Bindu Aur ChandrabinduBindu Aur Chandrabindu courtesy: sahityaduniya.com

 Bindu Aur Chandrabindu अनुस्वार( बिन्दु) और अनुनासिक ( चंद्रबिन्दु) में अंतर और उनका प्रयोग

Bindu Aur Chandrabindu हिंदी भाषा वैसे तो सबसे सरल भाषाओं में से एक है फिर भी इसके कुछ पहलुओं को लेकर अक्सर असमंजस की सी स्थिति बनी रहती है। ऐसे ही एक असमंजस का विषय बनता है ये सवाल कि आख़िर शब्द में कहाँ “बिंदु” लगेगी और कहाँ “चंद्रबिंदु”? आमतौर पर इसे बिंदु और चंद्रबिंदु कहते हैं लेकिन व्याकरण की भाषा में इसे “अनुस्वार” और “अनुनासिक” कहा जाता है। आज कुछ आसान उपायों से ये समझने की कोशिश करते हैं कि कहाँ “अनुस्वार” या “बिंदु” का प्रयोग होता है और कहाँ “अनुनासिक” यानी “चंद्रबिंदु” का।
अनुस्वार या बिंदु (ं)

अनुस्वार

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, अनुस्वार स्वर का अनुसरण करने वाला व्यंजन है यानी कि स्वर के बाद आने वाला व्यंजन वर्ण “अनुस्वार” कहलाता है, इसके उच्चारण के समय नाक का उपयोग होता है, ऐसा आभास होगा जैसे नाक से कहा हो, और उच्चारण के समय वो व्यंजन वर्ण उच्चारित होता है जो अनुस्वार या बिंदु की तरह लिखा गया हो। अनुस्वार को समझने के लिए हमें पहले हिंदी वर्णमाला के वर्ग को जानना होगा। हिंदी वर्णमाला के पाँच वर्ग हैं:
(क वर्ग ) क , ख ,ग ,घ ,ड. (च वर्ग ) च , छ, ज ,झ , ञ (ट वर्ग ) ट , ठ , ड ,ढ ण (त वर्ग) त ,थ ,द , ध ,न (प वर्ग ) प , फ ,ब , भ म य , र .ल .व श , ष , स ,ह

इन वर्गों के पाँचवें वर्ण को पंचमाक्षर कहा जाता है, जो क्रमशः ड., ञ, ण, न और म। शब्द में इनके स्थान पर ही अनुस्वार या बिंदु (ं) का प्रयोग होता है। उदाहरण:
जड्.गल- जंगल,
चञ़्चल – चंचल
डण्डा – डंडा
मन्दा – मंदा भूकम्प – भूकंप

अनुस्वार को इन पंचमाक्षर या पंचम वर्ण (ड., ञ, ण, न और म) में भी बदला जा सकता है, क्योंकि अनुस्वार इन पंचम वर्णों की जगह ही लगाया जाता है इसलिए उसे इन वर्णों में परिवर्तित किया जा सकता है। लेकिन इसके भी कुछ नियम हैं, जो बहुत ही सरल हैं।

नियम Bindu Aur Chandrabindu

  1. अनुस्वार के चिह्न के बाद जो वर्ण आता है, यानी कि जिस वर्ण में अनुस्वार लगा हो उसके बाद आने वाला अक्षर जिस वर्ग से होगा अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम वर्ण में बदल सकता है। अनुस्वार के बाद आने वाला वर्ण, “’ वर्ग, ’’ वर्ग, ‘’ वर्ग, ‘’ वर्ग और ‘’ वर्ग में से जिस वर्ग से संबंधित होता है अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।
    जैसे- “कंधा” शब्द में अनुस्वार “” के ऊपर लगा है और उसके बाद है “” जो कि “त वर्ग” में आने वाला अक्षर है। इसलिए जब हम “कंधा” शब्द को पंचम वर्ण के साथ लिखना चाहें तो वहाँ “त वर्ग” के पंचम वर्ण यानी “” का प्रयोग होगा और उसे लिखा जाएगा “कन्धा”

इसी तरह अगर शब्द हो “मंगल। तो अनुस्वार है “” के ऊपर और उसके बाद आ रहा है “” जो कि “क वर्ग” का वर्ण है, तो जब इसे पंचम अक्षर के साथ लिखना होगा तब “क वर्ग” के पाँचवें वर्ण यानी “.” का प्रयोग होगा और उसे लिखा जाएगा, “मड्.गल

2. लेकिन अगर पंचम वर्ण के बाद किसी दूसरे वर्ग का कोई पंचमवर्ण आए तो अनुस्वार नहीं लगेगा बल्कि पंचमवर्ण ही लगता है। Bindu Aur Chandrabindu

