घनी कहानी, छोटी शाखा- रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी “भिखारिन” का पहला भाग
भिखारिन (रबीन्द्रनाथ टैगोर) भाग-1 Bhikharin Kahani अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती, दर्शन करने वाले बाहर निकलते तो वह अपना हाथ फैला देती और नम्रता से कहती- “बाबूजी, अन्धी पर दया हो जाए” वह जानती थी कि मन्दिर में आने वाले सहृदय और श्रध्दालु हुआ करते हैं। उसका यह अनुमान असत्य न … Read more