Rahat Indori Ki YaadRahat Indori

Rahat Indori Ki Yaad Mein: कल सुबह जब मैं उठा तो ये ख़बर आ रही थी कि राहत इन्दौरी साहब की तबीअत ख़राब हो गई है. उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ है और इस वजह से उन्हें इंदौर के एक अस्पताल में दाख़िल किया गया है. यूँ तो मुझे ये बहुत चिंता की बात नहीं लगी क्यूँकि बहुत सारे लोगों को कोरोना हो रहा है और बहुत से लोग ठीक भी हो रहे हैं. शाम होने से पहले मेरे पास एक मैसेज आया जिसने मुझे जानकारी दी कि राहत साहब गुज़र गए. एक पल को उस मैसेज पर मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ. फिर मालूम हुआ कि लगभग सभी चैनल पर इस तरह की ख़बर चल रही है.

मैंने इंदौर अपने एक अज़ीज़ दोस्त ज़ीशान को फ़ोन किया. ज़ीशान ने बताया कि सतलज भाई (राहत साहब के बेटे) का फ़ोन बंद आ रहा है लेकिन पता करके बताता हूँ. कुछ पाँच मिनट के बाद ज़ीशान ने कॉल बैक किया और उसने इस ख़बर की पुष्टि की.

सच कहूँ तो इस ख़बर ने दिल तोड़ दिया..कुछ ऐसी हालत मेरे ज़हन की हो गई है कि कुछ ऐसा है जो चला गया है लेकिन क्या ये मालूम नहीं चल रहा है. राहत साहब से तो मेरी कोई मुलाक़ात भी नहीं थी. मैं इंदौर भी कई बार गया हूँ और राहत साहब भी कई बार लखनऊ आये..ऐसा मौक़ा हो सकता था कि मैं उनसे किसी तरह मिल पाऊं.. राहत साहब के बेटे सतलज राहत (सतलज भाई) से तो मेरी अच्छी दोस्ती भी है. एक बार राहत साहब का आना लखनऊ हुआ, उनके साथ सतलज भाई भी आये. मुझे मालूम हुआ कि सतलज भाई भी आये हैं तो उनसे मिलने मैं पहुँच गया. अमीनाबाद के एक होटल के कमरे में राहत साहब आराम फ़रमा रहे थे, बहुत मन होता था राहत साहब से मिलने को लेकिन हमारे ज़हन में उनका मर्तबा उस्ताद का है और तहज़ीब कहती है कि उस्ताद से सीखो लेकिन उस्ताद को परेशान न करो. और फिर सतलज भाई भी अच्छे शाइर हैं तो हम उनकी शाइरी सुनने लगे.

राहत साहब से मेरा जुड़ाव कब और कैसे हुआ उसके बारे में कहूँ तो.. राहत साहब के बारे में मैंने तब ठीक से सुनना शुरू किया जब ऑरकुट चल रहा था और मुझे लगा कि शेर ओ शाइरी पढ़कर वक़्त कम करना चाहिए. धीरे-धीरे इंटरेस्ट बढ़ा तो सोचा कि शाइरी करनी चाहिए फिर मालूम हुआ कि इसके तो बड़े नियम और क़ायदे हैं. मालूम हुआ कि बह्र, रदीफ़, क़ाफ़िए, वग़ैरा तो ठीक हैं लेकिन उस्ताद शाइरों को पढ़ना सबसे अहम है. ऐसे में हमारे पूरे ग्रुप ने शाइरों को पढ़ना शुरू किया.. सबसे पहले जिन चंद शाइरों को हमने पढ़ा उनमें राहत साहब का नाम आता है और उसके बाद हमने न जाने कितने शाइरों को पढ़ा लेकिन राहत साहब को हमेशा पढ़ते रहे. शुरू से लेकर अंत तक राहत साहब की शाइरी ने हमें सिखाया, ग़ज़ल कैसे कहें, रियाज़त कैसे हो, कैसे पेश करें…. कोई मुलाक़ात नहीं हुई लेकिन अपने उस्ताद से हमने हमेशा सीखने की कोशिश की..

राहत साहब को जन्नत में ऊँचा मक़ाम मिले..

“ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी,
मुझे तलाश करो दोस्तों यहीं हूँ मैं”

~ राहत इंदौरी

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(इस लेख को ‘साहित्य दुनिया’ टीम की ओर से अरग़वान रब्बही ने लिखा है)
Rahat Indori Ki Yaad Mein

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