जैसे

वाड्.मय को वांमय या तन्मय को तंमय या उन्मुख को उंमुख नहीं लिखा जाएगा।
3. इसी तरह अगर कोई पंचम वर्ण किसी शब्द में तुरंत ही दुबारा आ रहा हो, तो भी अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा।
जैसे – चम्मच को चंमच या उन्नति को उंनति, अक्षुण्ण को अक्षुंण नहीं लिखा जा सकता।

4. अनुस्वार के बाद अगर य , र .ल .व, श, ष, स, ह वर्ण आते हैं यानी कि, ऐसे वर्ण जो किसी वर्ग में शामिल नहीं हैं ये किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं तो अनुस्वार को बिंदु के रूप में ही प्रयोग किया जाता है और उसे किसी वर्ण में नहीं बदला जाता.।
जैसे– “संयम” यहाँ अनुस्वार के बाद “य” अक्षर है जो किसी वर्ग के अंतर्गत नहीं आता इसलिए यहाँ बिंदु ही लगेगा।

ध्यान देने योग्य बातें

1-अनुस्वार व्यंजन वर्ण होता है और ये हर वर्ण वर्ग का पाँचवा अक्षर होता है।
2- अनुस्वार को उसके बाद आने वाले अक्षर के वर्ग के पाँचवें अक्षर में बदल सकता है या इसे यूँ भी कह सकते हैं कि अनुस्वार को बिंदु या अर्ध अक्षर में लिखा जा सकता है।

3- जब कभी पंचम वर्ण के बाद पंचम वर्ण ही आए तो अनुस्वार नहीं बल्कि पंचम वर्ण ही लगता है। इसी तरह किसी शब्द में कोई पंचम वर्ण तुरंत दुबारा प्रयोग हो रहा हो तब भी अनुस्वार नहीं लगता।

4- य, र, ल, व, श, ष, स, ह वर्ण के साथ ज़्यादातर अनुस्वार ही लगता है।

अनुनासिक या चंद्रबिंदु (ँ)  Bindu Aur Chandrabindu

अनुनासिक, स्वर होते हैं, इनके उच्चारण करते समय मुँह से अधिक और नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों के लिए चंद्रबिंदु (ँ) का प्रयोग होता है और ये शिरोरेखा यानी शब्द के ऊपर लगने वाली रेखा के ऊपर लगती है। ऐसे कुछ शब्द हैं:

उदाहरण– माँ, आँख, माँग, दाँव, डाँट, दाँत आदि।

कई बार अनुनासिक या चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु का भी प्रयोग किया जाता है, ऐसा तब होता है जब शिरोरेखा के ऊपर कोई और मात्रा भी लगी हो। जैसे- इ, ई, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राओं वाले शब्दों में चंद्रबिंदु होने के बाद भी इन मात्राओं के साथ बिंदु के रूप में ही अनुनासिक को दर्शाया जाता है। ऐसे कुछ शब्द हैं:

उदाहरण– नहीं, मैं आदि।

कई बार अनुनासिक की जगह अनुस्वार का प्रयोग शब्द के अर्थ को भी बदल देता है:
जैसे– हंस (जल में रहने वाला एक जीव), हँस (हँसने की क्रिया)
स्वांग(स्व+अंग) अपना अंग, स्वाँग (नाटक)
पूंछ (एक जगह का नाम) पूँछ (दुम) आदि।

-इसी तरह कई बार अनुस्वार का प्रयोग न करने से भी शब्द का अर्थ बदल जाता है:

जैसे– चिंता (फ़िक्र)– चिता (मृत्युशैया)
गोंद (चिपकाने का लसदार पदार्थ)- गोद (गोदी)
गंदा (मलीन)- गदा (भीम का अस्त्र) आदि।

अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर

1.  अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिक स्वर है।
2. अनुस्वार को पंचम अक्षर में बदला जा सकता है, अनुनासिक को बदला नहीं जाता।
3. अनुस्वार बिंदु के रूप में लगता है और अनुनासिक चंद्रबिंदु के रूप में।
4. अगर शिरोरेखा के ऊपर मात्रा लगी हो तो अनुनासिक भी अनुस्वार या बिंदु के रूप में लिखा जाता है जबकि अनुस्वार कभी चंद्रबिंदु के रूप में नहीं बदलता।

हमें “उम्मीद” है कि आपको आज बिंदु और चंद्रबिंदु के प्रयोग की कुछ जानकारी मिली होगी। ऐसी भी “चिंता” की कोई बात ही नहीं है, बस ज़रूरत है “आँख” खुली रखने की और ज़रा ध्यान रखने की और “हँसते” गाते यूँही सीख जाएँगे आप और हम।

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