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Maxim Gorky Hindi Kahani Maxim Gorky Hindi KolushaMaxim Gorki Hindi Kahani

Maxim Gorky Hindi Kolusha अब तक आपने पढ़ा- एक क़ब्र के पास बैठी औरत को देख कर लेखक के मन में उत्सुकता उठती है और वो उससे बात करने लगता है. औरत अपने गुज़रे जीवन के बारे में बताना शुरू करती है जिसमें वो बताती है कि उसका पति एक जुर्म करने की वजह से जेल चला गया था जहाँ उसे लकवा मार गया. पति के जेल जाने के बाद से ही वो अपने बेटे कलुशा को पाल रही थी लेकिन पति के रिहा होने के बाद दोनों की ज़िम्मेदारी उसके सर आ गयी. अपने पति की बीमारी और ग़रीबी से परेशान औरत मन ही मन इस माहौल से ऊबने लगी थी. अब आगे…

मैक्सिम गोर्की की कहानी ‘कोलुशा’ का पहला भाग
एक बार, जब हालत एकदम असह्य हो उठी, तो मैंने कहा – ‘मैं तो तंग आ गयी इस मनहूस जीवन से। अच्छा हो अगर मैं मर जाऊँ – या फिर तुम दोनों में से कोई एक ख़त्म हो जाये!’ – यह कोलुशा और उसके पिता की तरफ़ इशारा था। उसका पिता केवल गरदन हिलाकर रह गया, मानो कह रहा हो – ‘झिड़कती क्यों हो? ज़रा धीरज रखो, मेरे दिन वैसे ही क़रीब आ लगे हैं।’ लेकिन कोलुशा ने देर तक मेरी ओर देखा, इसके बाद वह मुड़ा और घर से बाहर चला गया। उसके जाते ही अपने शब्दों पर मुझे बड़ा पछतावा हुआ। लेकिन अब पछताने से क्या होता था? तीर कमान से निकल चुका था। एक घण्टा भी न बीता होगा कि एक पुलिस-मैन गाड़ी में बैठा हुआ आया। ‘क्या तुम्हीं शिशेनीना साहिबा हो?’ उसने कहा। मेरा हृदय बैठने लगा। ‘तुम्हें अस्पताल में बुलाया है’, वह बोला – ‘तुम्हारा लड़का सौदागर आनोखिन के घोड़ों से कुचल गया है।’ गाड़ी में बैठ मैं सीधे अस्पताल के लिए चल दी। ऐसा मालूम होता था जैसे गाड़ी की गद्दी पर किसी ने गर्म कोयले बिछा दिये हों। और मैं रह-रहकर अपने को कोस रही थी – ‘अभागी औरत, तूने यह क्या किया?’

“आख़िर हम अस्पताल पहुँचे। कोलुशा पलंग पर पड़ा पट्टियों का बण्डल मालूम होता था। वह मेरी ओर मुस्कुराया, और उसके गालों पर आँसू ढुरक आये…. फिर फुसफुसाकर बोला – ‘मुझे माफ़ करना, माँ। पैसा पुलिसमैन के पास है।’ ‘पैसा….कैसा पैसा? यह तुम क्या कह रहे हो?’ मैंने पूछा। ‘वही, जो लोगों ने मुझे सड़क पर दिया था और आनोखिन ने भी’, उसने कहा। ‘किसलिए?’ मैंने पूछा। ‘इसलिए’, उसने कहा और एक हल्की-सी कराह उसके मुँह से निकल गयी। उसकी आँखें फटकर ख़ूब बड़ी हो गयीं, कटोरा जितनी बड़ी। ‘कोलुशा’, मैंने कहा – ‘यह कैसे हुआ? क्या तुम घोड़ों को आता हुआ नहीं देख सके?’ और तब वह बोला, बहुत ही साफ़ और सीधे-सीधे, ‘मैंने उन्हें देखा था, माँ, लेकिन मैं जान-बूझकर रास्ते में से नहीं हटा। मैंने सोचा कि अगर मैं कुचला गया तो लोग मुझे पैसा देंगे। और उन्होंने दिया।’ ठीक यही शब्द उसने कहे। और तब मेरी आँखें खुलीं और मैं समझी कि उसने – मेरे फ़रिश्ते ने – क्या कुछ कर डाला है। लेकिन मौक़ा चूक गया था। अगली सुबह वह मर गया। उसका मस्तिष्क अन्त तक साफ़ था और वह बराबर कहता रहा – ‘दद्दा के लिए यह ख़रीदना, वह ख़रीदना और अपने लिए भी कुछ ले लेना।’ मानो धन का अम्बार लगा हो। वस्तुतः वे कुल सैंतालीस रूबल थे। मैं सौदागर आनोखिन के पास पहुँची, लेकिन उसने मुझे केवल पाँच रूबल दिये, सो भी भुनभुनाते हुए। कहने लगा – ‘लड़का ख़ुद जान-बूझकर घोड़ों के नीचे आ गया। पूरा बाज़ार इसका साक्षी है। सो तुम क्यों रोज़ आ-आकर मेरी जान खाती हो? मैं कुछ नहीं दूँगा।’ मैं फिर कभी उसके पास नहीं गयी। इस प्रकार वह घटना घटी, समझे युवक!”

उसने बोलना बन्द कर दिया और पहले की भाँति अब फिर सर्द तथा निस्संग हो गयी।
क़ब्रिस्तान शान्त और वीरान था। सलीब, मरियल-से पेड़, मिट्टी के ढूह और कब्र के पास इस शोकपूर्ण मुद्रा में बैठी यह मनोविकारशून्य स्त्री – इन सब चीज़ों ने मुझे मृत्यु और मानवीय दुख के बारे में सोचने के लिए बाध्य कर दिया।
लेकिन आकाश में बादलों का एक धब्बा तक नहीं था और वह धरती पर झुलसा देने वाली आग बरसा रहा था।
मैंने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और उन्हें इस स्त्री की ओर बढ़ा दिया जो, दुर्भाग्य की मारी, अभी भी जी रही थी।
उसने सिर हिलाया और विचित्र धीमेपन के साथ बोली –
“कष्ट न करो, युवक। आज के लिए मेरे पास काफ़ी है। आगे के लिए भी मुझे अधिक नहीं चाहिए। मैं एकदम अकेली हूँ। इस दुनिया में एकदम अकेली!”
उसने एक गहरी साँस ली और अपने पतले होंठ एक बार फिर उसी शोक से बल-खाई रेखा में भींच लिये।

समाप्त
Maxim Gorky Hindi Kolusha

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