवाज़े पे एक आधी रौशनी का चिराग़ लिए उसका इंतज़ार कर रही है, सामने से आ रहे हनीफ़ को वो देखती तो है पर उसके चेहरे पे कोई भी भाव नहीं होता, वो कुछ पूछना चाह रही थी लेकिन …
“मुझे नौकरी मिल गयी”
हनीफ़ की इस बात ने मानो हुमा के होश ही उड़ा दिए, उसके चहरे पे पूरी उदासी छा गयी, अपने दुपट्टे को संभालते हुए वो अन्दर चली गयी.. हनीफ़ अन्दर आया.. “क्या हुआ तुम्हें ख़ुशी नहीं हुई?” हनीफ़ के इस सवाल का हुमा ने कोई जवाब नहीं दिया और चूल्हे के पास की जगह पे खाना लगाना शुरू किया…
“क्या हुआ? सब ठीक तो है न?”

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“हाँ..ठीक है!” एक सीधा सा जवाब हुमा ने जैसे उसके सामने रख सा दिया हो
“फिर क्या हुआ, नौकरी लग गयी..ख़ुश नहीं हो?” हनीफ़ ने फिर सवाल किया..
“हाँ बहुत ख़ुश हूँ..तुम तो चले जाओगे सालों के लिए, मैं जियूँ या मरूँ” इतना कहते-कहते वो रोने लगती है. हनीफ़ उसे मनाने की बहुत कोशिश करता है लेकिन वो नहीं मानती…

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“सिर्फ़ दो साल की बात है..”
“तुम जाओ ना, दो साल या दो सौ साल..जाओ ”
“समझो न.. हम ग़रीब हैं …पैसे नहीं होते, खाना तक किसी तरह से खा रहे हैं, तीन साल हुए हमारी शादी को, तुम्हें कुछ दे नहीं पाया मैं ..”
हुमा उसके गले लग जाती है…”मुझे तुम्हारा प्यार मिला है, उससे ज़्यादा क्या दोगे तुम!..मत जाओ ..”
हनीफ़ बिना कुछ कहे हुमा से अलग होके किनारे बैठ जाता है, हुमा वहीं ज़मीन पर बैठ जाती है…
पूरी रात दोनों इसी तरह बैठे रहते हैं…

अगले दिन सुबह साढ़े 5 बजे .. (Arghwan Ki Kahani- Gham Rozgaar ke )

फ़ज्र की अज़ान की आवाज़ जैसे ही हुमा के कानों में पड़ती है वो दुआ करने लगती है कि हनीफ़ किसी तरह मान जाए और रुक जाए …
हनीफ़ जैसे ही उठने की कोशिश करता है, हुमा तपाक से बोल पड़ती है “यहीं कुछ कर लेना.. मत जाओ ”

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हनीफ़ उसकी बात को बिलकुल अनसुना कर देता है, हुमा ये देख के हनीफ़ के लिए जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगती है… हुमा खाना बनाते-बनाते कभी तो हनीफ़ पर नाराज़ होती कभी प्यार जताती … “देखो ना, तुम्हें तो मेरी फ़िक्र ही नहीं है, लगता है प्यार नहीं करते..”
हनीफ़ हर बात को बहुत ध्यान से सुन रहा था…
“अच्छा हाथ धो लो, आज तो खा ही लो मेरे हाथ का खाना…फिर क्या पता जब आओ तो मैं मर ही जाऊँ”
हुमा की दीवानगी की बातें सुनकर हनीफ़ की आँखें भर आती हैं, हुमा जैसे ही हनीफ़ को देखती है उसके पास जाती है और उसे गले लगा लेती है..
“तुम रो मत हनीफ़,”
हुमा के गले लगते ही हनीफ़ फूट-फूट के रोने लगता है..
“रो नहीं…अरे,..”
हनीफ़ को चुपाते-चुपाते वो ख़ुद भी रोने लगती है…

8 बजे

हनीफ़ अपना झोला उठाए दरवाज़े की तरफ बढ़ता है..हुमा उसे अपनी सूखी आँखों से देख रही है और उसके पीछे-पीछे दरवाज़े के सामने के पेड़ तक आ गयी है…
चार ही क़दम और आगे बढ़ने के बाद, हनीफ़ पीछे पलट के देखता है, वो देखता है कि हुमा उसे देख रही है, हुमा सिर्फ़ उसे देख रही है..और हनीफ़ ना जाने किस तरफ़ जाना चाहता है,
हुमा रुक जाती है, हनीफ़ भी..
वो एक बार फिर गाँव से बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ देखता है..और फिर हुमा को.. !

समाप्त Arghwan Ki Kahani- Gham Rozgaar ke 

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